सम्पादकीय

शशिधर खान का ब्लॉग: 'अलग झंडा और संविधान' पर नगा हल संभव नहीं

Rani Sahu
23 July 2022 4:09 PM GMT
शशिधर खान का ब्लॉग: अलग झंडा और संविधान पर नगा हल संभव नहीं
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नगालैंड के विधायकों ने विद्रोही नगा गुट नेशनल सोशलिस्ट कांउसिल ऑफ नगालिम (आईएम-आइसाक मुइवा) को आमंत्रित कर विवादास्पद ‘अलग झंडा और संविधान’ जैसे मुद्दे पर बातचीत करने का केंद्र सरकार से आग्रह किया है

By लोकमत समाचार सम्पादकीय

नगालैंड के विधायकों ने विद्रोही नगा गुट नेशनल सोशलिस्ट कांउसिल ऑफ नगालिम (आईएम-आइसाक मुइवा) को आमंत्रित कर विवादास्पद 'अलग झंडा और संविधान' जैसे मुद्दे पर बातचीत करने का केंद्र सरकार से आग्रह किया है। नगा राजनीतिक मसले का सर्वसम्मत अंतिम समाधान निकालने के लिए बनी संसदीय समिति ने केंद्र से गुहार लगाई है कि एनएससीएन (आईएम) नगा नेताओं को बुलाकर इनकी अलग झंडा और अलग संविधान जैसी विवादित मांग पर जल्द-से-जल्द वार्ता की जाए, जो हल के रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा है। नगालैंड के सभी 60 विधायक और दो संसद सदस्य इस संसदीय समिति के सदस्य हैं, जिसकी हालिया बैठक में केंद्र से की गई इस अपील का प्रस्ताव पारित किया गया।
विदित हो कि नगालैंड के सभी 60 सदस्य एक ही गठजोड़ के बैनर तले खड़े हैं और यह एकजुटता सिर्फ नगा झमेले का अंतिम हल निकालने के लिए आपस में कायम की गई है। नगालैंड विधानसभा में विपक्ष है ही नहीं। भाजपा समेत सारे क्षेत्रीय /राष्ट्रीय दलों के विधायकों ने एक ही मंच पर आकर गठजोड़ कायम किया हुआ है।
इस एकीकृत सरकर का एकमात्र मकसद है कि आपसी राजनीतिक मतभेद भुलाकर नगा उग्रवादियों और केंद्र के बीच चल रही शांतिवार्ता को ठोस नतीजे पर पहुंचाने का प्रयास किया जाए। इसके लिए बनी संसदीय समिति की इसी हफ्ते हुई बैठक इस मायने में महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि नगा वार्ता सिर्फ 'अलग झंडा और संविधान' के अड़ियल रवैये के कारण बेनतीजा चल रही है।
इस सिलसिले में अगस्त, 2015 में केंद्र और एनएससीएन (आईएम) नेताओं से दिल्ली में हुई 'फ्रेमवर्क डील' का भी जिक्र किया गया, जिससे दोनों पक्षों के बीच इस समस्या में 'फाइनल डील' का रास्ता खुला। नगालैंड विधानसभा से नगा संकट का समाधान निकालने के लिए प्रस्ताव तो केंद्र में भाजपा के सत्ता में आने से पहले और उसके बाद कई बार पारित किया जा चुका है लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है, जब नगालैंड के 'लामेकर' (विधायक, सांसद) ने एक साथ केंद्र सरकार से खास तौर पर उसी मोड़ पर एनएससीएन (आईएम) नेताओं को बातचीत के लिए बुलाने कहा है, जहां समझौता वार्ता की गाड़ी बार-बार जाम में फंस जाती है।
यह मोड़/बिंदु है, नगा नेताओं की 'आजाद संप्रभु ग्रेटर नगालिम' की मांग, जिसके लिए उन्हें अपने काल्पनिक देश का 'अलग झंडा और संविधान' चाहिए। केंद्र सरकार के प्रतिनिधि ने विभिन्न नगा गुटों से अलग-अलग और साथ-साथ हालिया वार्ता गत अप्रैल में नगालैंड में की है। अन्य गुट भारत की आजादी के समय से चली आ रही इस हिंसा में सनी पेचीदा समस्या का शांतिपूर्ण समाधान निकालने के लिए रुकावट डालने वाले मुद्दे पर लचीला रुख अपनाने के पक्ष में हैं मगर सबसे मजबूत और संगठित एनएससीएन (आइसाक-मुइवा) 'अलग झंडा और संविधान' की मांग पर अड़ा है।
आधिकारिक स्तर की वार्ता 31 अक्तूबर 2019 के बाद से पटरी से उतरी हुई है, जो डेडलाइन तारीख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतिम हल के लिए तय की थी। नगालैंड विधायकों/सांसदों की संसदीय समिति अब तक के प्रयासों की समीक्षा के बाद इस नतीजे पर पहुंची कि अगस्त, 2015 की 'फ्रेमवर्क डील' के आलोक में एनएससीएन (आईएम) से अंतिम समाधान की वार्ता जल्द की जाए।
संसदीय समिति की कोहिमा में आयोजित बैठक में नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो मौजूद थे। बैठक के बाद नगालैंड सरकार के प्रवक्ता कैबिनेट मंत्री नीबा क्रोनू ने संवाददाताओं को बताया कि एनएससीएन (आईएम) के 'अलग झंडा और संविधान' की शर्त पर अड़े रहने के कारण नगा समस्या का अंतिम हल नहीं निकल पा रहा।
1947 से चली आ रही भारत ही नहीं, दुनिया की सबसे पुरानी और जटिल नगा समस्या का हल निकालने के लिए 80 से ज्यादा दौर की वार्ता के बाद 1997 में संघर्षविराम पर सहमति बनी। उससे सिर्फ इतना हुआ कि हिंसा का दौर रुका और दोनों पक्ष एक-दूसरे पर हमला न करने को राजी हुए। उसका नगा नेताओं ने यह कहकर प्रचार किया कि यह दो देशों - भारत और नगालिम सरकारों की 'सेना' के बीच 'युद्ध' रोकने के लिए 'सीजफायर' है। उसके बाद दूसरा महत्वपूर्ण मोड़ है, अगस्त 2015 की फ्रेमवर्क डील। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह दोनों ने 'ऐतिहासिक' बताया।
अप्रैल, 2022 में वार्ताकार अक्षय मिश्र एक-डेढ़ महीने तक नगालैंड में रहकर नगा नेताओं के अड्डे पर जाकर वार्ता कर खाली हाथ लौटे हैं। ताजा पहल का राजनीतिक पहलू भी है। क्योंकि 2023 के शुरू में ही नगालैंड विधानसभा का चुनाव है। नगा नेताओं को वो बात नहीं भूलनी चाहिए जो प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने विद्रोह की नींव रखनेवाले फिजो को 1952 में कहा था - ''आजाद नगालिम मैं तो क्या भारत का कोई प्रधानमंत्री नहीं दे सकता।''
Rani Sahu

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