- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- शोभना जैन का ब्लॉग:...
x
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
लई दिल्ली: पिछले तीन वर्षों से 'असहज संबंधों' के दौर से गुजर रहे भारत व तुर्की के शीर्ष नेताओं के बीच गत दिनों समरकंद में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के इतर वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व तुर्की के राष्ट्रपति रशीद तैयब उर्दोगान के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने, विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक सहयोग बढ़ाने, विशेष तौर पर आपसी आर्थिक सहयोग मजबूत करने के लिए बिना किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुलाकात हुई.
कश्मीर मुद्दे को लेकर तुर्की ने दी थी तीखी टिप्पणियां
जबकि कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के करीबी माने जाने वाले उर्दोगान की तीखी टिप्पणियों के चलते दोनों देशों के बीच संबंध असहज या यूं कहें गतिरोध की सी स्थिति से गुजर रहे हों, ऐसे में बिना किसी पूर्व घोषणा के हुई इस शीर्ष स्तरीय मुलाकात पर सभी की निगाहें ठहरना तय था.
दोनों नेताओं के बीच दो बरसों में यह पहली मुलाकात थी. हालांकि इस मुलाकात के हफ्ते भर बाद ही उर्दोगान ने संयुक्त राष्ट्र की 77वीं आम सभा को संबोधित करते हुए एक बार फिर से कश्मीर का मुद्दा उठाया और कहा कि वह कश्मीर में खुशहाली और स्थायी शांति की उम्मीद और दुआ करते हैं.
इस बार संयुक्त राष्ट्र में तुर्की के राष्ट्रपति के तेवर अलग दिखे
लेकिन इस बार संयुक्त राष्ट्र में तुर्की के राष्ट्रपति के तेवर उतने तल्ख नहीं थे जैसा कि अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत मिले विशेष दर्जे को खत्म किए जाने के बाद से देखने को मिले. ऐसे में बदलते विश्व समीकरणों और विशेष तौर पर तुर्की की आंतरिक परिस्थितियों के चलते फिलहाल सोचा जा सकता है कि दोनों देशों के संबंधों में गतिरोध की स्थिति कुछ कम होने की उम्मीद है, जिसके चलते द्विपक्षीय सहयोग भी बढ़ने की उम्मीद की जा सकती है.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने क्या कहा
रिश्तों के इन समीकरणों को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची की इन टिप्पणियों से कुछ समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने इस शीर्ष मुलाकात के बाद कहा कि दोनों नेताओं के बीच बातचीत उपयोगी रही.
लेकिन साथ ही प्रवक्ता ने उनके संयुक्त राष्ट्र महासभा के संबोधन की चर्चा करते हुए कहा, 'संयुक्त राष्ट्र महासभा में जम्मू-कश्मीर का कोई उल्लेख न तो उपयोगी ही है और न ही इस उल्लेख से कोई मदद होने वाली है क्योंकि इस मुद्दे का हल शिमला समझौते के तहत द्विपक्षीय रूप से ही होना चाहिए.'
तुर्की के राष्ट्रपति द्वारा कई बार कश्मीर का मुद्दा उठाया गया है
गौरतलब है कि 2019 में जम्मू-कश्मीर को संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत मिले विशेष दर्जे को खत्म किए जाने के बाद उर्दोगान खास तौर पर कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र सहित वैश्विक मंचों पर आक्रामकता से उठाते रहे हैं. इस वजह से भारत के साथ तुर्की के रिश्तों में तनाव रहा है. कश्मीर पर उर्दोगान के पहले के बयानों को भी भारत पूरी तरह से अस्वीकार्य बताते हुए कहता रहा था कि तुर्की को दूसरे देशों की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए.
पाकिस्तान और तुर्की के संबंध काफी अच्छे है
इसके विपरीत पाकिस्तान और तुर्की के बीच संबंध भारत की तुलना में काफी अच्छे रहे हैं. उर्दोगान के आने के बाद विशेष तौर पर पाकिस्तान के साथ तुर्की के रिश्ते और भी अच्छे हुए हैं. 2017 से तुर्की ने पाकिस्तान में एक अरब डॉलर का निवेश किया है. तुर्की पाकिस्तान में कई परियोजनाओं पर काम कर रहा है. वह पाकिस्तान को मेट्रोबस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम भी मुहैया कराता रहा है. दोनों देशों के बीच प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते को लेकर अभी भी काम चल रहा है.
कश्मीर मुद्दे और एफएटीएफ को लेकर भारत ने शिप बनाने का डील किया था रद्द
एक विशेषज्ञ के अनुसार कश्मीर पर ही नहीं, तुर्की एफएटीएफ पर भी पाकिस्तान की वकालत करता रहा है. भारत ने तुर्की के अनादोलु शिपयार्ड से भारत में नेवी सपोर्ट शिप बनाने की डील को भी रद्द कर दिया था. भारत ने ये कदम कश्मीर और एफएटीएफ पर तुर्की के पाकिस्तान के साथ खड़े होने के जवाब में उठाए थे.
हाल के वर्षों में रिश्तों की चर्चा करें तो भारत और तुर्की के बीच इस दौरान आर्थिक रिश्ते, विशेष तौर पर व्यापार बढ़ा है. खास तौर पर पिछले डेढ़ दशक के मुकाबले इन वर्षों में व्यापार बढ़ा. वर्ष 2020-21 में कोरोना के बावजूद व्यापार बढ़कर 5.42 अरब डॉलर रहा.
अर्थव्यवस्था के बुरे दौर से गुजर रहे तुर्की के लिए भारत अच्छा ऑप्शन है
एक विशेषज्ञ के अनुसार दरअसल तुर्की की अर्थव्यवस्था बुरे दौर में है, ऐसे में भारत के साथ आर्थिक रिश्ते बढ़ाना उसके हित में भी है. इसी के चलते वह सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र जैसे देशों से संबंध सुधारने पर ध्यान दे रहा है.
डिप्लोमेसी की व्याख्या को देखें तो असहज संबंधों के दौर के बावजूद एक अच्छी शुरुआत कभी भी हो सकती है. अगर संबंधों को सहज बनाने में आर्थिक संबंध एक आधार बनते हैं तो उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत और तुर्की के बीच अन्य क्षेत्रों में भी व्यापक सहयोग के अवसर बन सकते हैं.
Rani Sahu
Next Story