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दोस्ती की परीक्षा
विष्णु शंकर। शशि थरूर देश के जाने माने नेता हैं. लगातार तीसरी बार तिरुवनंतपुरम से लोक सभा सांसद चुने गए हैं. बड़े लेखक और बुद्धिजीवी हैं और राजनीति में आने से से पहले अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में बड़ी जिम्मेदारियां संभालते हुए अपने काम से अपनी पहचान बना चुके हैं. ऐसा व्यक्ति अगर किसी भी विषय में कुछ कहे या लिखे, तो लोग उसको गंभीरता से लेते हैं. इस बात को समझते हुए थरूर साहब जैसे मानिंद लोगों को अपने विचार व्यक्त करने से पहले गंभीरता से सोचना चाहिए कि उनकी बात का लोगों पर क्या असर होगा.
शशि थरूर ने 13 मई को एक डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए एक लेख लिखा और कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने जिस तरह से कोरोना वाइरस महामारी के वक्त काम किया है उसने भारत की आत्मनिर्भरता के संकल्प और भारतीय आत्मसम्मान को हिला कर रख दिया है. थरूर साहब का कहना है कि आज़ादी के बाद के दिनों में भारत ने दो दशकों की जद्दोजहद और मेहनत से खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल की. फिर 1990 के दशक में शुरू किये गए आर्थिक सुधारों की वजह से देश समृद्धि की तरफ बढ़ा.
शशि थरूर की दलील है कि इन उपलब्धियों ने भारत के नेताओं में हिम्मत और जज़्बा पैदा किया. इसी वजह से 2004 की भयंकर सुनामी के समय, जब भारत समेत दुनिया की कई देशों में तबाही का मंज़र था, वैसे समय भी तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ऐलान किया कि भारत को विदेशों से मदद की ज़रूरत नहीं है और देश अपनी चुनौतियों का ख़ुद मुकाबला करेगा.
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थरूर यह भी याद दिलाते हैं कि 2018 और 2019 में जब केरल में भयंकर बाढ़ आई थी, उस समय भी, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने विदेशी मदद लेने से मना कर दिया था. जनवरी 2021 में हुए डेवोस शिखर सम्मलेन में नरेंद्र मोदी के सम्बोधन की याद दिलाते हुए शशि थरूर तंज़ कसते हैं कि तब प्रधानमंत्री ने ठसके से कहा था कि भारत आत्मनिर्भरता के अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रहा है, और उनका सन्देश था कि कोरोना वायरस से लड़ने में ही नहीं, बल्कि दुनिया को इस महामारी से बचाने में भी भारत समर्थ है.
इसके बाद थरूर साहब जनवरी और आज के हालात में फ़र्क़ बताते हुए कहते हैं कि कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री के समर्थक डींगें हांकते थे कि भारत 150 देशों की मदद कर रहा है, और आज यही समर्थक हांक रहे हैं कि 150 देश भारत की मदद कर रहे हैं. इसके बाद शशि थरूर शालीनता की सीमा लांघ जाते हैं और कहते हैं कि हम यानी भारत आज अपने घुटनों पर हैं और कटोरी लेकर दुनिया से भीख मांग रहे हैं. थरूर साहब भूटान की मिसाल देते हुए कहते हैं कि भारत की मदद पर लम्बे समय तक आश्रित रहा यह छोटा सा देश भी भारत को दो ऑक्सीजन जनरेटर देने की पेशकश रहा है.
कृतज्ञ देश भारत की कर रहे हैं मदद
यहाँ यह सवाल पूछना ज़रूरी है कि क्या कोरोना वायरस के पहले फैलाव के दौरान भारत ने अपने पड़ोसियों और मित्र देशों की भरपूर मदद नहीं की थी?
जब दुनिया हाईड्रोक्लोरोक्विन के लिए तरस रही थी तब क्या भारत ने आगे बढ़ कर जहां तक हो सका सबको मदद नहीं पहुंचाई थी. कोरोना वायरस के पहले फैलाव के दौरान दुनिया भर में मास्क और PPE Kits की बड़ी ज़रूरत थी. तब भारत ने यथा संभव जितने देशों में हो सका इन दोनों चीज़ों को लाखों की तादाद में नहीं पहुंचाया था?
और एक बात. यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जब भारत पहली बार कोरोना से जूझ तहा था तब देश के सामने वही एक अकेली चुनौती नहीं थी. भारत उस समय अपनी उत्तरी और पूर्वी सीमाओं पर चीन और पाकिस्तान से मुकाबले की तैयारी भी कर रहा था. यानी घर के भीतर और बाहर दोनों जगह भारत को बहुत बड़ी चुनौतियों का जवाब देना था. दोस्ती की परीक्षा तब होती है जब दोस्त मुश्किल दौर में सिर्फ अपनी न सोचे बल्कि अपने साथ साथ अपने दोस्तों का भी ख़याल रखे.
