सम्पादकीय

महंगाई दर में अनुमान से भी तेज गिरावट, क्या आने वाले महीनों में आम जनता को राहत मिलेगी?

Tara Tandi
21 Sep 2021 12:10 PM GMT
महंगाई दर में अनुमान से भी तेज गिरावट, क्या आने वाले महीनों में आम जनता को राहत मिलेगी?
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महंगाई आम लोगों के जीवन पर असर तो डालती ही है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| महंगाई आम लोगों के जीवन पर असर तो डालती ही है इसके साथ इस मुद्दे का राजनीति पर भी बहुत प्रभाव रहता है. महंगाई का मुद्दा सरकार को घेरने में विपक्ष के लिए ब्रह्मास्त्र जैसा होता है. हालांकि बीते दिनों भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बताया कि महंगाई में अनुमान से ज्यादा तेजी से गिरावट दर्ज हो रही है. महंगाई में गिरावट जहां आम जनता को राहत देगी, वहीं विपक्ष की मुश्किलें भी बढ़ाएगी, इसलिए क्योंकि उसे मंहगाई पर सरकार को घेरने का मुद्दा नहीं मिलेगा. हालांकि बड़ी बात यह है कि आखिर महंगाई में अनुमान से ज्यादा तेजी से गिरावट का मतलब क्या है?

दरअसल अगस्त के महीने में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित महंगाई की दर 5.3 फ़ीसदी रही, जो भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान से भी कम थी. आरबीआई ने अनुमान लगाया था कि सितंबर में समाप्त होने वाली दूसरी तिमाही के लिए जहां महंगाई दर 5.9 फ़ीसदी रहेगी, वहीं दिसंबर में समाप्त होने वाली तीसरी तिमाही के लिए उसका अनुमान 5.3 फ़ीसदी था. लेकिन सितंबर की दूसरी तिमाही में महंगाई दर 5.3 फ़ीसदी ही रही जो आरबीआई की अनुमानित महंगाई दर 5.9 फ़ीसदी से कम थी.
आरबीआई ने अपने सितंबर के बुलेटिन में यह भी दावा किया है कि खाद्य वस्तुओं की कीमतों में गिरावट तीसरी तिमाही में भी जारी रहने के आसार हैं. यानि आने वाले समय में भी जनता को महंगाई से राहत मिलने के पूरे आसार हैं.
2023-24 तक महंगाई के घटकर 4 फ़ीसदी तक आने की उम्मीद
बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी एक खबर में डिप्टी गवर्नर माइकल देवव्रत के अनुसार, मुद्रास्फीति के आंकड़ों ने एमपीसी के नीतियों को सही साबित किया है. क्योंकि पहली तिमाही में महंगाई दर आरबीआई के अनुमान के हिसाब से ही रही है. आरबीआई का मानना है कि देश की अर्थव्यवस्था फिलहाल सही स्थिति में है और चालू वित्त वर्ष में उसकी नीतियां अनुमानित वृद्धि दर को हासिल करने की लिए सही दिशा में आगे बढ़ रही हैं.
दरअसल महंगाई पर लगाम लगाने में मोनेटरी पॉलिसी कंट्रोल (MPC) का अहम योगदान होता है. इसलिए अगर मोनेटरी पॉलिसी कंट्रोल सही दिशा में चलती रही तो वित्त वर्ष 2023-24 तक अर्थव्यवस्था में महंगाई दर घटकर 4 फ़ीसदी के नजदीक आ जा सकती है. कोरोना महामारी में 2020-21 में महंगाई दर 6.2 फ़ीसदी थी. इसे कंट्रोल करने में मोनेटरी पॉलिसी कंट्रोल के पसीने छूट गए. हालांकि अब सही नीतियों के कारण 2021-22 वित्त वर्ष में इसके घटकर 5.7 फ़ीसदी और 2022-23 में लगभग 5 फ़ीसदी पर आने का अनुमान है.
खाद्य आपूर्ति से जुड़ी है महंगाई बढ़ने की वजह
मोनेटरी पॉलिसी कंट्रोल के आकलन से देखें तो पता चलता है कि महंगाई के दबाव की मुख्य वजहें आपूर्ति से जुड़ी हुई हैं. जब खाद्य वस्तुओं की कीमतें कम होती हैं तो खुदरा महंगाई दर में भी नरमी देखने को मिलती है. और वहीं महंगाई बढ़ने की वजह भी आपूर्ति में अड़चनों को माना जाता है. हालांकि यह अड़चनें अस्थाई होती हैं. लेकिन बार-बार जब आपूर्ति में बाधा उत्पन्न होती है तो महंगाई अपने ऊंचे स्तर पर चली जाती है. इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में आने वाले केवल 20 फ़ीसदी उत्पाद 50 फ़ीसदी महंगाई के लिए जिम्मेदार होते हैं.
खुदरा महंगाई में गिरावट और थोक महंगाई में बढ़ोतरी
सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़े बताते हैं कि अगस्त के महीने में भारत की खुदरा महंगाई में गिरावट दर्ज की गई है, पहले के मुकाबले यह गिरकर 5.3 फीसदी हो गई है. हालांकि वहीं अगर थोक महंगाई दर की बात करें तो इसमें बढ़ोतरी दर्ज की गई. अगस्त महीने में थोक महंगाई दर वीपीआई के मुकाबले बढ़कर 11.39 फ़ीसदी पर पहुंच गया है. वहीं अगर जुलाई के आंकड़े पर नजर डालें तो थोक महंगाई दर 11.16 फ़ीसदी थी. थोक महंगाई दर में बढ़ोतरी के सबसे मुख्य कारण होते हैं ईंधन और बिजली की कीमतों में तेजी. अगस्त में अगर फ्यूल थोक महंगाई दर पर नजर डालें तो यह बढ़कर 26.09 फीसदी पर थी. जबकि मैनुफैक्चरिंग प्रोडक्ट की थोक महंगाई दर 11.39 फ़ीसदी पर थी.
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक और जनता को प्रभावित करने वाली महंगाई में संबंध
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित महंगाई दर अगस्त में 5.3 फ़ीसदी थी, जो आरबीआई के अनुमान से भी कम थी. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को रिटेल महंगाई का इंडेक्स कहते हैं. रिटेल महंगाई यानि सीधे जनता को प्रभावित करने वाली महंगाई. यह महंगाई दर खुदरा कीमतों के आधार पर तय की जाती है. अगर भारत में खुदरा महंगाई दर में खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी पर नजर डालें तो यह लगभग 45 फ़ीसदी है. दुनिया के ज्यादातर देशों में खुदरा महंगाई के आधार पर ही मोनेटरी पॉलिसीज बनाई जाती हैं.



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