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अपनी मिट्टी पर मंडी विश्वविद्यालय की नींव रखते शिमला विश्वविद्यालय का औचित्य कहां खड़ा होता है
अपनी मिट्टी पर मंडी विश्वविद्यालय की नींव रखते शिमला विश्वविद्यालय का औचित्य कहां खड़ा होता है, लेकिन दोनों संस्थानों के बीच कालेजों के बंटवारे को लेकर पसंद व नापसंद का माहौल उभर रहा है। आरंभिक बंटवारे में शिमला की परिधि में शिमला, सोलन, सिरमौर, किन्नौर, ऊना व कांगड़ा रखे गए हैं, जबकि अब मंडी व कुल्लू के ही कुछ कालेज नए विश्वविद्यालय की छत्रछाया में नहीं रहना चाहते हैं। ऐसे में अगर भौगोलिक रूप से मंडी में विश्वविद्यालय की आवश्यकता थी, तो फिर इसके साथ लगते जिलों को आपत्ति नहीं हो सकती थी, लेकिन यहां मसला उस इतिहास का भी है जिसे शिमला विश्वविद्यालय ने वर्षों के इम्तिहान से जोड़ा है। नए विश्वविद्यालय के औचित्य के लिए कालेज या जिला बांटना इतना आसान नहीं, फिर भी इस पहल को आकार तो देना ही पड़ेगा।
भौगोलिक दृष्टि से शिक्षा नजदीक पहुंच सकती है, लेकिन गुणात्मक नजरिए से देखें तो यह बंटवारा हो ही नहीं सकता। हमारा मानना है कि आरंभिक तौर पर मंडी विश्वविद्यालय को केवल मंडी, कुल्लू, लाहुल-स्पीति व बिलासपुर के कालेजों के साथ शुरुआत करनी चाहिए और बाद में धीरे-धीरे इसका दायरा बढ़ाया जा सकता है। शिमला विश्वविद्यालय भी जब वजूद में आया था, तो दर्जन भर कालेज ही इसके आंचल में रहे। आज की तारीख में बिलासपुर, मंडी, सोलन, हमीरपुर, धर्मशाला व ऊना जैसे बड़े कालेजों की अपनी एक विश्वसनीयता व शैक्षणिक गुणवत्ता है, जिसे यूं ही एक नए विश्वविद्यालय के सुपुर्द नहीं किया जा सकता। इस सारी धमाचौकड़ी के बीच सबसे असहाय तो करीब तीस वर्षों से चल रहे शिमला विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय अध्ययन केंद्र धर्मशाला की बेकद्री हो रही है। कायदे से इस संस्थान को अब तक विश्वविद्यालय बन जाना चाहिए था, लेकिन शिक्षा अब राजनीतिक खूंटे से बंधी गाय है, जिसे वक्त-बेवक्त आवारा छोड़ा जा सकता है।
मंडी विश्वविद्यालय के अस्तित्व से पहले जिस कैंपस की बदौलत हजारों युवा अपने जीवन के फलक पर सफल हो चुके हैं। सैकड़ों वकील, जज, प्रशासनिक अधिकारी, लेक्चरर व प्रोफेशनल पैदा कर चुके क्षेत्रीय अध्ययन केंद्र को क्या इस बंटवारे में न्याय मिलेगा। कहीं आगे चलकर शिमला बनाम मंडी विश्वविद्यालय की रस्साकशी में फैकल्टी के मायने ही अप्रासंगिक हो गए तो क्या होगा। यह तकनीकी विश्वविद्यालय के गठन पर भी हुआ, जब एमबीए जैसे पाठ्यक्रम को उसके सुपुर्द कर दिया गया था। एक वक्त था जब पहले शिमला से और बाद में धर्मशाला कालेज से निकले एमबीए युवा, रोजगार के क्षेत्र में अपना जौहर दिखाते थे। आज दर्जनों कालेज अगर एमबीए पाठ्यक्रम पढ़ाने लगे, तो सैकड़ों युवा बेरोजगार हो गए। विडंबना यह है कि स्कूल, कालेजों और मेडिकल कालेजों को औचित्यहीन बनाने के बाद सियासत पहले निजी विश्वविद्यालयों और अब सरकारी विश्वविद्यालयों से उनकी विश्वसनीयता छीन रही है।
यहां केंद्रीय विश्वविद्यालय पर हुई सियासत को कितनी बार बेपर्दा करें, लेकिन सत्य यह है कि पिछले दशक में इस संस्थान ने अपना औचित्य गंवाया है। छात्रों को डिग्री मिल गई होगी या शैक्षणिक पद बंट गए होंगे, लेकिन केंद्रीय विश्वविद्यालय की गुणवत्ता बिखर गई। अब देखते हैं कि दोनों परिसरों के बीच कितनी इमारतें, कितने प्रोफेसर और कितनी राजनीति बंटती है, जबकि किसी भी विश्वविद्यालय के लिए उचित स्थान, परिचय व फैकल्टी की प्राथमिकता जरूरी है। बहरहाल मंडी विश्वविद्यालय को इसके तर्कपूर्ण औचित्य तक पहुंचाना है, तो मेडिकल व टेक्रीकल यूनिवर्सिटियों को बंद करके इंजीनियरिंग, मेडिकल व बिजनेस स्कूलों को भी शिमला व मंडी विश्वविद्यालय के अधिकार क्षेत्र में बांट देना चाहिए।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली

Rani Sahu
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