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बीते 11 सालों में दोपहिया वाहनों की बिक्री सबसे कम हुई है और 7 सालों में कारें सबसे कम बिक रही हैं।
दिव्याहिमाचल.
भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय ने औद्योगिक उत्पादन, विकास सूचकांक के आंकड़े जारी किए हैं, जो अर्थव्यवस्था की धुंधली तस्वीर पेश करते हैं। फिलहाल बिल्कुल नकारात्मक स्थिति के आसार नहीं हैं, लेकिन मौजूदा वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही, जुलाई-सितंबर, 2021, में अर्थव्यवस्था की जो विकास-दर 8.4 फीसदी आंकी गई थी, वह अक्तूबर-नवंबर के दौरान घटी है। आश्चर्य है कि ये दोनों माह त्योहारी रहे हैं, लेकिन उपभोक्ता की औसत मांग और उससे जुड़ी वस्तुओं की बिक्री में बढ़ोतरी नहीं हुई है। औद्योगिक क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण खनन क्षेत्र की विकास-दर 20 फीसदी से ज्यादा थी, वह घटकर 11.4 फीसदी पर आ गई है। औद्योगिक उत्पादन और निर्माण में मात्र 2 फीसदी की बढ़त है, जो सबसे अधिक रोज़गार और नौकरियां देने वाला क्षेत्र है। बिजली का उत्पादन 3 फीसदी से कुछ अधिक ही है, लिहाजा साफ है कि उसकी खपत और मांग कम हुई है। दोपहिया, यात्री वाहनों और कारों की बिक्री और मांग करीब 20 फीसदी कम हुई है। बीते 11 सालों में दोपहिया वाहनों की बिक्री सबसे कम हुई है और 7 सालों में कारें सबसे कम बिक रही हैं।
यह चिप की वैश्विक किल्लत के कारण भी हुआ है। भारत में चिप की सबसे बड़ी आपूर्ति चीन करता था, उसे रोक दिया गया है। दलीलें देश की संप्रभुता की रक्षा की दी जा रही हैं, लेकिन आज भी रसायन जैसी कई चीजें चीन से आयात की जा रही हैं। अब भारत चिप के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के प्रयास कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने हालिया अमरीका प्रवास के दौरान सेमीकंडक्टर चिप बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों के सीईओ से संवाद किया और भारत में निवेश का आमंत्रण दिया था। बहरहाल सबसे कुरूप यथार्थ यह है कि बाज़ार से करीब 68 लाख नौकरियां खत्म हो गई हैं, नतीजतन व्यापक स्तर पर लोग बेरोज़गार हुए हैं। हालांकि उनके स्थान पर करीब 1.12 करोड़ लोगों को रोज़गार मुहैया कराने का दावा किया गया है, लेकिन उस जमात में अधिकतर दिहाड़ीदार मजदूर, रेहड़ी-पटरीवाले या छोटा-मोटा स्वरोज़गार करने वाले मजबूर लोग हैं। लोगों की औसत आमदनी घट रही है। दरअसल बड़ी कंपनियों ने ऐसी नौकरियां ही खत्म कर दी हैं। उनकी जगह तकनीक, जू़म और डिजिटल संसाधनों ने ले ली है। आज भी बहुत कर्मचारी 'वर्क फ्रॉम होम' कर रहे हैं, लिहाजा दफ्तरों में सहायक, चपरासी, राइडर आदि पदों को समाप्त किया जा रहा है। बीते दो साल के दौरान बेरोज़गारी दर एक बार भी 6.5 फीसदी से कम नहीं हुई है। अब भी औसतन 7.5 फीसदी बेरोज़गारी दर है, जबकि शहरों में करीब 9 फीसदी है। दरअसल अर्थव्यवस्था को तब टिकाऊ माना जा सकता है, जब रोज़गार की गुणवत्ता निरंतर हो। यानी उपयोगी रोज़गार उपलब्ध हों।
बेरोज़गारी के साथ महंगाई भी मौजूद है। हालांकि इस दौरान जीएसटी संग्रह 1.31 लाख करोड़ रुपए के रिकॉर्ड को छू चुका है, फिर भी औद्योगिक उत्पादन और विकास की दर 3.2 फीसदी ही है। दरअसल त्योहारी मौसम होने के बावजूद अक्तूबर-नवंबर के महीनों में उपभोक्ता वस्तुओं में -6.1 फीसदी की गिरावट आई है, जाहिर है कि बाज़ार में आम आदमी की मांग बेहद कम है। मांग कम है, महंगाई सीमाएं पार कर चुकी है, तो औद्योगिक उत्पादन और मांग पर ही असर पड़ेगा। हमारी अर्थव्यवस्था में यह नकारात्मकता अस्थायी है। संभव है कि कोरोना के 'ओमिक्रॉन' वेरिएंट की ख़बरों ने कुछ अनिश्चितता पैदा की हो, लेकिन अभी तक तो इसका संक्रमण भारत के संदर्भ में ऐसा नहीं लग रहा है कि लॉकडाउन के आसार पैदा हों। बाज़ार फिर बैठने लगें, लेकिन यह हकीकत भी कबूल करनी चाहिए कि देश में आर्थिक असमानता की खाई बहुत गहरी हो रही है। अमीर और भी ज्यादा अमीर होता जा रहा है और गरीब ज्यादा गरीब हो रहा है। नौकरियां खत्म हो रही हैं। हालांकि बड़ी कंपनियों को कुशल कामगार चाहिए, लेकिन उन्हें मिल नहीं पा रहे हैं, लिहाजा कौशल विकास क्षेत्र को तेजी से काम करना चाहिए। दरअसल अब भारत को ही मैन्यूफैक्चरिंग हब बनने की तरफ प्रयास करने होंगे, क्योंकि उस स्थिति तक व्यापक स्तर पर रोज़गार और नौकरियां पैदा नहीं की जा सकतीं।

Gulabi
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