सम्पादकीय

Shane Warne Demise: विशिष्टता से रहित खेल की दुनिया में, वॉर्न बीते युग की एक याद थे

Gulabi
6 March 2022 6:51 AM GMT
Shane Warne Demise: विशिष्टता से रहित खेल की दुनिया में, वॉर्न बीते युग की एक याद थे
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वॉर्न बीते युग की एक याद थे
– एशले मॉरिसन
जब शेन वॉर्न (Shane Warne) ने 2 जून 1993 को एशेज टेस्ट सीरीज की पहली गेंद डाली तो उसे 'बॉल ऑफ द सेंचुरी' कहा गया था. इस बॉल ने इंग्लैंड के बल्लेबाज माइक गैटिंग (Mike Gatting) को चौंका दिया था. कल रात क्रिकेट जगत को चौंकाने वाली खबर मिली. वॉर्न का महज 52 साल की आयु में निधन हो गया. क्रिकेट के लिए शेन वॉर्न वही थे जो जॉर्ज बेस्ट फुटबॉल के लिए थे. वे वाकई एक सुपरस्टार थे. उनका जाना असंभावित था. ऑस्ट्रेलिया (Australia Cricket Team) में कई युवा लड़कों की तरह वॉर्न को स्पोर्ट्स से गहरा लगाव था. जब 1988 सीज़न के अंत में उनकी प्रिय फुटबॉल टीम 'सेंट किल्डा ऑस्ट्रेलियन रूल्स ने उन्हें डी-लिस्ट किया तो क्रिकेट की दुनिया पर बहुत बड़ा उपकार हुआ. इसके बाद उनका ध्यान केवल क्रिकेट पर था. 1990 में वे एडिलेड में ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट अकादमी गए और अपने अच्छे दोस्त टेरी जेनर के साथ काम किया.
क्रिकेट की दुनिया में शेन वॉर्न का उदय उल्कापिंड की तरह हुआ. केवल सात फर्स्ट-क्लास मैच खेलने के बाद उन्हें सिडनी में भारत के खिलाफ टेस्ट डेब्यू के लिए चुना गया. हालांकि प्रथम श्रेणी मैचों में उनका प्रदर्शन उत्कृष्ट नहीं रहा और तब वे क्रिकेट के मैदान पर सहज भी नहीं थे. वे कई लोगों की उम्मीद से अधिक जिम्मेदारी उठा रहे थे. ऐसा लग रहा था कि ऑस्ट्रेलिया ने सिडनी हिल से किसी को खेलने के लिए उतारा है. हालांकि वे अपनी ड्रीम डेब्यू से बहुत दूर थे. वे अपने पहले टेस्ट में ज्यादा कुछ नहीं कर पाए और सिर्फ एक विकेट (1/150) ही ले पाए थे. उनकी गेंद पर रवि शास्त्री आउट हुए जब दिवंगत डीन जोन्स ने 206 रन पर शास्त्री का कैच लपका था. एडिलेड में चौथे टेस्ट में वे एक भी विकेट (0/78) लेने में नाकाम रहे. इस सीरीज में उनका औसत 1/228 था. इसके बाद उन्हें पांचवें टेस्ट मैच के लिए बाहर कर दिया गया था. तब किसे पता था कि इस तरह करियर की शुरुआत करने वाला खिलाड़ी स्पिन गेंदबाजी का दिग्गज बन जाएगा.
इंग्लैंड में सबसे अधिक विकेट लिए
कई लोग बात को स्वीकार करने में विफल रहते हैं कि वॉर्न ने अपने करियर में उस दौर में अपना परफॉरमेंस सुधारने के लिए कितनी मेहनत की. सीरीज से बाहर होने और टेस्ट क्रिकेट का स्वाद चखने के बाद वॉर्न और बेहतर करना चाहते थे. उनका मानना था कि उनके पास उस स्तर पर खेलने का कौशल था, उन्हें बस अपने स्किल को निखारना था. उन्होंने ठीक वही किया. 'बॉल ऑफ द सेंचुरी' डालने के बाद शेन वॉर्न ने उस सीरीज में 34 विकेट लिए. वे इंग्लैंड में सबसे अधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज बन गए.
