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- श्रमेव जयते!
हम सब ऐसे बहुत से लोगों को जानते हैं जो सफल हैं, बहुत सफल हैं, प्रसिद्ध हैं और पैसा सचमुच उनके हाथ की मैल है। हम ऐसे लोगों को भी जानते हैं जो प्रतिभाशाली थे, सफलता की राह पर थे लेकिन फिर धीरे-धीरे पिछड़ते चले गए। अच्छे नेता, अच्छे प्रशासक, अच्छे अभिनेता, अच्छे खिलाड़ी, लिस्ट लंबी है। जो प्रतिभाशाली थे, उनकी शुरुआत बहुत अच्छी हुई लेकिन वे अपनी गति कायम नहीं रख सके और फिर या तो पिछड़ गए या फिर भीड़ में खो ही गए। क्या फर्क होता है उनमें जो आगे बढ़ते रहते हैं और वो जो पिछड़ जाते हैं? मैं व्यक्तिगत रूप से ऐसे बहुत से लोगों से मिलता रहा हूं जो इन दोनों श्रेणियों में आते हैं, यानी वो जो सफल हैं और वो भी जो किसी भी कारण से सफलता का वह मुकाम नहीं छू सके, जिसके कि वे काबिल थे। आज मैं खिलाडि़यों की एक ऐसी जोड़ी के बारे में बात करूंगा जिन्होंने अपनी प्रतिभा का सिक्का जमाया, वाहवाही लूटी, लेकिन उनमें से एक ऐसा है जिसे हम आज भी सम्मानपूर्वक याद करते हैं जबकि दूसरा खिलाड़ी जो कि कदरन ज्यादा प्रतिभाशाली था अपनी प्रतिभा के बावजूद धीरे-धीरे चमक गंवा बैठा और अपनी उस मंजि़ल से वंचित रह गया जिसका कि उसे हकदार होना चाहिए था। मैं बात कर रहा हूं दो स्टार क्रिकेटरों सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली की।