- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- नस्ल और रंग के नाम पर...
x
अश्वेत विचारक पत्रकार डेरैन लुइस ने लंदन से प्रकाशित डेली मेल में लिखे लेख में यूक्रेन के भीतर मौजूद नस्लभेद और रंगभेद के भयावह हालात को उजागर किया है
Faisal Anurag
अश्वेत विचारक पत्रकार डेरैन लुइस ने लंदन से प्रकाशित डेली मेल में लिखे लेख में यूक्रेन के भीतर मौजूद नस्लभेद और रंगभेद के भयावह हालात को उजागर किया है. आमतौर पर नस्लवाद और रंगभेद के कारण,अफ्रीकी,भारतीय और अरब के लोगों को श्वेत दुनिया में भेदभाव का शिकार होना पड़ता है. लुइस ने लिखा है: 'अश्वेत अफ्रीकियों और कैरेबियाई लोगों को यूक्रेन से भागने के अवसर से वंचित कर दिया जा रहा है. नाजी जर्मनी के रंगों के साथ कहानियों में कीव में रेलवे स्टेशनों पर एक पदानुक्रम प्रणाली संचालित होती देखी गई है, पहले बच्चे, सफेद महिलाएं और पुरुष (अपने पालतू जानवरों के साथ) और फिर दूसरे,श्वेत वहीं दूसरी और अश्वेतों को प्रतीक्षा के त्रासद और तकलीफदेह हालातों से गुजरने के लिए बाध्य होना पड़ा है.' कुछ ऐसी ही बातें उन वीडियो में सुनी गयी है, जिसे भारतीय छात्रों ने रिकॉर्ड कर वायरल किया है. यूक्रेन पोलैंड सीमा पर तो भारतीय छात्रों के साथ हुई मारपीट की खबरों भी सार्वजनिक हो चुकी है.
लुइस की इस पीड़ा को अनसुना नहीं किया जा सकता कि 'पश्चिम अफ्रीकी राष्ट्रों को यूरोप यूक्रेन के साथ एकजुटता में खड़े होने के लिए नहीं कहा जा सकता है. इसका एक बड़ा कारण तो है कि युद्ध की भयावह हिंसा के बीच भी अश्वेतों के प्रति वे बुनियादी सम्मान प्रदर्शित नहीं कर सकते हैं. "महामारी में अनदेखा किया गया और युद्ध में मरने के लिए छोड़ दिया गया?
हम सब यूक्रेन के साथ हैं. लेकिन अगर आप अपने परिवार के साथ काले या भूरे हैं, तो क्या आपको यह पूछने के लिए क्षमा किया जा सकता है: "क्या बाकी सब हमारे साथ हैं? भारतीयों, अरबों और सीरियाई लोगों के एक समान पीड़ा है क्योंकि उनकी दर्जनों कहानियां सामने आ चुकी हैं, जिसमें उनके साथ हो रहे भेदभाव का उल्लेख है.
यूं ही नहीं है कि यूक्रेन के भीतर भी अन्य यूरोपीय देशों की तरह नवनात्सी विचारधारा लोकप्रिय हो रही है. संयुक्त राष्ट्र संघ ने कुछ ही समय पहले एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें हिटलरकालीन नात्सीवादियों को लेकर सार्वजनिक महिमामंडन करने को रोकने की बात कही थी. 130 देशों के बीच केवल यूक्रेन और अमेरिका ही दो देश थे, जिन्होंने इस प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया था. इस युद्ध ने यह भी अवसर दिया है कि नवनात्सीवादी उभार के यूरोपीय संदर्भ को अनदेखा नहीं किया जाए.
कौन नहीं जानता के जॉर्ज सोरेस जैसे अरबपति यूरोप ही नहीं पूरी दुनिया में शासकों को हटाने-बैठाने का खेल करते हैं. जेलेंस्की के उभार और सत्ता तक पहुंचने में मदद सोरेस की भी थी. कुछ पोर्टल इस ओर इशारा कर रहे हैं. पूंजी के इस खेल में रंगभेद और नस्लभेद को बढ़ावा मिलने के स्पष्ट संकेत हैं, जिसे इस युद्ध ने बेपर्दा कर दिया है.
हो सकता है कीव को रूस जीत ले या फिर इसी कारण यूरोप में एक लंबे संघर्ष के बहुभागीदारी का रास्ता सहज हो जाए या यह भी हो सकता है कि यूक्रेन रूस के लिए लंबी लड़ाई लड़े. लेकिन इस युद्ध में जिस प्रकार पूर्वी यूरोप में रंगभेद को लेकर भेदभाव उजागर हुआ है, वह एक गंभीर समस्या है. जेलेंस्की का एक बयान मीडिया में है कि उनके दादा और पिता ने हिटलर के खिलाफ लड़ाई लड़ी और जान दी. जेलेंस्की के पिता सिमोन जेलेंस्की सोवियत रेड आर्मी में थे. ऐसे पिता की संतान वोल्देमीर जेलेंस्की के लिए यह गंभीर प्रश्न है कि एक भयावह संकट के बीच उनके ही देश में बचाव के कार्य में नस्ल और रंगभेद किस तरह प्रमुख बन गया.
आज का यूक्रेन सोवियत संघ के विघटन होने के बाद अलग हुआ और उसके पूंजीपति पश्चिमी यूरोप और अमेरिका के हिमायती बन गए. पूर्व सोवियत राज्यों में एक भी ऐसा देश नहीं है, जो उदारवाद के आर्थिक तंत्र का हिस्सा नहीं है. इसमें रूस भी है. रूस में पुतिन के समय उभार आए ओलिगार्च भी हैं, जिनके लिए रूसी अंधराष्ट्रवाद का महत्व है जो उन्हें बेशुमार धनसंचय की छूट देता है. इनके लिए भी न तो नस्लीभेद गंभीर मसला है और न ही रंगभेद. ओलीगार्च वे हैं, जिन्हें पुतिन का सहयोगी और कृपापात्र कहा जाता है.
इस युद्ध का भविष्य भी इन्हीं ओलीगार्च के हाथों है, क्योंकि वे बहुत देर तक प्रतिबंधों का सामना कर नुकसान नहीं उठा सकते. पुतिन के उदार बनने की महत्वकांक्षा और ओलीगार्च के पूंजी समेटने की महत्वकांक्षा के बीच यह युद्ध रूस में पुतिन का भविष्य भी तय करेगा क्योंकि रूस का वैश्विक अलगाव इन ओलीगार्च के आर्थिक हितों को प्रभावित करेंगे. डोनबास के रूसी नस्ल के साथ उत्पीड़न की याद यूं ही रूस नहीं दिला रहा है.
Next Story