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विकास सारस्वत : यूरोप से उपजा उपनिवेशवाद जिस अहंकार और स्वदेशी संवेदनाओं के दमन में निहित था, उसका पता उपनिवेशवाद को उचित ठहराने वाली समकालीन मानसिकता में मिलता है। अमेरिकी महाद्वीप पर अपने कब्जे को जायज ठहराने के लिए स्पेन ने उस जनादेश का सहारा लिया, जिसके तहत पोप ने गैर ईसाई विश्व पर ईसाई शासकों का नैसर्गिक अधिकार घोषित किया था। मूलत: आर्थिक कारणों से उपजे उपनिवेशवाद को सिर्फ ईसाई रूढ़िवादियों का ही समर्थन प्राप्त नहीं था। जॉन स्टुअर्ट मिल जैसे उदारवादियों ने भी कई प्रकार के तर्क देकर उपनिवेशवाद का बचाव किया था। साम्यवाद के प्रणेता कार्ल माक्र्स तो भारत में अंग्रेजी शासन से इतने उत्साहित हुए कि उन्होंने इस उपनिवेशवाद के दो महत्वपूर्ण उद्देश्य भी बता दिए। मार्क्स ने कहा कि ब्रिटिश शासन को एशियाई सामाजिक कल्पना को ध्वस्त कर पाश्चात्य सामाजिक मूल्यों की नींव डालनी चाहिए। यह पश्चिमी विचारधारा के दोनों छोरों पर उपनिवेशवाद की व्यापक जनस्वीकृति का ही लक्षण था कि जंगल बुक के रचयिता और नोबेल पुरस्कार विजेता रुडयार्ड किपलिंग ने अश्वेत लोगों को सभ्यता के दायरे में लाना गोरे लोगों का कर्तव्य बताया।