सम्पादकीय

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का महत्त्व

Rani Sahu
14 Dec 2021 6:52 PM GMT
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का महत्त्व
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प्रधानमंत्री ने 13 दिसंबर को वाराणसी में श्री काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण किया और कहा कि इससे देश को एक निर्णायक दिशा मिलेगी

प्रधानमंत्री ने 13 दिसंबर को वाराणसी में श्री काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण किया और कहा कि इससे देश को एक निर्णायक दिशा मिलेगी। इसका शिलान्यास प्रधानमंत्री ने 08 मार्च 2019 को किया था। 445 करोड़ रुपए की परियोजना को रिकॉर्ड समय दो वर्ष 9 माह नौ दिन में पूरा किया गया है। निर्माण के लिए 320 भवनों को क्रय किया गया जिसमें 498 करोड़ रुपए लागत आई। काशी विश्वनाथ मंदिर के वर्तमान स्वरूप का पुनर्निर्माण ढाई सौ वर्ष पूर्व इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने वर्ष 1780 में कराया था। वहीं वर्ष 1853 में महाराजा रणजीत सिंह ने काशी विश्वनाथ मंदिर के शिखर को स्वर्ण से मंडित करवाया था। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण में तक़रीबन 400 मकानों, सैकड़ों मंदिरों और लोगों को कहीं और बसाना पड़ा है। विश्वनाथ मंदिर के काफी घनी आबादी में बने होने के कारण लगभग 400 संपत्तियों को ख़रीदा गया और लगभग 14 सौ लोगों को शहर में कहीं और बसाया गया। विश्वनाथ मंदिर का रास्ता संकरा न पड़ जाए, इसलिए ज्ञानवापी मस्जिद समिति ने ज़मीन का एक टुकड़ा विश्वनाथ कॉरिडोर प्रोजेक्ट के लिए दे दिया है। ज़मीन मस्जिद से कुछ ही दूरी पर है। यह देश में सहिष्णुता की मिसाल है और काबिलेतारीफ है। लगभग 2 साल 8 महीने में इस प्रोजेक्ट के 95 प्रतिशत काम को पूरा कर लिया गया है। वर्तमान में इस कॉरिडोर में 2600 मज़दूर और 300 इंजीनियर तीन शिफ़्टों में लगातार काम कर रहे हैं। इस कॉरिडोर को बनाने के दौरान जिन 400 मकानों को अधिग्रहित किया गया, प्रशासन के मुताबिक उससे काशी खंडोक्त 27 मंदिर, जबकि लगभग 127 दूसरे मंदिर प्राप्त हुए थे। कॉरिडोर में उन मंदिरों का भी संरक्षण किया जा रहा है।

