सम्पादकीय

खरीदारी से बचेगी नौकरी

Triveni
12 Oct 2020 4:38 AM GMT
खरीदारी से बचेगी नौकरी
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रिजर्व बैंक की नई मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी की पहली बैठक के बाद गवर्नर शक्तिकांत दास ने जो कुछ कहा उसका मूल स्वर यही है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| रिजर्व बैंक की नई मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी की पहली बैठक के बाद गवर्नर शक्तिकांत दास ने जो कुछ कहा उसका मूल स्वर यही है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे बुरा दौर पीछे छूट चुका है। मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी में 23.9 फीसदी की ऐतिहासिक गिरावट के बाद अब चीजें धीरे-धीरे बेहतरी की ओर बढ़ रही हैं और आने वाले महीनों में यह प्रक्रिया ज्यादा तेज होगी। विभिन्न सेक्टरों में दिख रही रिकवरी को रेखांकित करते हुए रिजर्व बैंक ने उम्मीद जताई कि जनवरी-मार्च तिमाही में जीडीपी की वृद्धि सकारात्मक हो जाएगी, हालांकि पूरे वित्त वर्ष के लिए जीडीपी में 9.5 फीसदी की गिरावट का अनुमान है।

विश्व बैंक का आकलन इस आंकड़े के 9.6 फीसदी रहने का है। जितनी बुरी हालत इकॉनमी की हो गई थी, उसे देखते हुए यह तस्वीर अच्छी ही कही जाएगी। लेकिन इससे उत्साहित होते हुए भी इस बात पर जोर देना जरूरी है कि इन अनुमानों को सच बनाने की राह आसान नहीं है। इस राह पर पहला और सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव सामने खड़ा त्यौहारी सीजन है। बेहतर भविष्य की सारी उम्मीदों का आधार यही है कि नवरात्रों से लेकर न्यू ईयर ईव तक आर्थिक गतिविधियों की रफ्तार से इकॉनमी की ठहरी हुई गाड़ी में ऐसा धक्का लगे कि वह स्टार्ट होकर फर्राटा भरने लगे। दिक्कत यह है कि अभी तक लोगों में त्योहारों को लेकर कोई खास उत्साह नहीं दिख रहा है। मिडल क्लास के जिस हिस्से की नौकरी अभी बची हुई है, वह भी कम सेलरी पर काम करते हुए आने वाले महीनों में अपनी कंपनी के पे-रोल पर बने रहने की दुआ मांग रहा है।

आरबीआई सर्वे के मुताबिक करेंट सिचुएशन इंडेक्स (सीएसआई), जो जुलाई में 53.8 दर्ज किया गया था, सितंबर में और घटकर 49.9 हो गया। इस सर्वे में लोगों से उनका अभी का हाल-चाल पूछा जाता है। डेटा बता रहा है कि आधे से ज्यादा लोगों ने इसे खराब ही बताया है। जाहिर है, लॉकडाउन हटने के बाद भी खर्चे के मामले में आम उपभोक्ताओं के हाथ नहीं खुल रहे हैं। जरूरत लोगों को यह एहसास कराने की है कि इस डर के चलते बाजार सिकुड़ा रह जाएगा और नौकरियां जाने का खतरा और बढ़ जाएगा। इसके लिए सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक को अपनी तरफ से कोई नई पहलकदमी लेनी चाहिए। कुछ विशेषज्ञ एक खास समयसीमा में लैप्स हो जाने वाले ऐसे कूपन जारी करने का सुझाव दे रहे हैं, जिनसे त्यौहारी सीजन में खरीदारी करने से ग्राहकों को कुछ फायदा मिले। मिसाल के लिए, 10, 20 और 50 हजार के ऐसे डिजिटल कूपन जारी किए जाएं जिनसे 31 दिसंबर तक खरीदारी करने पर 12, 25 और 60 हजार के सामान खरीदे जा सकें। ऐसे दूसरे उपाय भी सोचे जा सकते हैं। अभी सबसे बड़ी जरूरत अर्थव्यवस्था में हलचल पैदा करने की है ताकि लोगों की नौकरियां सलामत रहें। यह सीजन अगर सूखा निकल गया और व्यापक छंटनी का चलन चल पड़ा तो आगे चलकर स्थितियों को संभालना और भी मुश्किल होता जाएगा।

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