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संसाधन सीमित हों, मांग अधिक हो तो अच्छे-खासे गणित गड़बड़ा जाते हैं। हमारे देश में ऐसा ही एक दृश्य कोरोना के टीकाकरण अभियान में नजर आ रहा है।
संजय पोखरियाल | संसाधन सीमित हों, मांग अधिक हो तो अच्छे-खासे गणित गड़बड़ा जाते हैं। हमारे देश में ऐसा ही एक दृश्य कोरोना के टीकाकरण अभियान में नजर आ रहा है। हालांकि देश में कोरोना टीकाकरण की शुरुआत इस साल के आरंभ के साथ हो गई थी, लेकिन कोविड-19 की दूसरी लहर और फिर कई तरह की अव्यवस्थाओं ने वैक्सीनेशन की चाल में सुस्ती ला दी। इसी दौरान देश में कई जगह टीकाकरण केंद्र बंद होते हुए भी नजर आए हैं। जब देश में कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर को लेकर आशंका कायम हो तो टीकाकरण के रास्ते में आ रही बाधाएं चिंता पैदा करती हैं। यहां सवाल है कि इस चिंता का हल क्या है। इसके कई जवाबों में से एक उत्तर यह है कि देश को कोरोना टीकों का उत्पादन बढ़ाने, विदेश से वैक्सीन आयात करने के साथ-साथ टीकों के कॉकटेल या मिक्स-मैच नीति पर विचार करना चाहिए।
टीकों की मिक्स-मैच या कहें कॉकटेल नीति यह है कि किसी भी व्यक्ति को जिस कंपनी का पहला टीका (डोज) लगाया गया है, उसे दूसरी खुराक किसी अन्य टीके की दी जा सकती है। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर के गांव औदही कलां और एक अन्य गांव में मई के आखिरी हफ्ते में स्वास्थ्य टीम की लापरवाही की वजह से करीब 20 लोगों को पहली खुराक में कोविशील्ड और दूसरी खुराक के रूप में कोवैक्सीन लगा दी गई। हालांकि किसी ने साइड इफेक्ट की शिकायत नहीं की। उत्तर प्रदेश से पहले महाराष्ट्र के जालना जिले में भी ऐसा ही एक मामला आया था। वहां 72 साल के एक बुजुर्ग दत्तात्रेय वाघमरे को दो अलग-अलग वैक्सीन लगा दी गई थीं। अब देश के डॉक्टर गलती से हुए मिक्स-मैच वाले इस टीकाकरण के परिणामों का अध्ययन कर रहे हैं।
मिलेगी इम्युनिटी या होगा साइड इफेक्ट: वैक्सीन के कॉकटेल से लाभ होने और या फिर ज्यादा एंटीबॉडी बनने संबंधी कुछ शोध विदेश में हुए हैं। जर्मनी के जारलैंड यूनिवर्सटिी में में ऐसा एक शोध एस्ट्रोजेनेका और फाइजर नामक दो वैक्सीनों पर किया गया। शोध में साबित हुआ कि एक ही टीके की दो खुराक लेने के बजाय दो अलग-अलग वैक्सीनों से ज्यादा मजबूत इम्युनिटी हासिल की जा सकती है। इसमें शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों को पहली खुराक एस्ट्राजेनेका और दूसरी खुराक बायोएनटेक-फाइजर की मिली थी, उनमें ऐसे लोगों के मुकाबले ज्यादा इम्युनिटी मिली जिन्होंने दोनों खुराकें एक ही वैक्सीन की ली थीं।
उल्लेखनीय है कि यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी से मंजूरी मिलने के बाद इस साल जनवरी में सभी जर्मन वयस्कों को एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन (कोविशील्ड) लगाई गई थी। हालांकि उस बीच कुछ युवतियों में वैक्सीन लगाने के बाद दिमाग में खून जमने की शिकायत हुई। इसे देखते हुए जर्मनी में अप्रैल में कोविशील्ड का इस्तेमाल 60 साल से ऊपर के लोगों तक ही सीमित रखने का फैसला किया गया, लेकिन नए अध्ययन में वैक्सीनों के कॉकटेल के फायदे देखते हुए पहली खुराक कोविशील्ड टीके की लेने वाले लोगों को दूसरी खुराक बायोएनटेक-फाइजर या मॉडर्ना वैक्सीन की दी गई। सिर्फ जर्मनी ही नहीं, ब्रिटेन में भी दो वैक्सीनों की डोज एक ही शख्स को देने में कोई नुकसान नहीं दिखा। वहां ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सटिी के एक शोधकर्ता ने पता लगाया कि अगर दो टीकों को मिक्स किया जाए तो इससे कोई बड़ा खतरा नहीं है।
