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- श्रीकृष्ण हैं भारत की...

हृदय नारायण दीक्षित। श्रीकृष्ण परिपूर्णता हैं। वे इकाई हैं और अनंत भी। प्रकृति की चरम संभावना। सहज संसारी। असाधारण मित्र। अर्जुन से यारी हो गई तो उसका रथ हांका। उसे विषाद हुआ। संपूर्ण तत्व-ज्ञान उड़ेल दिया। संशय नहीं मिटा तो दिखा दिया विश्वरूप। हम सब विश्व में हैं। विश्व का भाग हैं। विश्व में रमते हैं। लेकिन विश्वदर्शन में रस नहीं लेते। सूर्योदय के उगने का भी दर्शन नहीं करते। हवाएं सहलाती आती हैं, हम उन्हें धन्यवाद भी नहीं देते। अनेक रूपों से भरा-पूरा यह विश्व हमारे भीतर विस्मय नहीं पैदा करता। गीताकार के अनुसार श्रीकृष्ण ने अपने भीतर विश्वरूप दिखाया। सच है यह बात। हमारे आपके सबके भीतर भी है विश्वरूप। श्रीकृष्ण जैसा मित्र मिले तो बात बने, या अर्जुन जैसे विषादी जिज्ञासु हों हम। तो बन सकती है बात। श्रीकृष्ण ऐसी ही संभावना हैं। नाचते अध्यात्म के रसपूर्ण प्रतीक। नटखट, मनमोहन और बिन्दास रसिया।
