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शेन वॉर्न ने क्रिकेट पिच पर प्रतिभा को परिभाषित किया
संदीपन शर्मा।
शेन वॉर्न (Shane Warne) सिर्फ एक क्रिकेटर नहीं थे. वह गेंद के जादूगर थे. वो पिच पर धमाकेदार प्रदर्शन करते थे. वो ऐसे शख्स थे जो ऐसे प्रशंसकों को अपनी तरफ आकर्षित करते थे जो उनकी कल्पना से परे गेंदबाजी देखना चाहता हो. जिस तरह से जादुगर हुदिनी चीजों को गायब करते थे शेन वॉर्न भी बल्लेबाजों को अपने हुनर से क्रीज से लुप्त कर देते थे. क्रीज पर उनका सीधा रन-अप बस एक वॉक-अप की तरह था जहां से बल्लेबाजों को धोखा देने की शुरुआत होती थी. वार्न फिर धीरे से अपना हाथ घुमाते और लेग स्टंप से दो फीट पहले गेंद को टप्पा खिलाते जो बल्लेबाजों के लिए घातक होता था. जब बल्लेबाज सोचता कि गेंद विकेटकीपर के दास्तानों में जाएगी और अंपायर वाइड का इशारा करेगा उतने में चमड़े की गेंद सीधे लकड़ी के स्टंप्स से जा टकराती थी.
इस क्षण कि तुलना हम फुटबॉल में माराडोना के उस 'हैंड ऑफ गॉड' से कर सकते हैं. 1986 फीफा वर्ल्ड कप में डिएगो मैराडोना ने एक मैच में हाथ से गेंद को गोल में डाल दिया था. उन दिनों मैदान में कैमरे नहीं होते थे और रेफरी को भी ये नहीं दिखा और उस गोल से अर्जेंटीना इंग्लैंड से मैच जीत गया. हालांकि शेन वॉर्न की इससे सीधी तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि फुटबॉल वाले मामले में बेईमानी से जीत हुई थी.
बात बॉल ऑफ दी सेंचुरी की
आइये अब हम सुनहरी यादों में खो जाएं. शेन वॉर्न अपने टेस्ट करियर का पहला गेंद इंग्लैंड में फेंक रहे हैं. सामने बैट्समैन माइक गैटिंग हैं. गेंद लेग स्टंप से इतनी दूर है कि गैटिंग उस सीध में अपने पैड तक को नहीं लाते. मगर पल भर में ऑफ स्टंप की बेल्स उड़ जाती है. गेटिंग स्टंप को देखते हैं फिर उस जगह को जहां पर गेंद ने टप्पा खाया. ऐसा वो एक दर्जन बार करते हैं. उन्हें जैसे विश्वास नहीं हो रहा हो की कैसे गेंद सिडनी से लंदन चली गई. आखिरकार गैटिंग पेवैलियन को लौट गए.
बल्लेबाज के बाद बल्लेबाज इस ऑस्ट्रेलियन के स्पिन के जादू को देख कर विश्वास नहीं कर पाया कि ऐसा भी संभव है. वार्न के युग के बैट्समैन के लिए ये एक संस्कार जैसा बन गया था.
वॉर्न के पहले स्पिनर नहीं बन पाते थे सुपरस्टार
जब तक वॉर्न क्रिकेट की दुनिया में नहीं आए तब तक एक स्पिनर को सुपरस्टार के रूप में देखने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. तेज और उग्र गेंदबाजों वाली ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज जैसी टीमों में स्पिनर को केवल पेस गेंदबाजों को आराम दिलाने के लिए गेंदबाजी दी जाती थी. अस्सी के दशक में वेस्ट इंडीज की टीम दुनिया भर में लैरी गोम्स को लेकर केवल इस लिए जाती थी कि गार्नर, मार्शल और होल्डिंग को सांस लेने की फुरसत मिल जाए. ऑस्ट्रेलिया की टीम भी लिली, थॉमसन, हॉग और मैकडरमोट जैसे तेज गेंदबाजों को आराम दिलाने के लिए एलन बॉर्डर को टीम में रखती थी.
भारतीय उपमहाद्वीप में भी स्पिनरों को रखा जाता था. उनके बारे में मशहूर था कि उन्हें फैशन ट्रेंड की तरह भूल जाया जाता था. पाकिस्तान के पास अब्दुल कादिर थे जो गेंदबाजी के दौरान रन अप के दौरान आनंद और रहस्य के लिए जाने जाते थे. बहुत ही छोटी अवधि के लिए भारत के पास भी एल शिवरामकृष्णन और नरेंद्र हिरवानी थे जो वक्त के साथ गुम हो गए. वॉर्न ने इस मरती हुई कला को जब जीवित किया उसी वक्त दो और गेंदबाज अनिल कुंबले और मुथैया मुरलीधरन उभरे.