हालांकि उस अध्ययन में कुछ अल्पकालिक दुष्प्रभाव होने की बात जरूर कही गई। अध्ययन में 50 वर्ष से अधिक उम्र के 830 लोगों को पहली खुराक एस्ट्राजेनेका, जबकि दूसरी फाइजर वैक्सीन की दी गई। जिन लोगों को अलग-अलग वैक्सीन की डोज दी गई, उनमें एक ही वैक्सीन की दोनों डोज लेने वालों की तुलना में कुछ साइड-इफेक्ट पाए गए। वहीं एक अन्य अध्ययन में जब 600 से अधिक लोगों को ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड और बायोएनटेक-फाइजर की वैक्सीन की दो डोज दी गईं तो विशेषज्ञों ने पाया कि वैक्सीन के ऐसे मिक्स मैच से उन्हें शक्तिशाली प्रतिरक्षा प्रणाली हासिल हुई।
जाहिर है दो वैक्सीनों के इस्तेमाल के बारे में निश्चय ही अभी कुछ संदेह बने हुए हैं। जैसे यह पूछा जा रहा है कि वैक्सीनों का कॉकटेल कोविड-19 के खिलाफ आखिर कितनी इम्युनिटी देता है। इस बारे में भारत में नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. वीके पॉल ने कहा है कि वैज्ञानिक नजरिये से देखें तो ऐसा संभव है कि लोगों को वैक्सीन का कॉकटेल दिया जाए, लेकिन इस मुद्दे पर और शोध की जरूरत है। वैसे इन सवालों के जवाब जल्दी ही मिल सकते हैं, क्योंकि इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई शोधकार्य चल रहे हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन अपने निष्कर्षो के आधार पर इस बारे में कोई परामर्श जारी कर सकता है।
अलग कार्यप्रणाली है समस्या: बात चाहे कोविशील्ड, कोवैक्सीन, स्पुतनिक-वी, फाइजर या साइनोवैक की हो, इनमें से ज्यादातर की संरचना और कार्यप्रणाली एक दूसरे से अलग हैं। इसी वजह से आम लोगों के अलावा विज्ञानी भी संशय में हैं कि वैक्सीनों का कॉकटेल बाद में कहीं कोई बड़ी समस्या न पैदा कर दे। जैसे एक खतरा यह है कि वैक्सीन का कॉकटेल एक दूसरी वैक्सीन की प्रभाविकता को कम कर सकता है। दोनों डोज में वैक्सीन अलग-अलग होने से लोगों को वैक्सीन का बूस्टर डोज नहीं मिल पाएगा। ध्यान रहे कि एक ही वैक्सीन की दूसरी खुराक को बूस्टर डोज माना जाता है, जो कि शरीर में पहली डोज से बनी एंटीबॉडीज को और मजबूत करने के लिए दी जाती है। इसके अलावा समस्या इसलिए भी हो सकती है, क्योंकि इन्हें बनाने की कार्यप्रणाली अलग है। मिसाल के तौर पर कोविशील्ड वैक्सीन को वायरस के प्रोटीन स्पाइक के आधार पर तैयार किया गया है। इसके विपरीत कोवैक्सीन का निर्माण कोविड-19 के निष्क्रिय वायरस से हुआ है। ऐसे में अगर दोनों डोज में अलग-अलग वैक्सीन दी जाएंगी तो इससे वैक्सीन के असर में अंतर आ सकता है।
यह प्रभाव सकारात्मक भी हो सकता है और नकारात्मक भी। जाहिर है कि अगर वैक्सीन का कॉकटेल कोई विशेष दुष्प्रभाव नहीं दिखाता है तो इसके कई फायदे हैं। जैसे पहला लाभ यह है कि इससे लोगों में एक ही वैक्सीन की दो खुराकें लेने के मुकाबले ज्यादा इम्युनिटी या एंटीबॉडीज हासिल हो सकती है। उल्लेखनीय है कि वैक्सीनों का असर इसी से नापा जाता है कि वैक्सीन लेने वाले व्यक्ति के शरीर में कोरोना वायरस के खिलाफ कितनी एंटीबॉडीज बनीं। साथ ही यह भी देखा जाता है कि ये एंटीबॉडीज कितनी असरदार हैं। इसी से पता चलता है कि वायरस को कोशिकाओं में जाने से रोकने में एंटीबॉडीज कितनी कारगर रहती हैं। वैक्सीनों के कॉकटेल का दूसरा बड़ा फायदा भारत जैसे ज्यादा आबादी वाले मुल्कों में टीकाकरण को रफ्तार देने में हो सकता है। यदि किसी जगह लोगों को पहले कोविशील्ड वैक्सीन दी जा चुकी है और उसकी दूसरी डोज फिलहाल उपलब्ध नहीं है तो उन्हें उपलब्ध कोवैक्सीन की दूसरी डोज दी जा सकती है, लेकिन निश्चय ही इसे केंद्र सरकार और मेडिकल एजेंसियां तय करेंगी। यह नहीं होना चाहिए कि लापरवाही या भूलवश किसी व्यक्ति को दो अलग वैक्सीनें लगा दी जाएं
