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दुनिया भर के लेखकों, पाठकों, कलाकारों की उपस्थिति का यही संदेश है कि इस दुनिया में आने वाले दिनों में भी पुस्तकें जिंदा रहेंगी।
इन दिनों शारजाह का मौसम लाजवाब है और ऐसे लगता है, जैसे पूरा का पूरा शहर शब्दों के समंदर में किताबों की मणियां ढूंढ़ रहा है। इस क्षेत्र में भी पुस्तकों के प्रति ऐसी ललक होगी तथा इतनी बड़ी संख्या में लेखकों का हुजूम शहर में दिखाई देगा, यह आश्चर्यजनक लगता है। यहां 40वें शारजाह इंटरनेशनल बुक फेयर में हर किसी के हाथों में किताबों के बंडल हैं और चेहरे खिले हुए। इस सुरमई शाम की रोमानी हवा से शारजाह की फिजा में जिंदगी के कई रंग चल रहे हैं और शब्द जैसे आपसे गुफ्तगू कर रहे हों। यह सचमुच अद्भुत और दिल को छू लेने वाला दृश्य है। बच्चों से लेकर बड़ी उम्र के लोग तक जिस ललक से किताबों से मोहब्बत करते हुए इस अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले में दिखे हैं, इससे पहले वह फिजा मैंने कभी नहीं देखी। किताबों के प्रति जुनून इस मेले में दिखाई देता है।
विश्व की 120 भाषाओं की किताबों का यह समंदर हर एक को अपने आगोश में ले रहा है। हर देश की भाषा की किताबों का रंग यहां पर है और दीवाने हुए लोग किताबों को इकट्ठा करने, देखने और सराहने में लगे हुए हैं। दस दिवसीय बुक फेयर अपनी एक अनूठी पहचान बना चुका है, जिसमें विश्व भर के ख्याति प्राप्त लेखकों को बुलाया गया है। पुस्तकों के इस महाकुंभ में दो हजार से ज्यादा प्रकाशक भागीदारी कर रहे हैं। इसमें 987 से ज्यादा समारोह, संगोष्ठी या आयोजन हुए हैं, और 1.7 करोड़ किताबों के टाइटल यहां पर प्रदर्शित किए गए हैं। यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है।
इस छोटे से रोमानी शहर में तीन लाख से ज्यादा लोग इस मेले में पहुंचे। अंतरराष्ट्रीय किताबों का यह महाकुंभ इसलिए भी सराहनीय है, क्योंकि यहां के शासक डॉ. सुल्तान बिन मोहम्मद अल कासिमी (जो खुद एक लेखक एवं ख्याति प्राप्त कवि हैं) की सारी किताबें एक अलग पवेलियन में सजा कर रखी गई हैं। पूरे विश्व साहित्य में क्या हो रहा है, उसकी एक झलक यहां किताबों से नुमाया होती है। इस वर्ष के नोबेल साहित्य पुरस्कार विजेता अब्दुल रजाक गुरनाह ने इस बड़े मेले का उद्घाटन किया। उद्घाटन के समय उन्होंने एक मार्मिक टिप्पणी की कि ये किताबें विश्व की धड़कन हंै, इनको धड़कने दो।
एक सवाल के उत्तर में उन्होंने कहा कि भारत विविध भाषाओं एवं बोलियों वाला महान देश है। उन्होंने भारत को तमीज और तहजीब से बना हुआ देश एवं भाषा का संगम बताया, जिसकी बात विश्व में विशेषकर साहित्य में सबसे ऊंची श्रेणी में होती है। यहां इस बार अंग्रेजी के अतिरिक्त तमिल, मलयालम, मराठी, अंग्रेजी और उर्दू में भारतीय लेखकों की पुस्तकें हैं।
किताबों के इस जमघट में लाखों किताबों को देखते हुए यह भी पता चलता है कि भविष्य में दुनिया कैसी होगी-किताब की दुनिया होगी या किताबों के बिना इंटरनेट की आभासी दुनिया में ही किताबों के पन्ने दिखाई देंगे! इस पर बहस भी इस मेले में होती दिखी। एक कविता की कुछ पंक्तियां यहां पर देखने को मिलीं, जिनका हिंदी अनुवाद इस तरह से है-पूरी दुनिया है इन अक्षरों में/पूरी धरती है इन खूबसूरत किताबों में/ शर्म और धर्म लोग और जिस्म/सब हैं इन शब्दों में/शब्द क्या है/आंखों से देखो और पढ़ो/दुनिया है उनके शब्दों में/एक बार पढ़कर तो देखो/पता चल जाएगा/ पूरी दुनिया का।
ऐसी कविताओं के बाद कॉफी शॉप में कॉफी पीते हुए और समंदर से आ रही हवा में सांस लेते हुए लगता है कि इन किताबों की खुशबू जिंदा रहेगी, जिनमें पूरा विश्व और उसका दर्शन समाया हुआ है। शारजाह के इस अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले ने एक नई दिशा दिखाई है। वह विश्व भर के लेखकों का आपसी सद्भाव और भाषा की नई ऊंचाई और मानवीय संवेदनाओं के जरिये विनम्रता और शांति का संदेश देता है। क्या विश्व की राजनीति भी इस तरह काम कर सकती है, जिसमें आदमी एवं आदमी के जिंदा रहने का संदेश हो? यहां रखी करोड़ों पुस्तकों का यही तो संदेश है, जो पूरी दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम में बांधता है। दुनिया भर के लेखकों, पाठकों, कलाकारों की उपस्थिति का यही संदेश है कि इस दुनिया में आने वाले दिनों में भी पुस्तकें जिंदा रहेंगी।
Neha Dani
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