सम्पादकीय

शोभना जैन का ब्लॉग: चीनी जासूसी जलपोत को लेकर भारत की चिंताएं

Rani Sahu
20 Aug 2022 3:00 PM GMT
शोभना जैन का ब्लॉग: चीनी जासूसी जलपोत को लेकर भारत की चिंताएं
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चीनी जासूसी जलपोत को लेकर भारत की चिंताएं
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
भारत के पड़ोस में स्थित श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर चीनी जासूसी जलपोत की आगामी 22 अगस्त तक की तैनाती भारत के लिए चिंताजनक खबर है। भारत की चिंता यह है कि इस जासूसी जहाज की निगरानी प्रणाली भारतीय प्रतिष्ठानों, विशेष तौर पर रक्षा प्रतिष्ठानों की जासूसी का प्रयास कर सकती है। भारत पारंपरिक रूप से हिंद महासागर में चीनी सैन्य जहाजों को लेकर कड़ा रुख अपनाता रहा है और श्रीलंका भी भारत के साथ इस तरह की यात्राओं का विरोध करता रहा है। इस बार हालांकि श्रीलंका सरकार ने भारत की चिंताओं और रक्षा हितों को समझते हुए शुरुआती दौर में चीन से यह यात्रा स्थगित करने के लिए कहा था, लेकिन भीषण आर्थिक तबाही के दौर और चीनी कर्ज के बोझ से दबे श्रीलंका ने 'सभी संबद्ध पक्षों से व्यापक विचार-विमर्श' का तर्क देते हुए चीन के दबाव में गत 12 अगस्त को चीनी जलपोत को मंजूरी दे दी।
यहां यह बात अहम है कि अमेरिका ने भी चीनी जासूसी जलपोत के इस बंदरगाह में डेरा डालने पर आपत्ति जताई है। चीन भले ही उसे एक 'रिसर्चशिप' कहता है, यानी एक ऐसा नौसैनिक जहाज जिसका काम समुद्र में वैज्ञानिक शोध करना है, लेकिन भारत, अमेरिका और रक्षा विशेषज्ञ बखूबी समझते हैं कि यह एक जासूसी पोत है, जिसे जासूसी के लिए तैनात किया जाता है। इसीलिए इसकी हिंद महासागर में मौजूदगी को लेकर भारत की चिंताएं इतनी गहरी हैं।
भारत से करीब 700 मील की दूरी पर स्थित चीन द्वारा तैयार और संचालित हंबनटोटा बंदरगाह में फिलहाल लंगर डाले चीन का जासूसी जलपोत 'युआन वांग 5' बैलिस्टिक मिसाइल एवं उपग्रहों का पता लगाने में सक्षम एक जासूसी जहाज है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार युआन वांग 5 चीन के नवीनतम पीढ़ी के अंतरिक्ष-ट्रैकिंग जहाजों में से एक है जिसका उपयोग उपग्रह, रॉकेट और अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्च की निगरानी के लिए किया जाता है। यह जासूसी जहाज 16 से 22 अगस्त तक इस बंदरगाह में डेरा डाले रहेगा। भारत की स्वाभाविक चिंता यह है कि जिस जगह पर ये जहाज है, वहां से वह भारत की किसी भी उस बैलिस्टिक मिसाइल को ट्रैक कर सकता है जिसका टेस्ट सेनाओं के लिए किया जाएगा। भारत को आशंका है कि चीन इस पोर्ट का इस्तेमाल सैन्य गतिविधियों के लिए कर सकता है।
गौरतलब है कि 1.5 अरब डॉलर का हंबनटोटा बंदरगाह एशिया और यूरोप के मुख्य नौवहन जलमार्ग के पास है और यह अपने स्थान के कारण रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। जब यह बंदरगाह बनने का प्रस्ताव आया था, और जब हंबनटोटा पोर्ट को श्रीलंका ने कर्ज नहीं चुका पाने के बदले 99 साल के लिए गिरवी रख दिया था, भारत तभी से इसके इस्तेमाल को लेकर चिंता जताता रहा है। वर्ष 2014 में भी श्रीलंका द्वारा अपने एक बंदरगाह पर परमाणु चालित एक चीनी पनडुब्बी को रुकने की अनुमति दिए जाने के बाद भारत और श्रीलंका के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए थे। वैसे कर्ज के नाम पर चीन कर्ज पाने वाले देशों को किस कदर बेबस कर देता है, उसे इस बात से समझा जा सकता है कि चीनी कर्ज के बोझ से दबे हंबनटोटा में जब यह जासूसी चीनी जलपोत पहुंचा तो चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन कहा कि 'युआन वांग 5' 'श्रीलंका के सक्रिय सहयोग' से हंबनटोटा बंदरगाह पर 'सफलता पूर्वक' पहुंच गया है, लेकिन वांग भीषण आर्थिक संकट से गुजर रहे श्रीलंका को वित्तीय सहायता देने के सवाल से बचते रहे।
भारत ने इस पूरी स्थिति पर साफ तौर पर अपनी आपत्ति और चिंताएं दर्ज करते हुए कहा कि वह अपनी सुरक्षा और आर्थिक हितों को प्रभावित करने वाले किसी भी घटनाक्रम पर सावधानीपूर्वक नजर रखता है। भारत ने कड़े शब्दों में कहा कि इन आक्षेपों को स्वीकार नहीं कर सकते हैं कि श्रीलंका चीनी दबाव में है। इस सबसे तिलमिलाए चीन ने कहा कि उसके उच्च तकनीक वाले अनुसंधान पोत की गतिविधियों से किसी देश की सुरक्षा प्रभावित नहीं होगी। परोक्ष रूप से भारत पर निशाना साधते हुए चीन ने कहा कि कुछ देशों द्वारा तथाकथित सुरक्षा सरोकार के नाम पर श्रीलंका सरकार पर दबाव डालना पूरी तरह से अनुचित है।
भारत के लिए यह गहरी चिंता का विषय इसलिए भी है कि यह बंदरगाह उसके पड़ोस में है और यहां इस तरह संदिग्ध गतिविधियों वाले जहाजों से उसके सुरक्षा हित गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं। अगर संप्रभुता संपन्न देश श्रीलंका चीन के दबाव में आकर इस तरह के फैसले लेता है तो इससे न केवल उसके राष्ट्रीय हित बल्कि हिंद महासागर में स्वतंत्र नौवहन और इस क्षेत्र में बसे देशों के सुरक्षा हित भी प्रभावित होंगे। एक रक्षा विशेषज्ञ के अनुसार चीन के इस क्षेत्र में ऐसे कदमों से जाहिर है कि वह भारत को उसके पड़ोसी देशों के जरिये घेरने की कोशिश कर रहा है। भारत के लिए श्रीलंका सरकार का यह कदम इसलिए भी 'असहज' है क्योंकि भारत-श्रीलंका संबंध सांस्कृतिक-सामाजिक तौर पर जुड़े रहे हैं, भारत श्रीलंका का भरोसेमंद और जरूरत पर साथ देने वाला मित्र देश रहा है। भले ही श्रीलंका सरकार का यह कदम चीनी दबाव में लगता हुआ दिखे लेकिन जरूरी है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने के साथ ही दबावों से परे हटकर ऐसे कदमों के दूरगामी परिणामों की गंभीरता पर ध्यान दे, भारत की चिंताओं, ऐसे कदमों से उसकी 'असहजता' को समझे, साथ ही हिंद महासागर में अपनी जिम्मेदारी पर भी ध्यान दे।
Rani Sahu

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