सम्पादकीय

डीएनए टेस्ट से बच्चों के लिए मुफीद करियर बताने वालों पर क्या रोक नहीं लगनी चाहिए?

Gulabi
22 Nov 2021 8:29 AM GMT
डीएनए टेस्ट से बच्चों के लिए मुफीद करियर बताने वालों पर क्या रोक नहीं लगनी चाहिए?
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तेजी से भाग रही जिंदगी और बदलते दौर ने बच्चों से उनका बचपन न जाने कब का छीन लिया है
तेजी से भाग रही जिंदगी और बदलते दौर ने बच्चों से उनका बचपन न जाने कब का छीन लिया है. उनके कंधों पर पहाड़ जैसी पढ़ाई का भार पहले से ही था और अब एक और भार आने की तैयारी में है. खबर है कि एक स्टार्टअप कंपनी का दावा है कि वह डीएनए टेस्ट के जरिए आपके बच्चों का करियर चुनने में आपकी मदद कर सकती है. सुनने में जितना यह बेहतर लगता है, असल में उतना ही खतरनाक और विनाशकारी है. सोचिए कि जो बच्चा बड़ा होकर कुछ भी बेहतर कर सकता है, उसके पास करियर चुनने का पूरा आसमान पड़ा हो उसे अगर आप इस टेस्ट के जरिए बचपन से ही एक सीमित दायरे में बांध देते हैं तो कैसा होगा?
ऐप का दावा है कि डीएनए टेस्ट और साइकोमेट्रिक परीक्षाओं के साथ-साथ ज्योतिष विज्ञान की थोड़ी सी मदद लेकर वह ऐसा करते हैं. हालांकि विशेषज्ञ इस स्टार्टअप के दावे को पूरी तरह से अवैज्ञानिक बताते हैं और कहते हैं कि यह भविष्य में बच्चों के लिए विनाशकारी साबित होगा. विशेषज्ञों का मानना है कि डीएनए बहुत सी चीजों को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन वह कभी नहीं बता सकते कि आपका जीवन कैसे चलेगा और आपका भविष्य क्या होगा?
अब तक 60 करोड़ रुपए जुटा चुकी है कंपनी
कंपनी का नाम है जैनलिप जिसके फाउंडर और सीईओ हैं निमिष गुप्ता. द प्रिंट से बातचीत करते हुए निमिष गुप्ता ने कहा कि हमारी कंपनी पूरी दुनिया की पहली डीएनए आधारित अप स्किलिंग और रोजगार योग्यता मंच के रूप में दर्ज है. निमिष कहते हैं कि उनका यह काम पूरी तरह से साइंटिफिक एविडेंस और रिसर्च पर आधारित है. उन्होंने कहा कि मंगलवार तक उनकी कंपनी ने मार्की इन्वेस्टर्स से 60 करोड़ रुपए जुटा लिए हैं. निमिष कहते हैं कि उनका इस तरह का स्टार्टअप शुरू करने का मकसद सिर्फ और सिर्फ बच्चों के लिए करियर विकल्पों की भविष्यवाणी ही करना नहीं है, बल्कि वयस्कों के लिए उनके करियर को अपग्रेड करने में भी वह मदद करने की ओर अग्रसर हैं.
निमिष गुप्ता का कहना है कि उनके हाथ में इस्तेमाल होने वाली टेक्नोलॉजी का पूरा सार जिनोमिक्स साइकोमेट्रिक विश्लेषण और एस्ट्रोनॉमी पर आधारित है. जहां जिनोमिक्स एक व्यक्ति को आंतरिक शक्ति देगा और देखेगा कि वह क्या करने में सक्षम हैं. वहीं साइकोमेट्रिक विश्लेषण उनकी मनोस्थिति की पहचाने करेगी और एस्ट्रोनॉमी व्यक्ति के सही कैरियर के लिए तारकीय घटनाओं के माध्यम से कई विकल्पों की तलाश करेगा.
