सम्पादकीय

गुटबाजी के साइडइफेक्ट

Subhi
27 Nov 2022 2:30 AM GMT
गुटबाजी के साइडइफेक्ट
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राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गुरुवार को कांग्रेस नेता सचिन पायलट के खिलाफ दिया गया आक्रामक बयान न तो अचानक आया है और न ही इसे अप्रत्याशित माना जा सकता है।

नवभारत टाइम्स; राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गुरुवार को कांग्रेस नेता सचिन पायलट के खिलाफ दिया गया आक्रामक बयान न तो अचानक आया है और न ही इसे अप्रत्याशित माना जा सकता है। इसकी टाइमिंग जरूर कांग्रेस आलाकमान के लिए परेशानी पैदा करने वाली है, लेकिन इसके पीछे पार्टी में पर्दे के पीछे चलने वाली गतिविधियां हैं। पायलट और गहलोत दोनों के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर रस्साकशी के चलते पार्टी में इतनी बार और इतनी बड़ी उठापटकें हो चुकी हैं कि अब उसमें किसी तरह का रहस्य नहीं रहा।

आश्चर्य की बात कुछ हो सकती है तो यही कि दोनों गुटों में दुश्मनी की हद तक जाने वाली कड़वाहट और आलाकमान की ओर से इस विवाद को समय रहते हल करने की कोशिशों के बावजूद समस्या जस की तस है। जहां पायलट को यह जायज शिकायत हो सकती है कि कथित तौर पर आलाकमान का बारंबार आश्वासन मिलने के बाद भी सीएम पद से उनकी दूरी कम होने का नाम नहीं ले रही, वहीं गहलोत की यह आशंका भी निराधार नहीं है कि मौका मिलते ही पायलट कांग्रेस नेतृत्व के संरक्षण से उनकी कुर्सी छीन सकते हैं। अब जब राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान में प्रवेश करने वाली है, तब दो दिन पहले गुर्जर नेता विजय सिंह बैंसला ने पायलट को जल्दी मुख्यमंत्री बनाने की मांग करते हुए चेतावनी दे दी कि ऐसा न करने पर राजस्थान में यात्रा का विरोध होगा। हालांकि इससे पहले भी पायलट के पक्ष में दबाव बनाने की प्रत्यक्ष या परोक्ष कोशिशें होती रही हैं, लेकिन बैंसला की मांग के बाद प्रियंका गांधी के साथ पायलट भी भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए।

इससे कुछ हलकों में माना गया कि संभवतः अब पार्टी में सर्वोच्च स्तर पर पायलट के पक्ष में फैसला हो जाएगा। ऐसे में गहलोत ने अपने आक्रामक बयान के जरिए अपने समर्थकों को को ही नहीं, विरोधियों को भी आगाह कर दिया कि वह किसी भी प्रतिकूल फैसले को खामोशी से स्वीकार नहीं करेंगे। दरअसल राजस्थान का विवाद कांग्रेस नेतृत्व के लिए इधर कुआं, उधर खाई की स्थिति साबित हो रहा है। भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान पार करने से पहले कोई भी फैसला उस पर विपरीत प्रभाव डालेगा। इसके अलावा अशोक गहलोत गुजरात विधानसभा चुनावों के प्रभारी हैं। उस लिहाज से भी तत्काल उनके खिलाफ किया गया कोई फैसला ठीक नहीं होगा। राजस्थान विधानसभा चुनाव भी अगले साल ही होने हैं। ऐसे में अगर नेतृत्व परिवर्तन करना है तो उस लिहाज से भी देर करना घातक हो सकता है। लेकिन अगर कुछ न किया जाए तो उसके भी अपने नुकसान हैं क्योंकि पायलट सीएम पद से कम किसी भी चीज पर संतुष्ट होंगे इसके आसार नहीं दिख रहे। कुल मिलाकर राजस्थान विवाद कांग्रेस नेतृत्व के लिए ऐसी भूलभुलैया बन चुका है, जिससे निकलने का कोई रास्ता उसे नजर नहीं आ रहा।


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