ऑस्ट्रेलिया में 1994/95 एशेज सीरीज में उन्होंने टीम में अपनी जगह पक्की कर ली. उन्होंने गाबा में पहले टेस्ट की दूसरी पारी में करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. ब्रिस्बेन के गाबा में पहले टेस्ट में 8 विकेट लेने के बाद वॉर्न ने एमसीजी में अपनी शानदार हैट्रिक पूरी की जब उन्होंने फिल डेफ्रीटास, डैरेन गफ और डेवोन मैल्कम को लगातार तीन डिलीवरी के साथ पवेलियन भेजा.
हालांकि यह सिर्फ वॉर्न का क्रिकेट नहीं था जिसकी बदौलत प्रशंसकों ने उनसे प्यार किया. उनका अपना व्यक्तित्व था. यह कहना उचित होगा कि वे अपने करियर के दौरान विचारों का ध्रुवीकरण करने में भी कामयाब रहे. कुछ लोगों के लिए उनकी ऑफ-फील्ड हरकतें बहुत ज्यादा थीं. वे वह नहीं थे जिसकी अपेक्षा उनसे की जाती थी. फिर भी एक साफ-सुथरी खेल की दुनिया में व्यक्तिगत चरित्रों से रहित, शेन वॉर्न बीते जमाने की मिसाल थे. खेलों की दुनिया में वे एक ऐसे शख़्स थे जो बहुत प्रतिभाशाली था, खेलने का आनंद लेता था और खेल को गंभीरता से लेता था, लेकिन खेल समाप्त होने के बाद वह जीवन का आनंद लेना चाहता था.
पर्सनल लाइफ में रही अनुशासन की कमी
वॉर्न निजी जीवन में अनुशासित नहीं रह पाए. खेल के मैदान से बाहर उनका विवादों से नाता रहा. मिसाल के तौर पर, धूम्रपान करते हुए उनकी तस्वीर खींचने को लेकर उनकी कुछ लड़कों से कहासुनी हो गई थी. तब वॉर्न का निकोटीन रिप्लेसमेंट थेरेपी उत्पाद निकोटीन के साथ एक अनुबंध था. इसके तहत वे धूम्रपान नहीं कर सकते थे. स्पोर्ट्स की दुनिया के कुछ सुपरस्टारों की तरह उनकी भी कुछ काल्पनिक कहानियां हैं. जैसा कि 1998 में दावा किया गया था कि वॉर्न भारत में मसालेदार भोजन नहीं खा सकते इसलिए उन्होंने 1900 टिन बेक्ड बीन्स और स्पैगेटी (spaghetti) भेजने को कहा था. लेकिन सच्चाई कुछ और थी. टिन के डिब्बे पूरी टीम के लिए थे. किसी ने टिन के डब्बों पर 'शेन वॉर्न, इंडिया' लिख दिया था, इसलिए यह मान लिया गया कि वे सभी डिब्बे उनके लिए ही थे.
वॉर्न की जिंदगी में क्रिकेट के ऐसे क्षण भी आए जब उनके करियर को खतरा था. 1994-95 में 'जॉन द बुकमेकर' नाम के किसी भारतीय सट्टेबाज ने वॉर्न और मार्क वॉ को मौसम और पिच की स्थिति उजागर करने के एवज में में पैसे दिए. ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड ने इस मामले को शुरू में आंतरिक और चुपचाप निपटाया था. यह मामला 1998 में सामने आया, लेकिन दोनों खिलाड़ियों को एसीबी द्वारा लगाए गए मूल जुर्माने के अतिरिक्त अन्य किसी प्रतिबंध का सामना नहीं करना पड़ा.