आज जब भारत से मिली मदद के लिए कृतज्ञ देश भारत की मदद कर रहे हैं, तो इसमें कटोरा लेकर भीख मांगने जैसी क्या बात है? शशि थरूर को इन सवालों का जवाब देबे की ज़रूरत है. यहाँ नारायण हेल्थ के डॉक्टर देवी शेट्टी का ज़िक्र भी ज़रूरी है. वे एक चिकित्सक हैं और राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं करते, जो शायद शशि थरूर की इस वक़्त की मजबूरी है.
भारत अभी जिस प्रकार की चुनौती से जूझ रहा है, वह कल्पना से भी परे
डॉक्टर शेट्टी ने 13 मई को ही मीडिया से बात करते हुए कहा था कि भारत अभी जिस प्रकार की चुनौती से जूझ रहा है, वह कल्पना से भी परे है. मिसाल के तौर पर फ़ौरी तौर पर मरीज़ों के लिए बहुत ज़्यादा ज़रूरी ऑक्सीजन के उत्पादन और वितरण में भारत सरकार ने जैस काम किया है वह तारीफ के काबिल है. डॉक्टर शेट्टी ने कहा की अगर भारत जैसी स्थिति अभी अमेरिका जैसे अमीर देश में भी होती तो वह हमसे भी ज़्यादा दबाव में होते.
शशि थरूर अपने लेख में यह भी कहते हैं कि पुराने दिनों में भारत की आत्मनिर्भरता का एक पाया Non Alignment यानि गुटनिरपेक्षता था. यानी शीतयुद्ध के ज़माने में भारत ने ख्याल रखा कि वह शीतयुद्ध के दोनों धड़ों — पूंजीवादी अमेरिका और साम्यवादी सोवियत संघ — से सामान दूरी बना कर रखे और अपनी विदेश नीति बिना किसी और देश के दखल के खुद निर्धारित करे. यह दावा पूरी तरह से सही नहीं है, क्योंकि ऐतिहासिक तौर पर एक लम्बे समय तक पहले सोवियत संघ और फिर रूस से भारत की मित्रता पश्चिमी दुनिया के किसी भी देश से कहीं ज़्यादा गहरी थी. और इसमें कुछ गलत भी नहीं था. उस समय के भारतीय नेतृत्व ने परिस्थितियों को देखते हुए जो राष्ट्रहित में था वही किया, और बिल्कुल सही किया.
दोस्तों से मदद मांगने में शर्म कैसी?
ठीक इसी मिसाल की तर्ज पर शशि थरूर को यह सोचने की ज़रूरत है कि अगर भारत आज भी गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत पर जड़ होता तो क्या मुश्किल वक़्त पश्चिम यूरोप के देश और अमेरिका कोरोना काल में और चीन की चुनौती के समय भारत को अपना साथ और सम्बल देते? खैर, शशि थरूर कांग्रेस की पार्टी लाइन से बंधे हुए हैं. लेकिन फिर भी उन्हें सोचने की ज़रूरत है कि अगर देश पर आपदा आती है तो दोस्तों से मदद मांगने में शर्म कैसी? जब 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध में अमेरिका ने अपना सातवां नौसैनिक बेड़ा बंगाल की खाड़ी में भेजा था तब क्या भारत ने रूस से मदद नहीं मांगी थी? और क्या मदद का आग्रह गलत था? जवाब है, बिलिकुल नहीं!
किसी भी समय काल में देशों की नीतियां परिस्थितियों को देखते हुए हमेशा राष्ट्रहित में तय की जाती हैं. एक जनतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष को सरकार से सवाल पूछने का पूरा अधिकार है, लेकिन साथ ही यह ज़िम्मेदारी भी है कि प्राकृतिक आपदा, महामारी और युद्ध जैसी स्थिति में वह सरकार का साथ दे, एक सकारात्मक भूमिका निभाए, सिर्फ निंदा और कुप्रचार न करे. शशि थरूर अब पेशे से राजनीतिज्ञ हैं, लेकिन उन्हें समझदार और संवेदनशील माना जाता है. इस लेख में उन्होंने सरकार की कठिन ज़िम्मेदारियों और कामकाज पर छींटाकशी कर कुछ लोगों में लोकप्रियता पाने की कोशिश तो की है, लेकिन उनके इस प्रयास को कोरोना संक्रमण काल में ओछी राजनीति और छोटी मानसिकता से प्रेरित हरकत ही माना जाएगा.
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