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- उम्मीदों का बसेरा
समाज की जटिलताओं पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का यह मानना रहा है कि अगर व्यवस्था में वंचित समुदायों के लिए उचित जगह हो और उनके जीवन से जुड़े अधिकार और न्याय सुनिश्चित किए जाएं, तो ज्यादातर लोग कानून-व्यवस्था के दायरे से टकराव के रास्ते पर जाने से बच जाएंगे। लेकिन आमतौर पर सरकारों को ऐसे विचारों पर समय पर ध्यान देने की जरूरत नहीं लगती। शायद यही वजह है कि व्यवस्था से भरोसा टूटने जैसी समस्याएं खड़ी होती हैं और ज्यादा लंबा खिंचने पर जटिल शक्ल अख्तियार कर लेती हैं। हमारे देश में नक्सलवाद या फिर माओवाद को एक ऐसी ही समस्या के रूप में देखा जाता रहा है। मगर अब तक सरकारें ऐसे समूहों से निपटने के लिए मुख्य उपाय के तौर पर उनके साथ संघर्ष का रास्ता अपनाती रही हैं। जबकि हिंसा से हिंसा को खत्म करने का तरीका आमतौर पर अस्थायी परिणाम देने वाला रहा है। इसके बरक्स पुनर्वास के वैकल्पिक उपाय शायद ज्यादा बेहतर नतीजे देने वाले साबित हों। अब छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में सरकार जिस योजना पर काम करने जा रही है, अगर वह सही दिशा में चला तो उसके जरिए बेहतर परिणामों की उम्मीद की जा सकती है।