वर्ल्ड कप से पहले डोप टेस्ट में फंसे
क्रिकेट वर्ल्ड कप 2003 में ऑस्ट्रेलिया के पहले मैच की पूर्व संध्या पर, यह पता चला था कि वॉर्न ड्रग परीक्षण में नाकाम हो गए हैं और ऑस्ट्रेलिया लौट जाएंगे. उस दिन की प्रेस कॉन्फ्रेंस क्रिकेट के किसी भी दूसरे दिन से एकदम अलग थी. फोटोग्राफर और कैमरामैन कुर्सियों पर चढ़े हुए थे और लोग वॉर्न के करीब जाने के लिए आतुर थे. यह पूरी तरह से हंगामेदार था. मीडिया और पब्लिक को बताया गया कि वॉर्न के यूरीन में एक प्रतिबंधित दवा मौजूद थी. यह दवा रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करती है. डोप टेस्ट हुआ जिसमें शेन वॉर्न फेल हो गए थे. माना जाता है किउन्होंने अपनी मां के कहने पर दवा की एक खुराक ली, जो वजन घटाने के लिए थी.
वॉर्न ने फिर से सुर्खियां बटोरीं जब उन्हें खेल से एक साल के लिए प्रतिबंधित करने के बावजूद चैरिटी मैचों में खेलने की अनुमति दी गई. वर्ल्ड एंटी-डोपिंग एजेंसी (WADA) ने इसकी आलोचना की और वॉर्न ने भी हस्तक्षेप करने के लिए एजेंसी की आलोचना की. हालांकि, इस प्रतिबंध ने प्रशंसकों के लिए शेन वॉर्न का एक और पक्ष उजागर किया. चैनल नाइन ने उन्हें कमेंट्री बॉक्स में एक भूमिका दी. इसके बाद हमें शेन वॉर्न के शानदार क्रिकेटिंग ब्रेन के बारे में जानकारी मिली. समय के साथ वे इस भूमिका में माहिर हो गए और कभी भी किसी मुद्दे पर चर्चा या तर्क देने में किसी पक्ष का समर्थन नहीं किया. उनकी एक राय होती थी और वे इसे साझा करने के लिए तैयार रहते थे. उनकी टिप्पणी अक्सर घिसे-पिटे माहौल में ताजी हवा के जैसी होती थी.
बैन के बाद वापसी और संन्यास
वॉर्न ने अपने प्रतिबंध के बाद वापसी की, लेकिन 2007 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया. उस समय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 1000 से अधिक विकेट लेने वाले केवल दो क्रिकेटरों में से वे एक थे.
वॉर्न एक ऐसे व्यक्ति रहे जिन पर भारत का भोजन पसंद नहीं करने का आरोप लगाया गया, लेकिन वे कई बार भारत आए. रिटायरमेंट के बाद उन्हें इंडियन प्रीमियर लीग 2008 में राजस्थान रॉयल्स के लिए कप्तान के रूप में साइन किया गया था. यहां उन्होंने फिर से दिखाया कि उन्हें कप्तान नहीं बनाया जाना ऑस्ट्रेलिया की भूल थी. अपने कुशल नेतृत्व के दम पर आईपीएल के पहले सीजन में उन्होंने अपनी टीम राजस्थान रॉयल्स को खिताब दिलवाया. वे अगले चार सीजन तक रॉयल्स के कप्तान बने रहे.
भारत के खिलाफ नहीं चले शेन वॉर्न
शेन वॉर्न का करियर भारत के खिलाफ शुरू हुआ और इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि उनके करियर में भारत एक ऐसा देश था जिस पर वह हावी होने में असफल रहे. भारतीय बल्लेबाज पारंपरिक रूप से स्पिन खेलने में माहिर हैं. उनके टेस्ट करियर के अंत में भारत एकमात्र ऐसा देश था जहां उनका गेंदबाजी औसत 30 से अधिक (47.18) था. क्रिकेट के इतिहास में भारत और भारतीय-उपमहाद्वीप में कई महान स्पिन गेंदबाज पैदा हुए हैं, लेकिन शेन वॉर्न की बहुत प्रशंसा हुई. उन्होंने अकेले स्पिन-बॉलिंग की कला को फैशनेबल बनाया. स्पिन के जादूगर शेन वॉर्न वास्तव में एक सुपरस्टार थे. अफसोस की बात है कि शेन वॉर्न को बहुत पहले ही आउट कर दिया गया था, लेकिन उनकी जादूगरी को देखने वाले भाग्यशाली थे और जो उनसे प्रभावित हुए वे उन्हें कभी नहीं भूलेंगे.
tv9 के सौजन्य से लेख
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