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सम्पादकीय
बिखरता विपक्ष, आखिर क्यों नही दे पा रहा उचित विकल्प
Gulabi Jagat
22 July 2022 5:32 PM GMT
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विपक्षी दलों की एकजुटता को जोर का जो झटका राष्ट्रपति चुनाव में लगा, उससे उबरना कितना कठिन है, इसका प्रमाण तृणमूल कांग्रेस की ओर से की गई यह घोषणा है कि वह उपराष्ट्रपति के चुनाव में किसी का समर्थन नहीं करेगी-न तो सत्तापक्ष के प्रत्याशी जगदीप धनखड़ का और न ही विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा का। इस निर्णय को लेकर तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने यह तर्क दिया है कि अल्वा की उम्मीदवारी के मामले में उनसे कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया। यह तर्क इसलिए गले नहीं उतरता, क्योंकि विपक्षी नेताओं ने उनसे संपर्क-संवाद करने का प्रयास किया था।
ममता बनर्जी की ओर से अल्वा की उम्मीदवारी का विरोध किया जाना इसलिए आश्चर्यजनक है, क्योंकि जब उन्होंने राष्ट्रपति के प्रत्याशी के रूप में यशवंत सिन्हा का नाम आगे बढ़ाया था तो अन्य विपक्षी दलों ने सहर्ष अपनी स्वीकृति प्रदान की थी। इनमें कांग्रेस भी थी। यह ममता बनर्जी ही बता सकती हैं कि वह मार्गरेट अल्वा को समर्थन देने के लिए क्यों नहीं तैयार हैं, लेकिन उनके रवैये ने फिर से यह सिद्ध किया कि विपक्ष में एकता कायम होना कठिन है।
बहुत दिन नहीं हुए जब ममता बनर्जी कांग्रेस को छोड़कर अन्य विपक्षी दलों को एकजुट करने के अभियान पर निकली थीं, लेकिन इसमें वह इसलिए नाकाम रहीं, क्योंकि शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को उनकी पहल रास नहीं आई थी। इसके बाद विपक्ष को एकजुट करने में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव जुटे, लेकिन उन्हें भी सफलता नहीं मिली। इसके पहले कांग्रेस भी विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश कर चुकी है, लेकिन वह भी नाकाम ही रही।
वास्तव में विपक्षी एकता में नाकामी का एक बड़ा कारण यह है कि भाजपा विरोधी दल ऐसा कोई वैकल्पिक एजेंडा नहीं पेश कर पा रहे हैं, जो देश की जनता को आकर्षित कर सके। ले-देकर उनके पास यही कहने को होता है कि भाजपा को केंद्र की सत्ता से हटाना है। ऐसी कोशिश करने में हर्ज नहीं, लेकिन आखिर यह भी तो बताया जाए कि भाजपा को सत्ता से बाहर करने के बाद विपक्षी दल किस एजेंडे पर चलेंगे? क्या उनके पास ऐसा कोई न्यूनतम साझा कार्यक्रम है, जिस पर सभी दल एकमत हों?
इससे भी महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि उनका नेता कौन होगा? वास्तव में जब तक इन प्रश्नों का उत्तर नहीं मिलता, तब तक विपक्षी एकता आकार लेने वाली नहीं है। यदि विपक्षी दलों की एकता को बल नहीं मिल पा रहा है तो उनकी अपनी कमजोरी के कारण। निश्चित रूप से लोकतंत्र में एक सशक्त विपक्ष आवश्यक होता है, लेकिन इस आवश्यकता की पूर्ति करना सत्तापक्ष का दायित्व नहीं हो सकता।
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
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Gulabi Jagat
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