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- चैनलों का शांतिपाठ
सुधीश पचौरी: हाय! अचानक सब चैनल एकदम शिष्ट, शालीन और ऊबाऊपन की हद तक शांत हो गए! एंकर, वक्ता-प्रवक्ता, रिपोर्टर सब शिष्टता की प्रतिमूर्ति हो गए! एक-दूसरे को गरियाने वाले सिरे से गायब हो गए! फिर नौ जून को दिल्ली पुलिस ने इकतीस नफरतवादियों पर एफआइआर क्या की, बड़े-बड़े नफरतिए ठंडे हो गए! इसी क्रम में जब एक बड़े मुसलिम नेता पर एफआइआर हुई, तो उनके प्रवक्ता ने एक चैनल पर सिर्फ इतना कहा कि 'हम एफआइआर की निंदा करते हैं, धन्यवाद' और फ्रेम से निकल गए।
इसे देख एक एंकर बुक्का फाड़ कर हंसी और कहने लगी : कहां चले साहब, एक एफआइआर ने दम निकाल दिया। बाकी वक्ता-प्रवक्ता भी हंसते रहे कि यह क्या हुआ? इससे पहले 'भड़काऊ' भाषण देने वाले नेताजी हर चंद कहते दिखते कि नूपुर को गिरफ्तार करो और जब इकतीस पर पुलिस ने एफआइआर कर दी तो सबकी सिट्टी-पिट्टी गुम होती नजर आई!
काश! यह 'झटका' कुछ पहले हो गया होता तो वह सब न होता जो हुआ! फिर भी कुछ प्रवक्ता 'नफरत' का इतिहास बताते रहे: एक कहता कि यह सब 2014 से शुरू हुआ, तो दूसरा कहता कि '84 में बड़ा पेड़ गिरने से धरती हिलती है' वह क्या था?