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सम्पादकीय
शिवराज की राह मुश्किल करेगा शराबबंदी के लिए उमा भारती का पत्थर उठाना
Gulabi Jagat
15 March 2022 4:16 PM GMT
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मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती क्या राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से सीधे टकराव की राह पर निकल पड़ी हैं
मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती क्या राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से सीधे टकराव की राह पर निकल पड़ी हैं. भोपाल में लाइसेंसी दुकान पर रखीं शराब की बोतलों को पत्थर से तोड़कर उमा भारती ने यह साफ संकेत दिया है कि शराब बंदी को लेकर वे किसी भी हद तक जा सकती हैं. उमा भारती के तीखे तेवरों ने प्रदेश भाजपा की राजनीति में हलचल मचा दी है. इससे पहले भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने नौकरशाही के हावी होने को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर अप्रत्यक्ष राजनीतिक हमला बोला था. उमा भारती के पत्थर उठाने से शिवराज सिंह चौहान के सामने एक नई चुनौती आकर खड़ी हो गई है. इनमें एक चुनौती शराब ठेकेदारों में सुरक्षा भरोसा दिलाने की है. उमा भारती के तेवरों से ठेकेदार पहले से ही डरे हुए हैं.
शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाने के विरोध में रहीं हैं उमा
उमा भारती की राजनीतिक शैली बेहद आक्रामक रही है. पिछले कुछ सालों से उनके तेवर में नरमी देखी गई. शिवराज सिंह चौहान को लेकर उनके मन में एक टीस हमेशा देखी जाती है. यह टीस उनके 2005 में उनके मुख्यमंत्री बनने को लेकर है. चौहान को मुख्यमंत्री बनाए जाने के विरोध में उमा भारती ने अपने समर्थकों के साथ भाजपा छोड़ दी थी. भारतीय जनशक्ति के नाम से अलग राजनीतिक दल भी बनाया था. 2008 का विधानसभा चुनाव इसी राजनीतिक दल के चुनाव चिह्न पर लड़ा था. भाजपा में उनकी वापसी इस शर्त पर हुई थी कि वे मध्यप्रदेश के वजह उत्तरप्रदेश को अपना कार्यक्षेत्र बनाएंगी. वे उत्तरप्रदेश के चरखारी से विधायक भी रही हैं. वर्ष 2014 में वे झाँसी से लोकसभा का चुनाव लड़ी थी. चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें केन्द्र में मंत्री भी बनाया. लेकिन, 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट नहीं मिला. उमा भारती का दावा है कि वे अपने स्वास्थ्यगत कारणों से चुनाव नहीं लड़ना चाहती थी.
मध्यप्रदेश की राजनीति में होगी सक्रिय भूमिका?
दरअसल, उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद वहां उमा भारती की राजनीतिक संभावनाएं क्षीण हो चलीं थीं. वे अपने गृह प्रदेश मध्यप्रदेश की राजनीति में वापस आना चाहती थी. उत्तरप्रदेश से मुक्ति मिलते ही मध्यप्रदेश को उन्होंने अपना ठिकाना बना लिया है. उमा भारती का अपनी जाति वर्ग लोधियों खासा प्रभाव रहा है. उत्तरप्रदेश में भी इस वर्ग की आबादी राजनीतिक तौर महत्वपूर्ण रहती है. इसी वर्ग के प्रहलाद पटेल के केन्द्र में मंत्री बन जाने के बाद उमा भारती का कद जाति में भी कम हुआ है. प्रहलाद पटेल किसी दौर में उमा भारती के सबसे बड़े समर्थक माने जाते थे. कहा जाता है कि उमा भारती को शिवराज सिंह चौहान के विरोध के लिए आगे करने वाले प्रहलाद पटेल ही थे. जबकि कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेता उमा भारती का साथ छोड़कर शिवराज सिंह चौहान का पक्ष ले रहे थे. कैलाश विजयवर्गीय भी इन दिनों चौहान के विरोधियों में शामिल किए जाते हैं. हाल ही में उन्होंने एक पत्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखा था. जिसमें नौकरशाही के हावी होने का आरोप भी था. मामला कथावाचक प्रदीप मिश्रा की कथा रोकने का था.
