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By लोकमत समाचार सम्पादकीय
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के सात माह के बाद भी अनेक विश्व नेताओं के प्रयासों के बावजूद फिलहाल तो इसके खत्म होने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। दोनों पक्ष अपनी-अपनी वजहों से अड़े हैं। लगभग एक लाख से ज्यादा लोग यूक्रेन से जान बचाकर पड़ोसी देशों में शरण ले चुके हैं। युद्ध की भयावहता से बचने के लिए बड़ी तादाद में रूसी नगरिकों के भी देश छोड़ने की खबरें आ रही हैं।
स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि लगातार खिंचते जा रहे इस युद्ध के अब परमाणु युद्ध का रूप ले लेने तक की आशंका व्यक्त की जाने लगी है। इस अनिश्चितता और निरंतर बढ़ती वैश्विक चिंता के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस सप्ताह यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से फोन पर बातचीत अहम मानी जा रही है, जिसमें उन्होंने युद्ध रोकने के लिए शांति प्रयासों में भारत का योगदान देने की पेशकश की।
प्रधानमंत्री ने कहा कि युद्धग्रस्त रूस-यूक्रेन के बीच किसी भी तरह के शांति प्रयासों में भारत योगदान के लिए तैयार है। उन्होंने टकराव को जल्दी समाप्त करने और बातचीत व कूटनीति के मार्ग को आगे बढ़ाने की आवश्यकता के लिए अपने आह्वान को दोहराया। उन्होंने कहा कि टकराव का सैन्य समाधान नहीं हो सकता है। मोदी और जेलेंस्की के बीच यह बातचीत इसलिए भी अहम मानी जा रही है क्योंकि इस युद्ध के बाद से उनकी रूस के राष्ट्रपति से तो कई बार युद्ध को रोकने के बारे में चर्चा हो चुकी है लेकिन जेलेंस्की के साथ यूक्रेन युद्ध को रोकने के बारे में यह पहली बातचीत थी।
इससे पहले पीएम मोदी ने गत मार्च में जेलेंस्की से फोन पर बात की थी। उस दौरान उन्होंने मुख्य तौर पर यूक्रेन से भारतीयों को सही-सलामत निकालने के लिए जेलेंस्की का शुक्रिया अदा किया था, अलबत्ता साथ ही, पीएम ने रूस से जारी युद्ध को लेकर भी जेलेंस्की से संक्षिप्त चर्चा की थी। भारत अपने राष्ट्रीय हितों और सरोकारों को दृष्टिगत रखते हुए इस युद्ध में संतुलनकारी रवैया अपनाने के साथ ही कुछ अहम प्रस्तावों पर संयुक्त राष्ट्र में खुलकर अपना पक्ष भी रख रहा है।
एक तरफ वह यूक्रेन को मानवीय सहायता दे रहा है तो साथ ही पश्चिमी देशों द्वारा लागू आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद रूस से तेल और कोयला भी आयात करता रहा है। लेकिन इन सबके बीच सवाल है कि आखिर अपने राष्ट्रीय हितों और बदलते रणनीतिक समीकरणों के चलते भारत तटस्थता की नीति में आखिर तक कैसे संतुलन बनाए रखता है और शांति प्रयासों में योगदान देने की स्थिति में उसकी भूमिका क्या हो सकती है?
दोनों नेताओं के बीच यह बातचीत रूस द्वारा यूक्रेन के चार प्रांतों में जनमत संग्रह कराने के खिलाफ अमेरिका, आर्मेनिया द्वारा संयुक्त राष्ट्र में रखे गए प्रस्ताव पर भारत द्वारा अनुपस्थित रहने के बाद हुई। हालांकि यूक्रेन के समाचारों के अनुसार पीएम के साथ बातचीत के बाद जेलेंस्की ने कहा कि रूस जिस तरह से उसके हिस्सों पर अवैध रूप से कब्जा कर रहा है, इन हालात में उसकी वर्तमान राष्ट्रपति के साथ किसी प्रकार की कोई बातचीत नहीं हो सकती है।
दरअसल, रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के बीच रूस ने पिछले महीने यूक्रेन के दोनेत्स्क, लुहान्स्क, जेपोरिज्जिया और खेरसान में जनमत संग्रह कराया था और जनमत संग्रह के बाद खुद रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने इन चारों क्षेत्रों के रूस में विलय का ऐलान किया था। एक तरफ यूक्रेन का साथ दे रहे अमेरिका, नाटो सहित कुछ देशों के गठबंधन और दूसरी तरफ रूस के साथ खड़े चीन, ईरान, तुर्की सहित कुछ अन्य देशों का समूह आमने सामने हैं। दरअसल रूस-यूक्रेन जंग अब एक नए मोड़ पर पहुंच गई है।
युद्ध से सीधे तौर पर जुड़े देशों के अलावा भारत जैसे तटस्थ देशों सहित अन्य अनेक देशों की चिंता है कि युद्ध ने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर वैसे ही बेहद खराब असर डाला है, युद्ध को परमाणु युद्ध का रूप लेने से हर हालत में रोका जाए। यूक्रेन को लेकर रूस और अमेरिका के बीच तनाव और गहराता जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि अमेरिका अपने नाटो सहयोगियों के साथ नाटो क्षेत्र की एक-एक इंच जमीन की रक्षा के लिए पूरी तरह तैयार है।
बाइडेन का यह बयान ऐसे समय आया है, जब रूसी राष्ट्रपति ने क्रेमलिन में आयोजित एक कार्यक्रम में चार यूक्रेनी शहरों को रूस में शामिल करने वाले दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए हैं। इधर नाटो संगठन ने भी कहा है कि वह एक इंच जमीन भी रूस के पास नहीं रहने देगा। इसके लिए चाहे जिस स्तर पर जाना पड़े। इस युद्ध के कारण दुनिया भर में सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं तो बढ़ी ही हैं, इसने देशों के रणनीतिक समीकरण को बदल कर रख दिया है।
साथ ही पश्चिमी देशों द्वारा लागू प्रतिबंधों के चलते दुनिया भर में ईंधन, खनिज तेल, गैस, ऊर्जा आपूर्ति, खाद्यान्न आपूर्ति बुरी तरह से प्रभावित हुई है। युद्ध की विभीषिका जारी है। अनेक विश्व नेता इस युद्ध को समाप्त कराने के प्रयास कर रहे हैं। भारत का अंतरराष्ट्रीय शांति प्रयासों में अहम स्वर रहा है। ऐसे में भारत के सम्मुख यह एक बड़ी चुनौती होगी कि शांति प्रयासों में कोई भूमिका निभाने की स्थिति में अपने राष्ट्रीय हितों और सरोकारों के चलते तटस्थता की भूमिका के बीच संतुलन कैसे बना पाए।

Rani Sahu
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