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संगीत और हत्या में भला क्या रिश्ता हो सकता है? वैसे तो क्रूरता का कोई राग नहीं होता
अजय बोकिल
संगीत और हत्या में भला क्या रिश्ता हो सकता है? वैसे तो क्रूरता का कोई राग नहीं होता, लेकिन पंजाबी संगीत इंडस्ट्री में लगता है दोनों हाथ में हाथ डाले हुए हैं। वरना एक गायक को गैंगस्टर गिरोह सरेआम मार दे और दूसरे गैंगस्टर गिरोह इस मौत का बदला लेने की कसमें सार्वजनिक रूप से कसमें खाएं, इसे आप क्या कहेंगे? यह देवी सरस्वती की साधना तो नहीं ही है।
दरसअल मस्ती और संगीत, पंजाब की फिजाओं में रचा-बसा है। पंजाबी संगीत की आत्मा लोक संगीत है। पश्चिमी ताल और रिदम से मिलकर अब यह आंचलिक से ग्लोबल की शक्ल अख्तियार कर चुका है। पश्चिमी पाॅप के साथ पंजाबी भांगड़ा ने जिस तेजी के साथ कदमताल की है, वैसा देश की दूसरी भाषाओं में कम ही हुआ है। ऐसे माहौल में एक युवा पंजाबी गायक शुभ दीप सिंह उर्फ सिद्धू मूसेवाला की दिन दहाड़े हत्या ने पूरे संगीत जगत को हिला दिया है।
यूं तो संगीत की दुनिया इन दिनो बड़े झटकों से गुजर रही है। फरवरी में सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के निधन ने संगीत प्रेमियों को गमगीन किया तो मई में संतूर के पर्याय शिवकुमार शर्मा ने आंखें मूंद लीं। मई में दो और गायक असमय चल बसे। मलयाली गायक एडावा बशीर और बाॅलीवुड के मशहूर सिंगर के.के. ने स्टेज परफार्मेंस करते हुए दुनिया को अलविदा कह दिया।
इन मौतों को लेकर भी कई संदेह जताए जा रहे हैं, लेकिन गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या ने तो सुरों और अपराध की दुनिया के असुरों के भयानक घालमेल को बेनकाब कर दिया है। यह वाकई बड़ा सवाल है कि पंजाब की मस्ती भरी गायकी में जुर्म का यह नशा कैसे बुरी तरह घुल मिल गया है?
पंजाब को उसकी सम्पन्नता की लगी नजर
लगता है पंजाब को उसकी सम्पन्नता की ही नजर लग गई है। कभी खेती, शौर्य और दिलदारी में नंबर रहने वाला पंजाब आज ड्रग्स, मानव तस्करी, आतंकवाद और अब संगीत से जुड़े गैंगस्टरों के कारण ज्यादा चर्चा में है। सिद्धू को क्यों मारा गया, इसकी अभी पुलिस जांच चल रही है, लेकिन प्राथमिक तौर पर जो जानकारी सामने आ रही है, उसके मुताबिक पंजाबी गायकों के तार भी पेशेवर गैंगस्टरो से जुड़े हुए हैं।
ये गैंग गायकों का अपने अपने ढंग से इस्तेमाल करते हैं। देश में बाॅलीवुड की म्यूजिक इंडस्ट्री आज करीब 19 अरब रूपए की है, जिसके 2024 तक बढ़कर 28 अरब रु हो जाने की उम्मीद है। इसमें भी एक बड़ा हिस्सा पंजाबी संगीत उद्योग का है, जिसका मूल्य करीब 800 करोड़ रु बताया जाता है और यह लगातार बढ़ रहा है।
सोशल मीडिया ने नए गायकों को बहुत कम समय और उम्र में लोकप्रिय और मालदार होने का रास्ता खोल दिया है। इसका एक कारण यह भी है कि पंजाबी म्यूजिक इंडस्ट्री का बाजार न सिर्फ भारत बल्कि एशिया के कई देशों, ब्रिटेन, यूएसए, कनाडा और आस्ट्रेलिया तक है। बल्कि यूं कहें कि दुनिया में पंजाबी जहां जहां बसे हैं, पंजाबी संगीत वहां के लोगों को दीवाना किए हुए है।
