सम्पादकीय

शर्मनाक सोच: अफगानिस्तान में बदले हालात के बीच भारत में तालिबान की तरफदारी करना दुर्भाग्यपूर्ण, शर्मनाक, चिंताजनक

Neha Dani
22 Aug 2021 2:21 AM GMT
शर्मनाक सोच: अफगानिस्तान में बदले हालात के बीच भारत में तालिबान की तरफदारी करना दुर्भाग्यपूर्ण, शर्मनाक, चिंताजनक
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तालिबान की हरकतें यही बता रही हैं कि उसने अपनी उस मानसिकता का परित्याग नहीं किया है जो आज के युग में स्वीकार नहीं हो सकती।

अफगानिस्तान में उथल-पुथल भरे हालात के बीच भारत में कुछ लोग जिस तरह तालिबान की तरफदारी कर रहे हैं वह न केवल दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है, बल्कि चिंताजनक भी है। एक ऐसे समय जब सारी दुनिया तालिबान की आतंकी प्रवृत्तियों से आशंकित है तब यह समझना कठिन है कि भारत में कुछ लोग उसमें अच्छाई कैसे देख पा रहे हैं? आखिर सातवीं सदी के बर्बर तौर-तरीकों को अमल में लाने के इरादे जाहिर कर रहे तालिबान की कोई तरफदारी कैसे कर सकता है? ऐसा काम तो वही कर सकता है जो अतिवाद और सभ्य समाज के लिए खतरा बनी मानसिकता से ग्रस्त हो। समस्या केवल यह नहीं है कि भारत में कुछ लोग तालिबान में कुछ अच्छा देख रहे हैं, बल्कि यह भी है कि कुछ लोगों की ओर से उसे बधाई भी दी जा रही है। इसी क्रम में जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती तो चार कदम आगे बढ़ गईं। उन्होंने जिस तरह कश्मीर के हालात की तुलना अफगानिस्तान से की वह उनकी विकृत मानसिकता के साथ-साथ भारत विरोधी रवैये का भी परिचायक है। ऐसा लगता है कि वह भारत विरोध की अपनी मानसिकता का परित्याग नहीं कर पा रही हैं। यह वही महबूबा मुफ्ती हैं जिन्होंने अनुच्छेद-370 को खत्म किए जाने के बाद कहा था कि घाटी में कोई भारत का झंडा उठाने वाला नहीं रहेगा।

ऐसा लगता है कि कश्मीर के बदले हालात ने उनके मानसिक संतुलन को गड़बड़ा दिया है। अन्यथा कोई भी सहज-सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति कश्मीर की तुलना अफगानिस्तान से नहीं कर सकता। जो लोग भी ऐसा कर रहे हैं अथवा प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर तालिबान के प्रति हमदर्दी जता रहे हैं वे अपनी सड़ी-गली मानसिकता का परिचय तो दे ही रहे हैं, भारत के करोड़ों मुसलमानों को असहज बनाने का भी काम कर रहे हैं। यह उचित समय है कि सही सोच वाले लोग सामने आएं और उन सब तत्वों की कठोर स्वर में भ‌र्त्सना करें जो तालिबान की तरफदारी करने में लगे हुए हैं। भारत में जो भी लोग इस या उस बहाने तालिबान की तारीफ करने में लगे हुए हैं उन्हें यह देखना चाहिए कि अफगानिस्तान किस तरह तबाही की ओर जा रहा है और वहां के जिन लोगों को पिछले दो दशकों में आजादी का अहसास हुआ था वे किस तरह डरे हुए हैं। आखिर भारत में तालिबान के दबे-छिपे समर्थकों को यह क्यों नहीं दिखाई देता कि किस तरह हजारों हजार लोग येन-केन प्रकारेण अफगानिस्तान छोड़ने के लिए बेचैन हैं। उन्हें यह भी देखना चाहिए कि तालिबान किस तरह चिकनी-चुपड़ी बातें कर रहा है, लेकिन वही तौर-तरीके अपनाने में लगा हुआ है जो उसने दो दशक पहले अपना रखे थे। तालिबान की हरकतें यही बता रही हैं कि उसने अपनी उस मानसिकता का परित्याग नहीं किया है जो आज के युग में स्वीकार नहीं हो सकती।


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