भाजपा के भीतर उमा के आंदोलन को समर्थन मिलने की संभावना कम
वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को दस साल बाद सत्ता में लाने वाली उमा भारती ही थीं. दिग्विजय सिंह की छवि मिस्टर बंटाधार की बनाने में उमा भारती की बड़ी भूमिका रही है. उस वक्त भाजपा की राजनीति में लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती के बड़े समर्थक माने जाते थे. मौजूदा राजनीति में पार्टी के भीतर उमा भारती अकेली पड़ती दिखाई दे रही है. कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के पंद्रह माह के समय को यदि छोड़ दिया जाए तो शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री के तौर सत्रह साल से अधिक का समय हो गया है. इतने लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहने वाले वे प्रदेश के अकेले राजनेता है. उनके नेतृत्व में भाजपा ने वर्ष 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में बहुमत भी हासिल किया था.
उमा भारती की तुलना में शिवराज सिंह चौहान ठंडे दिमाग से राजनीति करते हैं. उमा भारती ने जब शराब बंदी को लेकर आंदोलन की घोषणा की तो मुख्यमंत्री चौहान की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. उन्होंने यह जन अभियान चलाने पर जोर दिया. साथ ही सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022 -2023 के लिए जो आबकारी नीति बनाई जिसमें शराब बीस प्रतिशत सस्ती कर दी गई. इसके अलावा आदिवासियों द्वारा ताड़ी और महुआ से बनाई जाने वाली शराब को हेरिटेज शराब के तौर पर खुले बाजार में विक्रय किए जाने का प्रावधान किया. सरकार ने शराब पर एक्साइज ड्यूटी भी कम कर दी. सरकार को वर्ष 2019-2020 में शराब से दस हजार करोड़ से अधिक की आय हुई थी. कोरोना काल में आमदनी गिर गई थी. राज्य में वर्तमान में 2544 अंग्रेजी और 1061 देशी शराब की दुकानें हैं. नई आबकारी नीति में देशी-विदेशी शराब एक ही दुकान पर बिकना है. जाहिर है कि इसमें दुकानों का विलय होगा. भले ही सरकार कोई नई दुकान न खोले लेकिन नई दुकानें लगी हुई दिखाई जरूर देंगी.
निशाने पर शिवराज, निगाहें सरकार पर
इस बार शिवराज सिंह चौहान के विरोध की रणनीति बदली हुई है. उमा भारती ने सीधे चौहान को निशाने पर लेने के बजाए सरकार की नीति को निशाना बनाया है. शराब बंदी का मामला ऐसा है, जिसमें महिलाओं का जन समर्थन भी उन्हें मिलेगा. राज्य में पिछले कुछ माह से नकली शराब से मौतों के मामले भी बढ़े हैं. इस कारण पार्टी शराब का विरोध करने से रोक भी नहीं पाएगी. पार्टी में असंतुष्टों का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो शिवराज सिंह चौहान के विरोध के लिए नेतृत्व की तलाश कर रहा है. शिवराज सिंह चौहान ने पिछले सत्रह साल में असंतुष्टों को कभी एक होने का मौका नहीं दिया. जो नेता विरोधी माने जाते थे वे किसी न किसी कारण हाशिए पर चले गए. फिलहाल कोई चुनौती मुख्यमंत्री चौहान के सामने नहीं है.
यद्यपि ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने के बाद की राजनीति में कई बड़े बदलाव देखने को मिले. मुख्यमंत्री चौहान और सिंधिया के बीच बेहतर समन्वय दिखाई दे रहा है. यह अनुमान भी लगाया जा रहा है कि 2023 का विधानसभा चुनाव पार्टी उनके नेतृत्व में ही लडेगी. इससे पहले पार्टी उनके अनुभव का उपयोग राष्ट्रीय स्तर पर करना चाहेगी तो इसके लिए शिवराज सिंह चौहान को वरिष्ठता और अनुभव के आधार पर पद भी देना होगा. उमा भारती 2023 के विधानसभा चुनाव तक अपनी उपस्थिति को बनाकर रखना चाहती हैं. अगले विधानसभा चुनाव के लिए राजनीति ओबीसी वोटों पर आगे बढ़ रही है. उमा भारती भी इसमें अपनी संभावनाएं तलाश कर रही हैं. 2024 में लोकसभा के चुनाव होंगे. इसके पहले मध्यप्रदेश में राज्यसभा की तीन सीट जून-जुलाई में खाली हो रही हैं. इनमें दो सीट भाजपा को मिलना तय है. ये सीट संपतिया उइके और एमजे अकबर की है. उइके आदिवासी वर्ग से हैं.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
दिनेश गुप्ता
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. सामाजिक, राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं. देश के तमाम बड़े संस्थानों के साथ आपका जुड़ाव रहा है.
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