सम्पादकीय

Shri Krishna Janmabhoomi Case: : 1968 में जो चैप्टर बंद कर दिया गया था, उसे 'हिन्दू सेना' की मांग पर फिर खोला गया

Gulabi Jagat
20 May 2022 8:04 AM GMT
Shri Krishna Janmabhoomi Case: : 1968 में जो चैप्टर बंद कर दिया गया था, उसे हिन्दू सेना की मांग पर फिर खोला गया
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संगठन 2024 में श्री कृष्ण जन्मभूमि का मुद्दा उठाएगा
एम हसन |
हिंदू पक्ष के एक वकील ने कहा कि मथुरा (Mathura) की एक दीवानी अदालत ने गुरुवार को शाही ईदगाह मस्जिद (Shahi Mosque Eidgah) को हटाने की मांग वाली एक याचिका को स्वीकार कर लिया है. इस याचिका में दावा किया गया था कि यह केशव देव मंदिर, जो कि भगवान कृष्ण का जन्मस्थान (Krishna Janmabhoomi dispute) है, की जमीन पर बनी है. हरि शंकर जैन ने कहा कि अदालत ने मामले पर कई याचिकाओं में से एक को स्वीकार कर लिया है. कृष्ण जन्मभूमि परिसर 13.37 एकड़ में फैला है. याचिका के मुताबिक मंदिर की जमीन पर मस्जिद बनी है. इस मामले में तीन मुकदमों में से दूसरा मुकदमा हिंदू सेना प्रमुख मनीष यादव ने दायर किया था. पांच अन्य वादी ने अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह के माध्यम से तीसरा मुकदमा दायर किया था.
मामलों में याचिकाकर्ताओं ने श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह के बीच 12 अक्टूबर, 1968 को हुए समझौते को चुनौती दी है. ये समझौता 1967 के सूट नंबर 43 का हिस्सा था. कृष्ण मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए शाही मस्जिद को सौंपने की मांग हर दिन तेज होती जा रही है. दिसंबर 2021 में जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कमर कस रहा था तो उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने ट्वीट कर इस मुद्दे को जोर शोर से उठाया था. उन्होंने ट्वीट में कहा था कि अयोध्या और काशी में एक भव्य मंदिर का निर्माण चल रहा है और अब मथुरा की तैयारी चल रही है.
संगठन 2024 में श्री कृष्ण जन्मभूमि का मुद्दा उठाएगा
बाद में, बलिया के बीजेपी सांसद रवींद्र कुशवाहा ने केंद्र सरकार से 1991 के कानून को निरस्त करने की मांग उठाई थी. 1991 के कानून में पूजा स्थलों से जुड़े विवादों को फिर से खोलने पर प्रतिबंध लगाया गया था और 1947 की यथास्थिति बनाए रखने की बात की गई थी. कुशवाहा ने तब कहा था कि अगर संसद द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों को निरस्त किया जा सकता है, तो 1991 के अधिनियम को वापस लेने के लिए उसी प्रक्रिया का पालन क्यों नहीं किया जा सकता है.
अखिल भारतीय हिंदू महासभा (ABHM) और पद्म विभूषण स्वामी रामभद्राचार्य ने 15 दिसंबर को चित्रकूट में हिंदू एकता महाकुंभ का आयोजन किया था. इस महाकुंभ में उन्होंने कहा था कि हिंदुओं को रामजन्मभूमि मिल गई है और अब मथुरा भी उन्हें बिना किसी देरी के दे दी जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि मथुरा में पवित्र भूमि एक मस्जिद के अवैध नियंत्रण में है और इसे मंदिर के रूप में बहाल किया जाना चाहिए. अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने दिसंबर में शाही मस्जिद में "जलाभिषेक" और "आरती" कार्यक्रम आयोजित करने की कोशिश की थी. लेकिन ये प्रयास सफल नहीं हो पाए थे.
विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने मथुरा एजेंडे को आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाने के लिए 2024 की समय सीमा तय की है. विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने हाल ही में अयोध्या में कहा था कि गर्भगृह में राम लला की मूर्ति स्थापित होने के बाद संगठन 2024 में श्री कृष्ण जन्मभूमि का मुद्दा उठाएगा. राम मंदिर को दर्शन के लिए दिसंबर 2023 तक खोला जा सकता है. यूं तो यह मुद्दा काफी समय से लंबित है. फिर भी 23 दिसंबर, 2020 को देवता (भगवान कृष्ण) की ओर से एक नया मुकदमा दायर किया गया था. इस मुकदमे में श्री कृष्ण मंदिर से सटे शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने और 13.37 एकड़ भूमि देवता को हस्तांतरण की मांग की गई थी.
सरकार ने मथुरा में 200 करोड़ रुपये की विकास परियोजनाएं शुरू की हैं
याचिकाकर्ताओं ने जन्मस्थान सेवा संघ और मस्जिद समिति के बीच 12 अक्टूबर, 1968 के समझौते को चुनौती दी थी. उनकी दलील थी कि समझौते की कोई कानूनी वैधता नहीं थी क्योंकि श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट, जिसके पास स्वामित्व और शीर्षक था, वह इसका पक्ष नहीं था. इसलिए उन्होंने मांग की थी कि अदालती आदेश द्वारा भूमि का हस्तांतरण देवता के नाम पर कर दिया जाए. शाही ईदगाह मस्जिद के प्रबंधन ने याचिका पर आपत्ति जताते हुए दावा किया कि यह काफी देर के बाद दायर की गई है क्योंकि समझौता 1968 में किया गया था जबकि 1967 के केस नम्बर 43 का फैसला 1974 में पारित किया गया था. इस मुद्दे को जीवित रखने की कोशिश चल रही है. इसी बीच योगी आदित्यनाथ सरकार ने मथुरा में 200 करोड़ रुपये की विकास परियोजनाएं शुरू की हैं. अयोध्या और वाराणसी के अलावा सरकार का ध्यान अब मथुरा के समग्र विकास पर केंद्रित हो गया है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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