इसके लिए चुकाने होंगे 10 हज़ार रुपए
जेनलिप के इस टेस्ट की कीमत 10 हज़ार रुपए है. इसको करवाते वक्त यूजर्स को कई तरह के मूल्यांकन से गुजरना होगा. सबसे पहले डीएनए के लिए उनके लार का नमूना लिया जाएगा. इसके बाद जन्म तिथि और समय के आधार पर साइकोमेट्रिक परीक्षण और ज्योतिषी गणनायक की जाएंगी. इन परीक्षाणों से मिले हुए डेटा को आधार मानकर बच्चे या वयस्क के लिए टॉप टेन करियर विकल्पों के बारे में बताया जाएगा. इस ऐप को पब्लिक के लिए साल 2022 में लॉन्च किया जाएगा.
ऐप के दावों पर कई सवाल
इस ऐप के दावों पर जानकार सवाल उठा रहे हैं. विश्लेषकों का कहना है कि इस तरह के प्लेटफार्म पर लोगों को साइन अप करने से पहले कई तरह की सावधानियां भी बरतनी चाहिए. विशेषज्ञों का मानना है कि डीएनए हमारी शारीरिक बनावट से लेकर व्यवहार संबंधी तमाम लक्षणों तक हर चीज में अहम भूमिका निभाता है, लेकिन इसका यह कतई अर्थ नहीं होता है कि इससे यह पता लगाया जा सके कि आगे हमारा जीवन कैसे चलेगा.
यहां तक कि कुछ विशेषज्ञ तो इसे नस्लवाद की याद की तरह ही देखते हैं. उनका मानना है कि डीएनए परीक्षण अगर हमारे भाग्य का निर्धारण करते हैं तो यह निश्चित रूप से यूजिनिक्स और नस्लवाद की याद दिलाते हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि साइकोमेट्रिक्स हमारे जीवन के लिए भले ही मददगार साबित हो सकता है. लेकिन जिस तरह से यह कंपनी दावा कर रही है यह पूरी तरह से अवैज्ञानिक है और अगर छोटे बच्चों पर इस तरह का परीक्षण किया गया तो वह उनके भविष्य के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है.
बच्चों को सीमित दायरे में बांधना कितना उचित
आपने अक्सर देखा होगा कि जब बच्चे छोटे होते हैं तो उनसे कई बार पूछा जाता है, कि बेटा बड़े होकर क्या बनोगे? समय के साथ-साथ उनके सपने बदलते रहते हैं और जब बच्चे सत्रह अट्ठारह वर्ष की उम्र के हो जाते हैं तब कहीं जाकर वह कुछ तय कर पाते हैं कि वह भविष्य में क्या करेंगे. कई बार बच्चों के मां-बाप शुरू से ही उन पर दबाव बनाए रहते हैं. कि उन्हें भविष्य में क्या करना है और इसकी वजह से बच्चे गलत कदम भी उठा लेते हैं. आपको ऐसी तमाम खबरें मिल जाएंगी, जिसमें लिखा होता है कि बच्चा JEE या मेडिकल की परीक्षा नहीं पास कर पाया और उसने आत्महत्या कर ली. यह सब कुछ सिर्फ इसलिए होता है क्योंकि उनके परिवार की उनसे उम्मीदें होती हैं और जब उम्मीदों को बच्चे पूरा नहीं कर पाते हैं तो वह डिप्रेशन में चले जाते हैं और इस तरह के कदम उठा लेते हैं. सोचिए अगर बच्चों का भविष्य इस तरह के ऐप तय करने लगे और उनके माता-पिता इस पर विश्वास करके बच्चों पर दबाव बनाने लगे कि उन्हें भविष्य में वही करना है जो ऐप कह रहा है तो बच्चों पर कितना ज्यादा प्रेशर होगा. वह बच्चे कम रोबोट ज्यादा हो जाएंगे जो सिर्फ कमांड पर चलते हैं.
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