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- शिमला दूरदर्शन को...

वर्ष 1994 में शिमला दूरदर्शन की स्थापना की गई थी। देश के अन्य सभी क्षेत्रीय दूरदर्शन केंद्रों की तर्ज पर इसका उद्देश्य भी हिमाचल की लोक संस्कृति, लोक परंपराओं, साहित्य, कला व संस्कृति का संरक्षण व संवर्धन करना था। समाज के प्रत्येक वर्ग की हिस्सेदारी हो और उनकी समस्याएं व जन आकांक्षाएं इस केंद्र से प्रतिबिम्बित हों। लेकिन सच पूछें तो अनेक कारणों के चलते गत 27 सालों में यह केंद्र पंगु सा बना रहा। शुरू से ही प्रॉडक्शन स्टॉफ की यहां घोर कमी रही और कैज़ुअल स्टाफ के सहारे ये केंद्र धीमी गति के समाचारों की तरह रेंगता रहा। जालंधर या दिल्ली से दूरदर्शन केंद्रों से स्टाफ को जब-जब यहां ट्रांसफर किया गया, उन्हें शिमला की आबोहवा माफिक नहीं आई और वे यहां ज्वाइन बाद में करते और पुनः अपने पसंदीदी स्टेशन पर लौटने के लिए जुगत भिड़ाते रहते। यह केंद्र एक भी कार्यक्रम ऐसा प्रोडयूस नहीं कर पाया, जिसकी गूंज कई सालों तक सुनाई दी हो। यहां से प्रसारित होने वाले सायं 3 बजे से 7 बजे तक यानी 4 घंटे के कार्यक्रमों को केवल नैटवर्क के संचालक प्रसारित करने से गुरेज करते रहे। जब डीटीएच यानी डायरैक्ट टू होम डिश टीवी तकनीक ने पांव पसारने आरंभ किए तो हिमाचल में दर्शकों ने आमतौर पर दूरदर्शन केंद्र के कार्यक्रमों से किनाराकशी सी कर ली। प्राइवेट टीवी चैनलों का गत 25 सालों में कुकरमुत्तों की तरह जाल फैलता गया और दर्शक उनकी मनोरंजक छवि या चकाचौंध की गिरफ्त से न बच पाए। ऐसे में शिमला दूरदर्शन केंद्र सहित देश के अधिकांश केंद्र मृतःप्राय से होकर रह गए। बावजूद इसके कि इन केंद्रों ने विज्ञापन व कमर्शियल्स के रूप में करोड़ों रुपए कमाकर भारत सरकार के राजस्व कोष में इज़ाफा किया। लेकिन आलम यह है कि सरकार के एकतरफा प्रचार में संलग्न सभी दूरदर्शन केंद्र कभी भी स्वायत्त या पारदर्शी छवि का निर्माण नहीं कर पाए। ताज़ा खबर के अनुसार प्रसार भारती ने हिमाचल में फैले सात टावरों को बंद करने का निर्णय लिया है। शायद नई तकनीक के कारण। लेकिन 50 से अधिक तकनीकी अधिकारियों की नौकरी पर संकट आ गया।