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By: divyahimachal
शिमला नगर निगम चुनाव केवल राजनीतिक करवटों और कसौटियों की जंग नहीं, बल्कि शहरी एहसास व नागरिक जागरूकता का पैमाना भी है। नागरिक समाज की श्रेष्ठता में सवाल उस चेतना से जुड़ जाते हैं, जिन्हें उठाकर चलते हुए राजधानी शिमला कहीं बूढ़ी, कहीं थकी, कहीं हारी, तो कहीं पश्चाताप करती हुई ऐसी लाठी ढूंढ रही है, जिसके दम पर कुछ नए कदम उठाए जा सकते हैं। ये कदम घटते-बढ़ते वार्डों की शिनाख्त में भी नहीं, बल्कि राजधानी होने की पैमाइश के लिए जरूरी हैं। शिमला में हिमाचल को खोजें, तो ऊंची इमारतों के साये में अस्त-व्यस्त जिंदगी की गुमनामियों के ढेर पर खुद की खुरचने की मजबूरियां दर्ज होती हैं। मजबूरियां एक राजधानी की, शहर की, उम्मीदों की, नागरिक सुविधाओं की और पूरे प्रदेश की आंखों में विकास के उस काजल की, जो शिमला की आंखों में आंसुओं सहित बह रहा है। ऐसे में हमारी प्रतीक्षा अगर बड़े टकराव और विभिन्न पार्टियों के रंग-रोगन में सजे ख्याली पुलाव तक ही सीमित है, तो उम्मीदवारों के चेहरे नहीं, पार्टियों के दमखम में एक छोटी सत्ता का संघर्ष देखिए। शिमला के अपने दायरे, अपने मजमून हैं, जो चुनाव को बड़ी अदालत बना देते हैं। यहां स्मार्ट सिटी की सीढिय़ां हैं, लेकिन इतिहास की पाजेब पहनकर शहर कहीं ढलान से उतर कर आधुनिकता के गोबर में अपने कदम गंदे कर चुका है। इसमें दो राय नहीं कि यह नई संरचना का शहर नहीं हो सकता, लेकिन नए संकल्प तो जोड़ सकता है, वरना विभ्रम में शिमला अपनी ही कंदराओं में भटक रहा है।
जाहिर है चुनाव के मुद्दे वार्डों की परिक्रमा करेंगे और फिर सभी मिलजुल कर सियासत के परिंदे पैदा करेंगे। अप्रत्यक्ष चुनाव से मेयर पद पर प्रत्यक्ष प्रमाणिकता कैसे आएगी, यह विशुद्ध सियासी प्रश्न है, इसलिए नगर निगम की व्यवस्था अलग और कर्मठता अलग से दिखाई देगी। बहरहाल सियासी सूचियों में खुलते लिफाफे और गर्द झाड़ते नेताओं के चंगुल में शहर को एक जीत की तलाश है। राजनीतिक जीत में शहर के बीच फासलों की मुनादी करते प्रयत्न अगर सपनों के अंगूरों को खट्टा न करें, तो जनता की काबिलीयत में यह चुनाव जीता जा सकता है। चुनाव वहां जीता जाएगा, जहां शिमला सिसकता है। क्या शिमला शहर में किसी सत्ता की खोज अपरिहार्य है या उस सुकून की प्राप्ति होगी जो कभी मालरोड की सफाई पर इतराता था। भीड़ के जंगल में कितना अकेला है शिमला, फिर भी यह चुनाव सियासत की भीड़ से दरख्वास्त कर रहा कि इस बार कुछ संवेदनशील, विजन से भरपूर और सियासत से ऊपर उठे हुए कुछ पार्षद देे देना। आश्चर्य यह कि शिमला चुनाव में सियासत के बीज पूरी शिद्दत से बोए जा रहे हैं और नागरिक इच्छा है कि परिणामों के साथ शिमला के बागीचे में फूल उगेंगे। यह संभव है, लेकिन क्या इससे पूर्व न्यू शिमला में सुकून उगा पाए या स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत राजधानी ने खुद को स्मार्ट कर लिया। शिमला के अपने मायने, अपना शिष्टाचार, अपना व्यवहार व जीवन शैली रही है, लेकिन अब बरसात की धुंध भी इसकी विकृतियों को नहीं छुपा पाती। पर्यटक सीजन के उत्साह में जेब भरता एक शिमला इतना परवान चढ़ जाता है कि सारी हरियाली पहले भूरी और फिर कंक्रीट के नीचे दब जाती है। दब जाती हैं सडक़ें जब शहर का हाल पूछने पर्यटक सीजन आता है। तब नागरिक आंख उठाकर नहीं देख पाते और जो सुनते हैं, उसमें शिमला की हवाओं का स्पर्श नदारद है। इन्हीं कानों ने बार-बार सुना कि अबकि बार ट्रैफिक तंग नहीं करेगा, कोई स्काई बस आकर भीड़ को गंतव्य तक ले जाएगी। अब फिर सुनाया जा रहा है कि शिमला में रैपिड ट्रांसपोर्ट नेटवर्क का सारा बोझ पर्वतमाला के तहत रज्जुमार्ग उठा लेगा। शिमला नगर निगम चुनाव अपने साथ, अपने ही आंकड़ों के मजाक में शरीक रहता है या यह सोच पाता है कि उसे अपने भीतर राज्य की कितनी राजधानी, कितना पर्यटन, कितनी व्यावसायिक हलचल, कितने राजनीतिक मंतव्य या नागरिक रिश्ते संवारने हैं। क्या 34 वार्डों तक चुनाव की गाथा में शिमला मुखातिब होगा या इसकी पहुंच में पुन: 41 वार्डों तक की शिनाख्त की कोई वजह परिणामों में देखी जाएगी।
Rani Sahu
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