अलग तरीकों से बनी हैं वैक्सीनें: कोविड-19 के खिलाफ बनीं वैक्सीनों को लेकर आम समझ यह है कि अंतत: उन्हें इंसानों के शरीर में एंटीबॉडीज बनाते हुए इम्युनिटी पैदा करनी है, ताकि लोग कोरोना वायरस की चपेट में आने से बच सकें। वास्तव में बाजार में आई ये वैक्सीनें प्राय: अलग-अलग तरीकों से बनाई गई हैं। जैसे ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका-सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड एक पारंपरिक वायरल वेक्टर टीका है। इस टीके को एडिनोवायरस का इस्तेमाल करके विकसित किया गया है, जो कि बंदरों के बीच आम सर्दी के संक्रमण का कारण बनता है। बायोएनटेक-फाइजर का कोविड रोधी टीका एक प्रकार की मैसेंजर एमआरएनए वैक्सीन है। इसे तैयार करने में वायरस के आनुवंशिक कोड के एक हिस्से का इस्तेमाल किया गया है। कोवैक्सीन को एक निष्क्रिय टीका कह सकते हैं। वजह यह है कि इसे मरे हुए कोरोना वायरस से बनाया गया है, जो कि टीके को सुरक्षित बनाता है। इस तरह की एमआरएनए वैक्सीनें कोशिकाओं को खुद प्रोटीन बनाना सिखाती हैं, ताकि शरीर में कोरोना से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा (इम्युनिटी) विकसित हो सके और एंटीबॉडीज बन सकें। अमेरिका में इस्तेमाल में लाई जा रही मॉडर्ना की कोविड वैक्सीन भी मैसेंजर एमआरएनए वैक्सीन है। रूस की कोविडरोधी वैक्सीन स्पुतनिक-वी इस मामले में थोड़ी अलग है। इसमें दो अलग-अलग किस्म के एडिनोवायरस वेक्टर इस्तेमाल में लाए गए हैं। वहीं चीन की दोनों वैक्सीनें साइनोवैक और साइनोफार्म मारे गए कोरोना वायरस के निष्क्रिय अंशों का इस्तेमाल करके ही बनाई गई हैं।
नया नहीं है मिक्स-मैच का प्रयोग: मिक्स-मैच टीकाकरण की रणनीति को वैज्ञानिक शब्दावली में हेट्रोलोगस वैक्सीनेशन कहा जाता है। कोविड-19 के खिलाफ भारत में अभी ऐसे प्रयोगों को मंजूरी मिलना शेष है, लेकिन अमेरिका के अलावा कनाडा, ब्रिटेन, स्पेन, दक्षिण कोरिया और चीन में कॉकटेल वैक्सीन के ट्रायल किए जा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि वैक्सीनों के मिक्स-मैच या कॉकटेल का प्रयोग सिर्फ कोविड-19 महामारी के विरुद्ध ही किया जा रहा है। दशकों पहले से कई अन्य संक्रमणों-जैसे कि इबोला आदि के खिलाफ इस तकनीक को आजमाया जाता रहा है। भारत में खास तौर से रोटा वायरस की वैक्सीनों के कॉम्बीनेशन को पहले ही आजमाया जा चुका है।
दरअसल कोरोना के खिलाफ दवाओं या वैक्सीन के कॉकटेल (मिक्स-मैच) की बात अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौरान के दौरान उठी थी। अक्टूबर 2020 में जब ट्रंप कोविड-19 की चपेट में आए तो इलाज के तौर पर उन्हें दो एंटीबायोटिक दवाओं का कॉकटेल दिया गया था। कैसीरीविमैब और इम्डेविमैब नामक इन दो एंटीबायोटिक दवाओं के कॉकटेल के इस्तेमाल से कोरोना से अत्यधिक संक्रमित मरीजों को लाभ होता है। ये असल में लैब में निर्मित प्रोटीन हैं जो बेहद हानिकारक पैथोजेंस (वायरस) से जंग में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली यानी इम्युन सिस्टम को मजबूत बनाते हैं। ये कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन को खत्म करते हुए मानव शरीर में उसका रास्ता रोक देते हैं।
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