सम्पादकीय

उम्मीदों का बसेरा

Subhi
14 Aug 2021 2:57 AM GMT
उम्मीदों का बसेरा
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समाज की जटिलताओं पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का यह मानना रहा है कि अगर व्यवस्था में वंचित समुदायों के लिए उचित जगह हो और उनके जीवन से जुड़े अधिकार और न्याय सुनिश्चित किए जाएं |

समाज की जटिलताओं पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का यह मानना रहा है कि अगर व्यवस्था में वंचित समुदायों के लिए उचित जगह हो और उनके जीवन से जुड़े अधिकार और न्याय सुनिश्चित किए जाएं, तो ज्यादातर लोग कानून-व्यवस्था के दायरे से टकराव के रास्ते पर जाने से बच जाएंगे। लेकिन आमतौर पर सरकारों को ऐसे विचारों पर समय पर ध्यान देने की जरूरत नहीं लगती। शायद यही वजह है कि व्यवस्था से भरोसा टूटने जैसी समस्याएं खड़ी होती हैं और ज्यादा लंबा खिंचने पर जटिल शक्ल अख्तियार कर लेती हैं। हमारे देश में नक्सलवाद या फिर माओवाद को एक ऐसी ही समस्या के रूप में देखा जाता रहा है। मगर अब तक सरकारें ऐसे समूहों से निपटने के लिए मुख्य उपाय के तौर पर उनके साथ संघर्ष का रास्ता अपनाती रही हैं। जबकि हिंसा से हिंसा को खत्म करने का तरीका आमतौर पर अस्थायी परिणाम देने वाला रहा है। इसके बरक्स पुनर्वास के वैकल्पिक उपाय शायद ज्यादा बेहतर नतीजे देने वाले साबित हों। अब छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में सरकार जिस योजना पर काम करने जा रही है, अगर वह सही दिशा में चला तो उसके जरिए बेहतर परिणामों की उम्मीद की जा सकती है।

दंतेवाड़ा के पुलिस अधीक्षक के मुताबिक जिले में 'लोन वर्राटू' यानी 'घर वापस आइए' का अभियान चल रहा है। लेकिन अब उसके बाद के चरण पर काम शुरू हुआ है। इसके तहत आवासीय कॉलोनी विकसित की जा रही है, जहां आत्मसमर्पण कर चुके नक्सलियों को आवास के साथ-साथ रोजगार का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा, ताकि वे समाज में बेहतर जीवन जी सकें। इस योजना के तहत आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के पूर्व समूहों की ओर से उन पर खतरे सहित ग्रामीण आबादी में उनके सामने खड़ी होने वाली मुश्किलों का खयाल रखना भी एक मकसद है।
इसके लिए गांवों और उनकी आबादी में जोखिम के लिहाज से अलग-अलग इलाकों को चिह्नित करके उसी मुताबिक सुरक्षा के इंतजाम भी किए जाएंगे। यों भी अगर व्यवस्था से निराश व्यक्ति अगर फिर से उस पर भरोसा करता है तो उसे बनाए रखने की जिम्मेदारी सरकार की ही है। इसलिए अगर नक्सलवाद या फिर माओवाद का रास्ता छोड़ कर कोई व्यक्ति मुख्यधारा में लौटना चाहता है तो उसके सामने अनुकूल परिस्थितियां भी होनी चाहिए। जाहिर है, ऐसी इच्छा रखने वालों के लिए अगर सरकार पुनर्वास सहित रोजगार आदि की व्यवस्था कर रही है, तो इन्हें सकारात्मक इंतजाम माना जा सकता है।
यह किसी से छिपा नहीं है कि आमतौर पर सरकारी तंत्र या व्यवस्था में उपेक्षा और वंचना के शिकार लोग जब उम्मीद खो देते हैं तो इसका नतीजा कई बार उनके राह भटकने के रूप में सामने आता है। इस क्रम में ऐसे लोग कई बार सरकार से बगावत का रास्ता अख्तियार करने वाले समूहों के प्रभाव में भी आ जाते हैं। इसके बाद न केवल सरकार के सामने ऐसे तत्त्वों से निपटने की परेशानी खड़ी होती है, बल्कि ये लोग खुद अपनी जिंदगी को भी कई तरह के उलझनों और मुश्किलों में डाल लेते हैं।


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