सम्पादकीय

सिद्धू तेरी अब खैर नहीं….! आखिर कितना रंग दिखाएगा अमरिंदर का आलम?

Shiddhant Shriwas
27 Oct 2021 8:53 AM GMT
सिद्धू तेरी अब खैर नहीं….! आखिर कितना रंग दिखाएगा अमरिंदर का आलम?
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कांग्रेस (Congress) की दलित सिख और जाट सिख की जुगलबंदी के साथ मैदान में उतरने की रणनीति आख़िर कितना रंग दिखाएगी

Piyush शर्मा दिन बुधवार, वक्त 11 बजे का. पंजाब की सियासी सरज़मीं पर लंबे समय से चल रही सुगबुगाहट को थोड़ा थामने के लिए सबके सामने अपने रौबीले और चुटीले अंदाज में तक़रीबन साढ़े नौ साल तक मुख्यमंत्री रहे अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) हाजिर हो गए. ना तो अंदाज़ बदला और ना ही सुर. ये दोनों पूरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक दूसरे पर चढ़ते ही नजर आए.

जब मोर्चा खोला तो डरना क्या वाले मोड में नज़र आने वाले राजा साहब ने ये बता दिया कि आगे आने वाला समय राहुल वाली कांग्रेस (Congress) के लिए ठीक नहीं है. ठंड ने भले ही दस्‍तक दे दी हो लेकिन गर्मी माहौल में पूरी बनी रहेगी. दिल्ली से बराबर नज़र रखना और बैक टू बैक बैठक करना ये साफ़ बताता है कि पंजाब दिल्ली वालों के हिसाब से भले ही अब थोड़ा बहुत चलने लगा हो पर किताब पूरी तरह से गड़बड़ाई हुई है. राजा के जाने के बाद कितनी प्रजा उनके साथ जाएगी, ये डर अब भी भाई और बहन को सता रहा है. इन्होंने अपनी समझ में चाहे भले ही ज्योतिषी के हिसाब से चलने वाले को मुख्यमंत्री बना दिया हो या फिर जाट सिख को संगठन का ताज थमा दिया हो.
हमेशा की तरह इस बार भी शुरुआत पहले काम और फिर बात वाली बात से हुई. आख़िर काम पहले इसलिए आया क्योंकि सूबे में साढ़े चार साल तो साहब का ही डंडा चलता रहा. और इस डंडे से कितनों का भाग्य खुला और कितनों का सिमटा ये तो फिरकी लेने वाले से अच्छा भला कौन जानता होगा. पार्टी की घोषणा की आस लगाए खबरनवीसों को भले ही पार्टी का नाम ना पता चला हो लेकिन ये तो प्रेसनोट की तरह बंट ही गया है कि सिद्धू तेरी खैर अब नहीं. अमरिंदर ने बक़ायदा संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सिद्धू जहां से भी चुनाव लड़ेगा, हमारी पार्टी उसके ख़िलाफ़ लड़ेगी. हालांकि उन्होंने बता दिया कि सिंबल और प्रदेश में शामियाना तानने वाली चांदनी किस नाम से जानी पहचानी जाएगी, उसके लिए इनके अपने लोग लगे हैं.
लक धक कुर्ते में नजर आ रहे अमरिंदर ने कहा कि मैंने यह कभी नहीं कहा कि मैं पार्टी बनाकर बीजेपी के साथ गठबंधन करूंगा. लेकिन हां मैं ये ज़रूर कहता हूं कि ऑप्‍शंस सभी खुले रहेंगे. अब ये बात अलग है कि कंधा तो इस चुनाव में किसी ना किसी का तो बनना ही पड़ेगा. चाहे इनका या फिर उनका. सभी 117 सीटों से चुनाव लड़ने की बात कहकर राजा ने बता दिया कि जल्द ही कोई रंक होने वाला है. बंदों के मामले में ना कि चवन्‍नी के मामले में. अमरिंदर सिंह ज़ोर का झटका धीरे-धीरे देने के मोड में नहीं हैं. कानाफूसी है कि वो अपना प्यार धीरे-धीरे कांग्रेस ख़ेमे के लोगों में बरसाएंगे. 