सनातन संस्कृति के विभिन्न प्राचीन ग्रंथों के अध्ययन से काशी का लोकोत्तर स्वरूप पूर्ण रूप से विदित होता है। काशी नगरी के बारे में कहा जाता है कि यह भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी है। अतः प्रलय होने पर भी इसका कभी विनाश नहीं होगा। काशी विश्वनाथ का मंदिर हजारों साल पुराना है। मुगल काल के दौरान इस मंदिर को नष्ट कर दिया था। 18वीं शताब्दी में महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। कहा जाता है कि इसके बाद महाराजा रणजीत सिंह ने यहां सोने के द्वार भी बनवाए थे। काशी विश्वनाथ मंदिर के शिखर पर सोने का छत्र लगा हुआ है। इसके संबंध में मान्यता प्रचलित है कि इसके दर्शन मात्र से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं। काशी में गंगा, वरुणा और असी यानी अस्सी नाम की पवित्र नदियां बहती हैं। यहां पर वरुणा और अस्सी नदी के बहने के कारण ही इस नगर को वाराणसी भी कहा जाता है। यह दोनों नदियां यहां से बहती हुईं, आगे जाकर गंगा नदी में मिल जाती हैं। काशी के कई घाट बहुत प्रसिद्ध हैं। इनमें दशाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट, हरिशचंद्र घाट और तुलसी घाट आदि शामिल हैं। इन घाटों का विशेष महत्त्व है। इन घाटों से जुड़ी कई कथाएं धर्म ग्रंथों में मिलती हैं। काशी के 12 प्रसिद्ध नाम हैं। ये नाम इस प्रकार हैं ः काशी, वाराणसी, अविमुक्त क्षेत्र, आनंदकानन, महाश्मशान, रुद्रावास, काशिका, तपस्थली, मुक्तिभूमि, शिवपुरी, त्रिपुरारि राज नगरी और विश्वनाथ नगरी। महाभारत में भी काशी का उल्लेख है। यहां के राजा काशिराज की तीन पुत्रियां थीं। अंबा, अंबालिका और अंबिका। इनका स्वयंवर होने वाला था, तब भीष्म ने इन कन्याओं का अपहरण कर लिया था। महाभारत युद्ध में काशिराज ने पांडवों का साथ दिया था। बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध का भी काशी से संबंध है। बौद्ध काल में काशी राज्य कोसल जनपद में आता था। कोसल की राजकुमारी का मगधराज बिंबिसार के साथ विवाह हुआ था। इस विवाह में काशी को दहेज में दिया गया था।
गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी के पास स्थित सारनाथ में दिया था। भौगोलिक स्थिति की बात करें तो काशी नगरी वर्तमान वाराणसी शहर में स्थित एक प्राचीन पौराणिक नगरी है, जो कि गंगा के वाम (उत्तर) तट पर उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी कोने में वरुणा और असी नदियों के गंगा संगमों के बीच बसी हुई है। इस स्थान पर गंगा ने प्रायः चार मील का दक्षिण से उत्तर की ओर घुमाव लिया है और इसी घुमाव के ऊपर यह पौराणिक नगरी स्थित है। इस नगर का प्राचीन 'वाराणसी' नाम लोकोच्चारण से 'बनारस' हो गया था जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने शासकीय रूप से पूर्ववत वाराणसी कर दिया है। काशी विश्वनाथ का इतिहास काफी महत्त्वपूर्ण है। विभिन्न जानकारियों के अनुसार माना जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान है जिसका जीर्णोद्धार 11वीं सदी में राजा हरीशचंद्र ने करवाया था और वर्ष 1194 में मुहम्मद गौरी ने ही इसे तुड़वा दिया था। जिसे एक बार फिर बनाया गया, लेकिन वर्ष 1447 में पुनः इसे जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया। फिर साल 1585 में राजा टोडरमल की सहायता से पंडित नारायण भट्ट ने इसे बनाया गया था, लेकिन वर्ष 1632 में शाहजहां ने इसे तुड़वाने के लिए सेना की एक टुकड़ी भेज दी। लेकिन प्रतिरोध के कारण सेना अपने मकसद में कामयाब न हो पाई। इतना ही नहीं 18 अप्रैल 1669 में औरंगजेब ने इस मंदिर को ध्वस्त कराने के आदेश दिए थे। साथ ही धर्म परिवर्तन का आदेश पारित किया था। आने वाले समय में काशी मंदिर पर ईस्ट इंडिया का राज हो गया जिस कारण मंदिर का निर्माण रोक दिया गया। इस प्रकार इतिहास के अनुसार काशी मंदिर के निर्माण और विध्वंस की घटनाएं 11वीं सदी से लेकर 15वीं सदी तक चलती रही। हालांकि 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मिस्टर वाटसन ने 'वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल' को एक पत्र लिखकर परिसर हमेशा के लिए आग्रहकर्ताओं को सौंपने के लिए कहा था।
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने से वाराणसी में न केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, बल्कि श्रद्धालुओं को भी ढेर सारी सुविधाएं और सहूलियतें मिलेंगी। काशी विश्वनाथ का मंदिर अब गंगा से सीधे जुड़ गया है। श्रद्धालु जलासेन घाट, मणिकर्णिका और ललिता घाट पर गंगा स्नान कर सीधे बाबा के धाम में प्रवेश कर सकेंगे। विशालकाय बाबा धाम के 3 यात्री सुविधा केंद्रों में श्रद्धालुओं को अपना सामान सुरक्षित रखने, बैठने और आराम की सुविधा मिलेगी। कला और संस्कृति की नगरी काशी में कलाकारों के लिए एक और सांस्कृतिक केंद्र की सौगात मिलेगी। दो मंजिला इमारत सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए है। विश्वनाथ धाम आने वाले श्रद्धालुओं के लिए योग और ध्यान केंद्र के रूप में वैदिक केंद्र को स्थापित किया गया है। धाम क्षेत्र में बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए स्पिरिचुअल बुक सेंटर धार्मिक पुस्तकों का नया केंद्र होगा। श्रद्धालुओं के लिए बाबा की भोगशाला भी स्थापित की गई है। यहां एक साथ 150 श्रद्धालु बैठकर बाबा विश्वनाथ का प्रसाद ग्रहण कर सकेंगे। सनातन धर्म में काशी में मोक्ष की मान्यता है। विश्वनाथ धाम में मुमुक्षु भवन बनाया गया है। इससे लगभग 100 कदम की दूरी पर महाश्मशान मणिकर्णिका है। विश्वनाथ धाम में प्रवेश के लिए विशालकाय द्वार बनाए गए हैं। पहले यहां सिर्फ संकरी गलियां थीं। धाम में आपातकालीन चिकित्सा सुविधा से लेकर एंबुलेंस तक की व्यवस्था रहेगी। इस कॉरिडोर के बन जाने से भारतीय संस्कृति को रूहानी ताकत मिली है जो कि देश को जीवंत बनाए रखने के लिए अत्यंत जरूरी है।
डा. वरिंदर भाटिया
कालेज प्रिंसीपल
ईमेल : [email protected]
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