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By NI एडिटोरियल।
भारत के लिए संतोष की बात है कि जिस समय पास-पड़ोस के देशों में भारत बहुत प्रभाव नहीं डाल पा रहा है, उस समय बांग्लादेश ने मित्रता के अपने रुख को दोहराया है।
अपने देश में प्रतिकूल माहौल को नजरअंदाज करते हुए बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद ने भारत की सरकारी यात्रा की, इसे उनका एक साहसिक कदम कहा जाएगा। शेख हसीना को इस बात का अंदाजा जरूर रहा होगा कि इस यात्रा के बाद देश में उनके विरोधियों को उन पर हमला बोलने का नया मुद्दा मिल सकता है। यात्रा को जो परिणाम सामने है, उससे ये आशंका सच होने की गुंजाइश बन गई है। 1975 में शेख मुजीब की हत्या के बाद से भारत-बांग्लादेश रिश्तों में एक खास पहलू बांग्लादेश में धीरे-धीरे फैलती गई भारत विरोधी भावना का रहा है। स्पष्टतः निहित स्वार्थी मजहबी कट्टरपंथी तत्वों ने इस भावना को हवा दी है। इसलिए बांग्लादेश की सरकारों के सामने अक्सर यह जवाब देने की स्थिति रही है कि भारत सरकार से उनके संबंध और संपर्क में बांग्लादेश को क्या हासिल हुआ है। वरना, प्रधानमंत्रियों पर भारत के आगे घुटने टेकने का इल्जाम लगे हैँ। हाल में भारत में बने सांप्रदायिक माहौल से उन तत्वों की मुहिम को और बल प्राप्त हुआ है।
इस बार शेख हसीना की यात्रा में तीस्ता नदी के जल बंटवारे के मुद्दे पर बांग्लादेश में काफी शोर रहा। शेख हसीना नई दिल्ली में हालांकि कुशियारा नदी का 153 क्यूसेक अधिक पानी बांग्लादेश को दिलवाने का करार करने में सफल रहीं, लेकिन तीस्ता का मसला जहां का तहां लटका रह गया है। तो बांग्लादेश के जमात-ए-इस्लामी सहित कट्टरपंथी समूहों ने ये गोला दाग दिया है कि आखिर शेख हसीना क्यों भारत गईं। उन पर भारत सरकार के आगे घुटने टेकने के इल्जाम भी लगाए गए हैँ। इधर चीन के बारे में नई दिल्ली में जिस तरह शेख हसीना ने जो कुछ कहा, साफ है वह भारत की अपेक्षाओं के मुताबिक नहीं है। बाकी हुए समझौतों से दोनों देशों को चाहे जो लाभ हो, जन धारणाओं को ढालने में उससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। फिर भी भारत के लिए यह जरूर संतोष की बात है कि जिस समय पास-पड़ोस के देशों में भारत बहुत प्रभाव नहीं डाल पा रहा है, उस समय बांग्लादेश सरकार ने न्यूनतम मित्रता के अपने रुख को दोहराया है। इसके बावजूद वहां चीन की बढ़ रही पैठ पर भारत सरकार को अवश्य कड़ी नजर रखनी होगी।
Gulabi Jagat
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