'थोड़ा है थोड़े की ज़रूरत' वाली लाइन में चलकर वो कुछ को अभी तो कुछ को कुछ समय बाद अपनी डाली पर बैठाएंगे. जब टिकट मिलने और ना मिलने वाला हल्ला अपने पूरे शबाब पर होगा. क्योंकि वो अच्छे से ये जानते है कि कांग्रेस में सब की मनोकामना तो पूरी होनी से रही. और जिनकी नहीं पूरी होगी वो ही इधर से उधर होंगे.
सुरक्षा के मसले पर भी वो हमेशा की तरह इस बार भी खड़े नज़र आए. पर राष्ट्रवाद का कार्ड और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ लगातार हल्ला बोलना इनके लिए कितना फ़ायदेमंद होगा ये देखने वाली बात होगी. क्योंकि राष्ट्रवाद की अफ़ीम यहां शायद बहुत कम लोग चाटना चाहते हैं. सूबे की राजनीति पर करीबी से नज़र रखने वालों की मानें तो ये कार्ड उत्तर प्रदेश, बिहार जैसी जगहों पर दौड़ सकता है. यहां ये चले तो इस पर थोड़ा संशय है. खुलकर बात करने के लिए जगज़ाहिर राजा साहब पहले तो किसी के गियर में नहीं आने वाले. बाद में समीकरण सुहावने हो जाएं तो कहा नहीं जा सकता.
देश की सबसे पुरानी पार्टी की मुखिया भले ही मंगलवार को संगठन को मज़बूत करना, निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर काम करना और पार्टी में नए सदस्यों को जोड़ने वाला मंत्र दे गईं हों. लेकिन इन सबमें बुर्ज खलीफा तो दूर की बात है, अपने हाथ की सबसे छोटी अंगुली की लंबाई के बराबर चलना वश की बात नहीं. कांग्रेस की दलित सिख और जाट सिख की जुगलबंदी के साथ मैदान में उतरने की रणनीति आख़िर कितना रंग दिखाएगी, ये तो समय ही बताएगा लेकिन इस पर कितना पलीता लगेगा, ये आज के सम्मेलन से दिवाली में फूटने वाले अनार की तरह जगज़ाहिर हो गया है.
कॉन्‍फ्रेंस में अमरिंदर ने ये भी साफ़-साफ़ जता दिया कि किसान आंदोलन को लेकर ही सिर्फ़ मैंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाक़ात की, ताकि कोई हल निकले. और मैं कल यानि वीरवार को भी दिल्ली में रहूंगा ताकि इसका कोई समाधान निकल सके. अकेले मैं ही नहीं मेरे साथ 25 और पंजाब के लोग भी बात करने और समाधान निकालने के लिए अमित शाह के पास जा रहे हैं. अब ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि वो किसानों के सॉल्यूशन के लिए दिल्ली की दौड़ लगा रहे हैं या फिर अपने आंदोलन की मज़बूत ज़मीन तैयार कर पंजाब को फ़तह करने की.
और आख़िर में बात थोड़ा निजी है, उस पड़ोस वाली की, जिस पर पूरा आलम कानाफूसी छोड़कर दिनदिहाड़े बतिया रहा है. पड़ोस की उन पत्रकार को लेकर जो आज आएं बाएं बक रहे हैं, वो पहले आखिर क्यों चुप थे? जब चौंधियाते कमरे में बैठकर उन्हें कुर्सी तोड़ते देखा जा रहा था. ख़ैर अरुसा आलम पर जिसको जो बोलना है वो बोले, पर इशारों को अगर समझो तो राज़ को राज़ रहने दो.
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