सम्पादकीय

अहम फैसलों का शो

Rani Sahu
17 April 2023 12:29 PM GMT
अहम फैसलों का शो
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By: divyahimachal
हिमाचल दिवस के गुणात्मक फलक पर काजा भी कमोबेश प्रदेश की उन्हीं प्राथमिकताओं को आत्मसात कर रहा है, जो कहीं अन्यत्र भी ऐसे समारोहों की शर्त बन गई हैं। हिमाचल दिवस की वचनबद्धता से निकले उत्तर से कर्मचारी व पेंशनर्स तीन प्रतिशत महंगाई भत्ता पा रहे हैं, तो हम यह मान चुके हैं कि जब भी प्रदेश को अहम फैसलों का शो करना है, तो लाभ की किश्तियां हमेशा कर्मचारियों को ढोएंगी। आखिर यही तो है हिमाचल की एकमात्र प्राथमिकता जिसके ऊपर सरकारें फिदा और बजट कुर्बान होता रहेगा। हम कर्मचारी राज्य बनकर सामाजिक व राजनीतिक प्रतिष्ठा की अहमियत में निर्णय लेते-लेते कितने कदम और चलेंगे, कोई नहीं जानता। हिमाचल दिवस से पूर्ण राज्यत्व दिवस की उपलब्धियों में प्रदेश अपना शृंगार करता रहा है, लेकिन सत्ता की ओहदेदारी में बजट की कृपा हमेशा कर्मचारी हितों के मानदंड पर खरी उतरती है। बेशक किसी भी राज्य के लिए कर्मचारी एक संपत्ति हो सकते हैं, लेकिन भविष्य के लिए उम्मीदों का सागर उठाए युवा पीढ़ी को हर लम्हे का प्रश्रय चाहिए। हिमाचल के हर अवसर की लागत का मुआयना करें, तो एक साथ कई तस्वीरों में बंटा प्रदेश दिखाई देता है। एक ओर प्रदेश की प्राथमिकताओं में सरकारी मशीनरी के मायने, व्यवहार, स्वभाव और लागत है, तो दूसरी ओर निजी क्षेत्र की उड़ान में अपेक्षाओं की खामोशी परवान चढ़ती है।
ऐसे में स्वाभाविक है कि युवा पीढ़ी क्यों निजी क्षेत्र को अपनी प्राथमिकता बनाए। काजा की गूंज में सारी महंगाई तो नहीं आई, बल्कि एक खास वर्ग के लिए इसके एवज में क्षतिपूर्ति जरूर हो गई। महंगाई तो जीवन के हर कदम और रोजगार के हर अवसर पर अपनी घिनौनी शक्ल लिए खड़ी है, लेकिन प्रदेश का साहस व समर्थन ऐसे परिवारों के लिए सुनिश्चित है जो सरकारी क्षेत्र में नौकरी कर रहे हैं। प्रदेश का सारा गणित और गणित का मकसद अगर एक खास तपके की शरण में रहेगा, तो कौन स्वरोजगार, व्यापार या नवाचार की ओर बढ़ेगा। पहले ही ओपीएस के मजमून पर मेहनत-मजदूरी की कीमत घट रही है, क्योंकि अव्यवस्थित क्षेत्र में व्याप्त अनिश्चितता अब एक रोग की तरह अवांछित कर दी गई है। आज हिमाचल की आर्थिक विडंबना यह है कि जनता के सामने राज्य की प्राथमिकताएं उधार में जलेबी पका रही हैं। कर्ज उठाकर चार कदम चलना भी अगर फेफड़े फुला रहा है, तो दरियादिली के आलम में हम कब भविष्य की प्राथमिकताओं में यथार्थवादी होंगे। बेशक सुक्खू सरकार ने वाटर सैस और शराब की बिक्री से खजाने को भरने के अभिनव प्रयोग करने शुरू किए हैं, लेकिन आमदनी की लाभार्थी तो पूरी जनता होनी चाहिए। कहना न होगा कि हिमाचल को गौरवान्वित करते इतिहास से निकले हिमाचल से पूर्ण राज्यत्व दिवस अब संकल्प दिवस होने चाहिएं, ताकि आत्मनिर्भरता के रास्ते पर हर शख्स आत्मनिर्भर हो। हम चाहें तो मंदिरों की आय को कई गुना बढ़ा कर प्रदेश की आर्थिक प्राथमिकताओं को नए सिरे से सिंचित कर दें और चाहें तो नागरिक कर अदायगी का दायरा बड़ा करके आत्मनिर्भरता के डग भर लें।
जो भी हो राज्य के संकल्प बड़े व व्यावहारिक बनाने के लिए प्राथमिकताएं बदलनी होंगी। राज्य का खाद-पानी अगर आर्थिक आत्मनिर्भरता के पौधे उगाना सीख ले, तो वित्तीय बरकतें कमाई और खर्च में संतुलन पैदा कर सकती हैं। हमारे युवाओं का एक उत्साही वर्ग अपनी कर्मठता से झंडे गाड़ते हुए बेंगलूर, हैदराबाद, पुणे, मुंबई या दिल्ली से अपने रिश्ते जोड़ रहा है, तो इस एहसास को हिमाचल दिवस पर भी जीना सीखना होगा। ये वे बच्चे हैं जो ज्यादातर निजी स्कूलों, इंजीनियरिंग या एमबीए कालेजों में संघर्ष की भाषा, उपलब्धियों की संगत तथा जीवन के नए आदर्श सीख रहे हैं, जबकि एक बड़ी पीढ़ी आज भी इस मुगालते में पैदा हो रही है कि सरकारी नौकरी तक पहुंचना ही जीवन का अधिकार और सरकार का अवतार है। क्या हम हिमाचल से पूर्ण राज्यत्व की घोषणाएं या सुर्खियां बदलते हुए युवाओं को आत्मनिर्भरता के आकाश दिखा पाएंगे या औपचारिकताओं की भी जो प्राथमिकता होगी, उसके तहत सरकारी नौकरी या नौकरी में सरकारी फायदों की पनाह ही सर्वश्रेष्ठ होती रहेगी।
Rani Sahu

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