पंजाबी संगीत का समृद्ध इतिहास
इस देश में बोलती फिल्मों के पहले पंजाब में ढाड़ी और दास्तानगो समूहों का संगीत काफी लोकप्रिय था। उसी जमाने में ग्रामोफोन रिकाॅर्ड भी मकबूल होने लगे थे। उनमें भारतीय और कुछ पश्चिमी साजों का इस्तेमाल होता था। ये समूह अक्सर मेले और समारोह में अपनी कला पेश करते थे। आजादी के बाद लोक संगीत से प्रेरित पंजाबी संगीत की रिकाॅर्डिंग 1950 के आसपास शुरू हुई।
'लालचंद यमला जट्ट' उस जमाने के प्रमुख गायक हुआ करते थे। हालांकि वो दलित समुदाय से थे। लालचंद को ही पंजाबी लोक वाद्य तुम्बी ( इकतारा) विकसित का श्रेय जाता है। आज भी पंजाबी गाने बगैर इकतारा के नहीं हो सकते। एक दशक बाद पंजाबी लोक संगीत में फिर बदलाव आया।
स्थानीय कवियों और लोकगायकों द्वारा पंजाबी में लिखे गानो का दौर शुरू हुआ। ये गाने अमेरिका, कनाडा और यूके में भी लोकप्रिय होने लगे। कई बार इनमें बाॅलीवुड के फिल्मी गानों की मिमिक्री भी होती।
इस दौर के प्रमुख लोक गायकों में सिंह मस्ताना, सुरिंदर कौर प्रमुख थे। 1980 के बाद पंजाबी संगीत उद्योग में फिर बदलाव आया। तब तक टेपरिकाॅर्डर और कैसेट प्लेयरों का जमाना आ चुका था। रिकार्ड प्लेयरों का दौर जा रहा था। रिकाॅर्डिंग की सुविधाएं बढ़ गई थी। इस दौर के गीतों में पंजाबी लोक वाद्यों का इस्तेमाल बहुत बढ़ गया। गाने भी शोर भरे और तेज गति के होने लगे। इस दौर के नामी गायको में के.एस.नरूला और चरणजीत आहूजा का नाम लिया जाता है।
1990 के दौर में पंजाबी लोक संगीत में लोक नृत्य भांगडा की रिदम का पाॅप म्यूजिक के साथ मेल का नया और बेहद लोकप्रिय प्रयोग शुरू हुआ। यह पंजाबी नृत्यों की मस्ती और पश्चिमी रिदम का मणि कांचन योग साबित हुआ। इस पंजाबी पाॅप को विदेश में बसे पंजाबियो में काफी लोकप्रियता मिली।
आज तो पंजाबी संगीत बाॅलीवुड का भी मुख्य संगीत सा बन गया है। इस में केवल रिदम ही महत्वपूर्ण है, कविता और भाव गौण रहते हैं। भारत में भी नई पीढ़ी को यही संगीत ज्यादा पसंद है।
पंजाबी म्यूजिक इंडस्ट्री की पहचान
बाॅलीवुड में अतीत में फिल्म संगीत के सुनहरे दौर, जिसमें कर्णप्रिय मेलोडी, अलौकिक सुरों के साथ शब्द और भाव की भी समान महत्ता थी, अब गुजरे जमाने की बात हो चुकी है। क्योंकि संगीत अब सुनने या महसूसने की बजाय महज बेतरह नाचने की चीज ज्यादा है। गानों में बोल अभी भी होते हैं, लेकिन बहुत हल्के फुल्के। डिजीटल तकनीक ने इसे और पाॅपुलर बना दिया है।
'पंजाबी फ्यूजन' संगीत
संगीत में भी पारंपरिक वाद्यों जैसे तुम्बी, चिमटा, खंजड़ी, काटो और अलगोजा की जगह शोर भरे डिस्को संगीत वाद्यों ने ले ली है। हालांकि ढोल की महत्ता अभी कायम है। जानकार इसे 'पंजाबी फ्यूजन' संगीत कहते हैं। इसी बीच रिमिक्स का दौर भी आया। इस दौर के मुख्य पंजाबी गायको में बल्ली सागू, सुखविंदर शिंदा, बी बल्ली सागू आदि शामिल हैं। पंजाबी शैली में हिंदी में नए प्रयोग दलेर मेंहदी ने भी किए।