वॉर्न और उनकी रंगीनमिजाजी
जल्द ही वॉर्न सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाजों वाली टीम में केंद्रबिंदु बन कर गए. वो ऐसे मेगास्टार के रूप में सामने आए जिनके बारे में उनके फैन क्रिकेट मैच के दौरान बोल कर सोते थे कि वो बॉलिंग के लिए आएं तो मुझे जगा देना. कारण बिल्कुल साफ था. उनकी गेंदबाजी एक पहेली की तरह थी. वो अगाथा क्रिस्टी के उस उपन्यास की तरह था जिसमें लोग अपराध किसने किया आखिर तक कयास रही लगाते रह जाते थे. जब वो गेंदबाजी करते थे तो ऐसा प्रतीत होता था जैसे कोई किसी कि नये-नये हथियार से हत्या कर रहा हो.
अगर कोई वॉर्न के बारे में नहीं जानता तो वो क्रिकेट के बारे में क्या जानता है? डॉ जैकिल और मिस्टर हाइड की तरह उन्होंने बड़े विरोधाभास और रंगीन जीवन जिया. अगर वॉर्न मेडेन ओवर नहीं कर रहे होते थे तब वो मैडेंस यानी महिलाओं के साथ देखे जाते थे. वह बल्ले से चौका लगाते और फिर चार महिलाओं के साथ वक्त बिताने की कोशिश दुस्साहस के साथ करते (एक बार उन्होंने एक महिला को साथ वक्त बिताने के लिए आमंत्रित किया).
नैतिकता से दूर थे वॉर्न
अगर वो बल्लेबाजी के वक्त टाइमिंग का उतना ख्याल नहीं रखते थे तो क्रिकेट फील्ड के बाहर वो पत्नी के अलावा दूसरी महिला के साथ संबंध बनाने में बिताते थे. अगर वो बैट्समैन को आउट नहीं कर पाते थे तो वो खुद अपने आचरण के कारण 'आउट' हो जाते थे – पत्नी को धोखा देने के लिए, सटोरियों से पैसे लेने के लिए, प्रतिबंधित ड्रग्स लेने और ब्रिटिश महिलाओं से संबंध बनाने को आमंत्रित करने को लेकर. क्रिकेट में उन्होंने स्तर को काफी ऊंचा बनाए रखा मगर असल जिन्दगी में खराब आचरण से उस स्तर को उतना ही गिरा कर भरपाई की. डिएगो माराडोना की तरह उनके करियर की ऊंचाई और ढलान दोनों ही लोगों को आश्चर्यचकित करते रहे. ऑस्कर वाइल्ड ने कभी कहा था कि किसी की चर्चा होने से चर्चा नहीं होना ज्यादा बुरा है. वॉर्न ने अपनी जिन्दगी इसी हिसाब से व्यतीत की. डोरियन ग्रे की तरह वह सुंदर और बदसूरत दोनों थे.
विवाद और घोटाले वॉर्न के साथ-साथ चले
विवादों और घोटालों ने उनके नाम को और आगे बढ़ाया. वॉर्न ने गेंदबाजी के वक्त थर्मोडायनामिक्स के नियम को गलत साबित किया मगर साथ ही साथ उन्होंने समाज के नियमों की भी धज्जियां उड़ाईं. कोई ऑस्ट्रेलियन या पाकिस्तानी क्रिकिटर कितना लोकप्रिय है वो इस बात पर निर्भर करता है कि भारत के लोग उससे कितना नफरत करते हैं. वॉर्न ने यह परीक्षा ए-प्लस नंबरों के साथ पास की. आईपीएल के पहले सीज़न में राजस्थान रॉयल्स की कप्तानी करते वक्त जब वॉर्न बॉलिंग के लिए आते थे तो दर्शक तालियों की गड़गड़ाहट और जोरदार शोर के साथ उनका स्वागत करते थे जैसा तेंदुलकर और धोनी के साथ होता था (शाहिद अफरीदी ने भी इसी तरह का उन्माद पैदा किया मगर उनकी एक अलग कहानी है.)
खेल खत्म होने के बाद वार्न हाथ में सिगरेट लेकर महिलाओं और फैन्स से घिरे होते. वार्न ने तब सबसे कमजोर टीम के इमेज वाली राजस्थान रॉयल्स को आईपीएल के पहले सीज़न में चैंपियन बना कर उनके विश्वास को बनाए रखा. उन्होंने ऑस्ट्रेलिया को भी याद दिलाया कि वह शायद सबसे अच्छे कप्तान थे जो ऑस्ट्रेलियाई टीम के पास कभी नहीं रहा.
वार्न की मौत सदमे की तरह है. इससे भी अधिक ऐसा प्रतीत ही नहीं हुआ कि वो कभी बड़े भी हुए – शाब्दिक अर्थ और व्यक्तित्व दोनों में ही. कमेंट्री बॉक्स में भी वो एक प्लेब्वॉय की तरह लगते थे जिसके नैन-नख्श तीखे थे, जो सबसे दिलकश सूट पहनता था और केश भी दूसरों से अलग बनाते थे. ऐसा लग रहा था कि नैतिकता और मृत्यु दोनों ने ही वार्न को अपनी भयावहता से बचा लिया था. लेकिन यह एक भ्रम था. उनका अंत अप्रत्याशित रूप से अचानक आया. मौत ने उन्हें वक्त नहीं दिया. शायद वह भी उनके कौशल से प्रेरित रहा होगा.
विदाई कलाई के जादूगर. आपके साथ जादुई गेंदबाजी का आनंद भी चला गया.
Gulabi
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