सम्पादकीय

आज भी अधूरा है शिलारू खेल परिसर

Rani Sahu
10 March 2022 7:16 PM GMT
आज भी अधूरा है शिलारू खेल परिसर
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चार दशक हो रहे हैं, मगर भारतीय खेल प्राधिकरण का शिलारू प्रशिक्षण केंद्र अभी भी आधा-अधूरा पड़ा है

चार दशक हो रहे हैं, मगर भारतीय खेल प्राधिकरण का शिलारू प्रशिक्षण केंद्र अभी भी आधा-अधूरा पड़ा है। हाकी के लिए एस्ट्रो टर्फ को तो बिछे एक दशक हो रहा है, मगर चार सौ मीटर की जगह दो मीटर ट्रैक पर ही सिंथेटिक के लिए बड़ी जद्दोजहद के बाद बात बन पाई है। सिंथेटिक तो बिछा दिया है, मगर आउट फील्ड का काम अभी भी पूरा नहीं हो पाया है। यहां पर किसी भी एथलीट को खराब आउट फील्ड में जाते ही चोट लगने का खतरा बना रहता है। अच्छा होगा भारतीय खेल प्राधिकरण इसके पत्थरों को निकलवा कर अच्छी मिट्टी से फीलिंग कर जल्दी पूरा कर प्रशिक्षण व छोटी प्रतियोगिताओं के लिए इस ट्रैक को उपलब्ध करवा दे। शिलारू शिमला से पचास किलोमीटर दूर भारत-तिब्बत सीमा मार्ग पर नारकंडा से पीछे और मतियाणा से आगे स्थित है।

राजनीतिक जिद के कारण शिमला की पोटर हिल पर बनने वाला यह प्रशिक्षण केंद्र शिलारू में सही जगह न होने पर भी बनाना शुरू तो कर दिया, मगर उसका बजट मैदान समतल करवाने के लिए आज तीस साल बाद भी कम पड़ रहा है। भारतीय खेल प्राधिकरण में विलय से पहले ही राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान पटियाला अपना ऊंचाई वाला प्रशिक्षण केंद्र ऑक्सीजन क्षमता बढ़ाने के लिए देश में खोलना चाहता था और शिमला को चुन भी लिया था। भारतीय खेल प्राधिकरण ने विशेष क्षेत्र खेल योजना के अंतर्गत मध्य व लंबी दूरी की दौड़ों के लिए यहां पर एक छात्रावास भी चलाया था, मगर मैदान के अभाव में यह छात्रावास ज्यादा देर चल नहीं पाया था। अधिकतर देश के दूरदराज जन-जातीय क्षेत्रों से चुने गए धावकों को यहां रखा गया था। जब यहां सर्दियों में बर्फ पड़ जाती थी तो धावकों को दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में ट्रेनिंग दी जाती थी। कुछ हद तक यहां से जूनियर वर्ग में अच्छे परिणाम भी मिले, मगर धावकों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति तथा शिलारू में समतल मैदान न होने के कारण यह समय से पहले ही खत्म हो गया था।
कलावती, रमला, रिगजिन, गमो, सुंदर लाल सहित कई धावकों ने राष्ट्रीय स्तर पर पदक विजेता बनकर अपनी हाजिरी दर्ज करवाई थी। कल इस प्रशिक्षण केंद्र पर हाकी, एथलेटिक्स की मध्य व लंबी दूरी की दौड़ों तथा कुछ इंडोर में भारोत्तोलन, कुश्ती, मुक्केबाजी व जूडो के लिए राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर लगाए जाते हैं। भारत के लगभग सभी राष्ट्रीय स्तर के खेल प्रशिक्षण केंद्र गर्म स्थानों पर स्थित हैं। इसलिए गर्मियों में भारत के खिलाड़ी प्रशिक्षण के लिए विदेशी धरती पर जाने के लिए मजबूर होते हैं। वहां पर आज तक अरबों रुपए खर्च कर दिए हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार व भारतीय खेल प्राधिकरण अब धर्मशाला के ऊपर इंद्रुनाग के पास एक अच्छा ऊंचाई वाला प्रशिक्षण केंद्र बनाने की ओर अग्रसर है। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में जब से सिंथेटिक ट्रैक बिछा है, भारत के कई अच्छे एथलीट यहां के स्वच्छ वातावरण में ट्रेनिंग कर एशिया खेलों में स्वर्ण पदक जीत चुके हैं। 2018 एशियाड में एशियन रिकॉर्ड के साथ गोला प्रक्षेपण में स्वर्ण पदक विजेता तिजेंद्र सिंह तूर ने एशियाड से पहले छह मास तक अपना प्रशिक्षण कार्यक्रम धर्मशाला में रहकर पूरा किया था। मध्य व लंबी दूरी के मशहूर प्रशिक्षक स्वर्गीय निकलोई सहित कुछ विदेशी प्रशिक्षकों को धर्मशाला प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए बहुत अच्छा लगा है। अगर शिलारू व इंद्रुनाग के पास प्रस्तावित प्रशिक्षण केंद्र तैयार हो जाने के बाद हिमाचल प्रदेश में भी राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर लगाने के लिए अच्छे स्थान हो सकते हैं। जब अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हिमाचल प्रदेश में अपना प्रशिक्षण कार्यक्रम कर रहे होंगे तो हिमाचल प्रदेश के उभरते हुए खिलाडि़यों को प्रेरणा के साथ-साथ अच्छी तकनीक को शुरू से ही सिखाने का बेहतरीन मौका भी मिलेगा।
जब बाहर से खिलाड़ी यहां ट्रेनिंग के लिए आएंगे तो उससे हिमाचल प्रदेश में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। हिमाचल प्रदेश सरकार के युवा सेवाएं एवं खेल विभाग के साथ मिलकर हिमाचल के खेल संघों को चाहिए कि वे अपने समर कोचिंग कैम्प व राष्ट्रीय प्रतियोगिता पूर्व के कोचिंग कैम्प भी यहां लगा सकते हैं। आज हिमाचल प्रदेश का बेटा अनुराग ठाकुर भारत का खेल मंत्री है। हिमाचल प्रदेश सरकार को भी चाहिए कि वह हिमाचल प्रदेश में जहां नए प्रोजेक्ट शुरू हों, वहीं पर इन आधे-अधूरे पड़े खेल प्रोजेक्टों के लिए केंद्र से धन मांग कर पूरा करे। इस सबसे हिमाचल ही नहीं, भारत की खेलों को भी गति मिलेगी। चार दशकों बाद भी शिलारू खेल परिसर का आधा-अधूरा होना चिंता का विषय है। वास्तव में कमी यह है कि हिमाचल में आज भी खेलों के अनुकूल वातावरण नहीं है। इसलिए यह राज्य अन्य प्रदेशों से खेलों के मामले में पिछड़ा हुआ है। अगर हिमाचल में भी खेलों के लिए आधारभूत ढांचा उपलब्ध करा दिया जाए, तो प्रशिक्षण के लिए बाहर के प्रदेशों में जाने वाले खिलाड़ी यहीं पर अपना प्रशिक्षण पूरा कर सकेंगे और प्रदेश का नाम खेलों में ऊंचा कर सकेंगे।
भूपिंद्र सिंह
अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक
ईमेलः [email protected]
Rani Sahu

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