आज पंजाबी म्यूजिक इंडस्ट्री की मुख्य पहचान अब पंजाबी और वेस्टर्न संगीत का मिक्स है। अकेले कनाडा में ही पंजाबी संगीत उद्दयोग में 80 फीसदी तक ही वृद्धि हुई है। पंजाबी संगीत झूमने और नाचने वाला संगीत है, जो उस युवा पीढ़ी को बहुत सूट करता है, जो जिंदगी को एक पल में जी लेना चाहती है।
अब तो पंजाबी संगीत की लोकप्रियता का एक बड़ा माध्यम यू-ट्यूब बन चुका है। मोहाली पंजाबी संगीत की बड़ी फैक्ट्री बन चुका है। नए नए गायक आते हैं और जल्द ही काफी पैसा कमाने लगते हैं।
सिद्धू मूसेवाला की हत्या के पीछे भी असल कारण यह पैसा ही है। खासी कमाई के चलते गैंगस्टर और दो नंबर की कमाई वाले कई लोग इस उद्दयोग में पैसा लगा रहे हैं और मुनाफा भी कमा रहे हैं। इससे भी आगे जाकर कई गैंगस्टर गायकों और पंजाबी संगीत कंपनियों से चौथ वसूली भी कर रहे हैं। जिन सिद्धू मूसेवाला की असाल्ट राइफलों से हत्या हुई, वो खुद भी पंजाबी संगीत में गन कल्चर और हिंसा को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार रहे हैं।
पंजाबी गायकों की जबरदस्त कमाई
पंजाबी संगीत से गायकों की कमाई कितनी जबर्दस्त है, इसका अंदाजा इस इंडस्ट्री में चल रही खबरों से लगाया जा सकता है। बताया जाता है कि जाने माने पंजाबी गायक शेरी मान के पास साढ़े 6 अरब रुपये., गुरूदास मान सवा 4 अरब रुपये, जाजी बी 4रुपये, यो यो हनी सिंह 2 अरब रुपये, हार्डी संधू रुपये.की सम्पत्ति है। यह सूची और भी लंबी हो सकती है।
खुद 28 वर्ष के सिद्धू मूसेवाला की सम्पत्ति 30 करोड़ रुपये की बताई जाती है। सिद्धू एक गाने के 6 से 8 लाख रुपये चार्ज करते थे। यही बेतहाशा कमाई पंजाबी संगीत उद्दयोग को लगी दुश्मनों की नजर है।
इस पैसे की हिस्सेदारी में गायकों, गीत निर्माताओं, गीत वितरण कंपनियां और गैंगस्टर समान रूप से शामिल हैं। पैसे के लालच और इंडस्ट्री पर अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए वो एक दूसरे की जान लेने में भी गुरेज नहीं करते। यह खुला खेल है। शायद इसीलिए जेल में बंद आरोपी लाॅरेंस बिश्नोई ने मंजूर किया कि सिद्दू की हत्या उसी ने करवाई।
कहा गया कि एक अकाली नेता विक्की मिड्डूखेड़ा की हत्या का बदला लेने के लिए सिद्धू को मारा गया। बदले में सिद्धू समर्थक दूसरी चार गैंग्स ने सिद्धू की हत्या का बदला लारेंस के हत्यारों को मारकर लेने की कसम खाई है। यानी कि धमकियां खुले आम दी जा रही हैं।
सोशल मीडिया पर हिसाब चुकता करने की बात की जा रही है। किसी को किसी बात का डर नहीं है। पैसे की खातिर निर्मम हत्याओं का यह खेल चलता रहेगा। क्योंकि पंजाबी गायक अब गाने सुर साधना के साथ साथ जुर्म की दुनिया के तार भी तुम्बी की तरह बजाने लगे हैं। हालांकि पुलिस इस मामले में अपना काम कर रही है, लेकिन हत्यारे पकड़े जाने या फिर उन्हें सजा होने पर भी पंजाबी म्यूजिक इंडस्ट्री को लगा आपरािधता का ग्रहण शायद ही छूटे।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
Rani Sahu
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