- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- शपथ का संकेत

Written by जनसत्ता: जनतंत्र में प्रतीकों का अपना महत्त्व होता है। राष्ट्रपति पद पर द्रौपदी मुर्मू की जीत भी एक प्रतीक है। आदिवासी समुदाय से वे पहली महिला हैं, जो देश के शीर्ष पद पर पहुंची हैं। सोमवार को उन्होंने अपना कार्यभार भी संभाल लिया। इस तरह उनसे स्वाभाविक ही आदिवासी समुदाय को काफी उम्मीदें जुड़ गई हैं। हालांकि सत्ता पक्ष और विपक्ष ने इस बार इस कदर राजनीतिक दांवपेच लगाए कि यह राष्ट्रपति चुनाव खासा दिलचस्प बन गया था।
चुनाव के शुरुआती चरण में विपक्ष ने इस मकसद से एकजुटता दिखाई कि केंद्र की भाजपा सरकार को पटखनी देना जरूरी है। मगर केंद्र की एनडीए सरकार ने जब द्रौपदी मुर्मू के रूप में अपने प्रत्याशी की घोषणा की तो कई दलों के सुर बदल गए और उनमें से कुछ ने तो प्रत्यक्ष रूप से उनके समर्थन का एलान कर दिया। एक तो महिला, दूसरे आदिवासी समाज से, इसलिए उनके प्रति विपक्ष का रुख बदल गया, जिसका परिणाम मतों के रूप में सामने आया। हालांकि यशवंत सिन्हा ने अपने प्रचार में कोई कमी नहीं छोड़ी थी और उन्होंने बड़े सम्मानजनक ढंग से यह चुनाव लड़ा, मगर द्रौपदी मुर्मू के प्रति आदर भाव ज्यादातर राजनीतिक दलों में प्रकट हुआ।
राष्ट्रपति चुनाव नतीजों के साथ ही यह चर्चा शुरू हो गई थी कि मुर्मू की जीत से आदिवासी समुदाय के जीवन पर कितना असर पड़ेगा। हालांकि हमारे यहां राष्ट्रपति से आम लोगों को बहुत अपेक्षा नहीं रहती है। लंबे समय से इस पद को एक तरह से शोभा का पद बना दिया गया है। जो भी राजनीतिक दल सत्ता में होता है, उसकी कोशिश होती है कि वह किसी ऐसे व्यक्ति को इस पद पर बैठाए, जो उसके फैसलों और नीतियों के विरुद्ध न जाए। यह परिपाटी इंदिरा गांधी ने ही शुरू कर दी थी। मगर ऐसा नहीं कि हमेशा सत्ता पक्ष अपने मकसद में कामयाब होता रहा है।
कई राष्ट्रपति ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने सरकार के विरुद्ध जाकर कुछ अहम फैसले किए। द्रौपदी मुर्मू का व्यक्तित्व साहसी महिला का रहा है। उन्होंने समाज सेविका और राजनेता के रूप में कई उल्लेखनीय काम किए हैं। झारखंड की राज्यपाल रहते हुए उन्होंने केंद्र की लकीर से अलग हट कर कई फैसले किए। खासकर झारखंड में आदिवासी समुदाय के लोगों के साथ होने वाले यातनादायी व्यवहारों के विरुद्ध उन्होंने कड़े पैसले भी किए। जब भी कभी आदिवासी समुदाय पर कोई संकट आया, तो वे खुद वहां गर्इं और प्रशासन को दिशा-निर्देश दिए।
इसलिए द्रौपदी मुर्मू बेशक राजग की प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ कर इस पद पर पहुंची हैं, पर उनके पिछले कामों को देखते हुए लोगों की स्वाभाविक अपेक्षा है कि कम से कम वे अपने समुदाय के लोगों के जीवन में बेहतरी लाने के प्रयास करेंगी। हालांकि उनके शपथ ग्रहण के बाद केंद्रीय गृहमंत्री ने भरोसा दिलाया है कि सरकार आदिवासी समुदाय की बेहतरी के लिए तेजी से काम करेगी।
इस समुदाय के लोगों की दुश्वारियां किसी से छिपी नहीं हैं। खासकर इनके जंगल और जमीन पर कारपोरेट के बढ़ते कब्जे को रोकने के लिए जिस तरह की सरकारी संवेदनशीलता की जरूरत है, वह नहीं दिखाई देती। फिर अपनी जमीन बचाने के लिए उनके संघर्ष को कुचलने के लिए जैसी दमनकारी नीतियां बनाई और अपनाई जाती हैं, वे भी किसी से छिपी नहीं हैं। उनके जीवन में बेहतरी की उम्मीद तभी बनेगी, जब उन्हें गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार मिलेगा। मुर्मू से इसे दिलाने की अपेक्षा स्वत: जुड़ गई है।