सम्पादकीय

'दूसरे घर' में शेख हसीना

Gulabi Jagat
7 Sep 2022 4:20 AM GMT
दूसरे घर में शेख हसीना
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By: divyahimachal
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के लिए भारत 'दूसरा घर' है। वह इसी घर में आई हैं। राजनयिक और द्विपक्षीय संवाद और समझौतों से पहले शेख हसीना को यह याद रखना चाहिए कि भारत ने उन्हें पनाह दी, संरक्षण और सम्मान दिया और बांग्लादेश के सृजन में अहम भूमिका निभाई। भारत और उसकी सेनाओं ने बांग्लादेश के 'मुक्ति संग्राम' के मद्देनजर पाकिस्तान को बुरी तरह पराजित न किया होता, तो शायद बांग्लादेश का वजूद न होता! यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है, बल्कि ऐतिहासिक तथ्य है। बांग्लादेश के संस्थापक, सृजनकार शेख मुज़ीबुर्रहमान की हत्या के दौर में शेख हसीना और उनके बच्चों को राजधानी दिल्ली में सुरक्षित पनाह दी गई थी। बेशक वे सत्य आज प्रासंगिक न हों, लेकिन इतिहास तो चिरंतन है। यथार्थ का दस्तावेज है, लिहाजा प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के साथ संवाद के दौरान प्रधानमंत्री हसीना के भीतर यह एहसास होना चाहिए कि वह अपने 'दूसरे घर' आई हैं। यहां से ढाका लौटेंगी, तो उनकी झोली द्विपक्षीय समझौतों से लबालब होनी चाहिए, जिनके आधार पर बांग्लादेश की अवाम 2023 के आम चुनाव में उन्हें लगातार चौथी बार प्रधानमंत्री चुन सके। वह भारत-हित में भी होगा। वैसे प्रधानमंत्री हसीना बुनियादी और मानसिक तौर पर भारत-समर्थक रही हैं। उनके प्रधानमंत्री-काल के दौरान भारत-बांग्लादेश के संबंध पुख्ता और व्यापक हुए हैं। हिंदू मंदिरों को तोडऩे या ध्वस्त करने और हिंदू आबादी के उत्पीडऩ के कुछ अपवाद सामने आते रहे हैं। असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की मुहिम और संसद में नागरिकता संशोधन कानून के पारित किए जाने पर ढाका ने अपनी चिंताएं और सरोकार दिल्ली के साथ साझा किए थे। बांग्लादेश में कुछ तल्ख प्रतिक्रियाएं और प्रदर्शन भी किए गए थे, लेकिन प्रधानमंत्री हसीना को आश्वस्त किया गया कि ये व्यवस्थाएं निजी या समुदाय के स्तर पर किसी के खिलाफ नहीं हैं। विवाद शांत हो गए। गौरतलब यह है कि बांग्लादेश ने प्रधानमंत्री हसीना के कालखंड में इस्लामी आतंकियों और जेहादियों को पनाह नहीं दी है। किसी भी उग्रवादी गुट को पनाह के साथ बढ़ावा भी नहीं दिया है। यह दोतरफा सहयोग का पुख्ता आधार साबित हुआ है, नतीजतन भारत ने बहुआयामी सहयोग और समर्थन बांग्लादेश को दिया है। भारत-बांग्ला प्रधानमंत्री तय कर सकते हैं कि दोनों देश दक्षिण एशिया क्षेत्र में सबसे ज्यादा आपस में जुड़े हैं, लिहाजा पाइपलाइन में कई योजनाएं हैं। दोनों देशों के बीच दो बस-सेवा और तीन रेल-सेवाएं फिलहाल जारी हैं। विभाजन से पहले जो रेल स्टेशन थे, उनमें से एक को छोड़ कर सभी को सुचारू कर दिया गया है। जलमार्ग समझौतों ने द्विपक्षीय व्यापार और सामान की आवाजाही को आसान कर दिया है। बांग्लादेश भारतीय बंदरगाहों के जरिए भूटान और नेपाल सरीखे तीसरे देशों के साथ आसानी से कारोबार कर सकता है। दोनों देशों में ऊर्जा को लेकर महत्त्वपूर्ण सहयोग जारी है।
झारखंड में अडाणी समूह का जो थर्मल पॉवर प्लांट है, उसकी पूरी 1600 मेगावाट बिजली, 2016 के करार के तहत, बांग्लादेश को सप्लाई की जाती है। दोनों देशों के बीच तीस्ता नदी जल बंटवारे का समझौता 10 सालों से ज्यादा समय से लटका हुआ है, क्योंकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसका विरोध करती रही हैं। इस बार द्विपक्षीय शीर्ष संवाद के दौरान क्या तय किया जाता है, वह महत्त्वपूर्ण होगा। प्रधानमंत्री मोदी इस बात के पक्षधर रहे हैं कि भारत-बांग्लादेश के दरमियान विवादों को प्राथमिकता के स्तर पर निपटाया जाए। दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच चीन से रिश्तों की मीमांसा भी की जा सकती है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी बीते सप्ताह ढाका में थे। चीन खुद को बांग्लादेश का 'सबसे भरोसेमंद, दीर्घकालीन रणनीतिक साझेदार' करार देता है, लेकिन बांग्ला विदेश मंत्री ने एक साक्षात्कार में खुलासा किया कि श्रीलंका का अध्याय चेताने वाला है कि चीन से कजऱ् लेने के बाद क्या दुर्दशा हो सकती है। प्रधानमंत्री हसीना चार दिन के लिए अपने 'दूसरे घर' आई हैं। उनके समर्थक और विरोधी आकलन करेंगे कि वह क्या-क्या लेकर ढाका लौटेंगी। रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे पर संवाद होता है, तो यह देखना गौरतलब होगा कि निष्कर्ष क्या रहा है? बांग्ला घुसपैठियों पर भी कोई फैसला लिया जाता है, तो वह भी भारत-हित में होगा। बहरहाल बांग्ला प्रधानमंत्री का स्वागत है। मकसद रहना चाहिए कि दोनों देशों के ऐतिहासिक जुड़ाव ढीले नहीं पडऩे चाहिए। दोनों देशों के बीच लंबित मसलों का समाधान जल्द होना चाहिए।
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