सम्पादकीय

प्रधानाचार्य तथा शिक्षकों पर हमला शर्मनाक

Rani Sahu
14 Aug 2023 7:08 PM GMT
प्रधानाचार्य तथा शिक्षकों पर हमला शर्मनाक
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यह ठीक है कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम -2009 की धारा 17 (1) के अनुसार किसी भी विद्यार्थी पर किसी अध्यापक द्वारा शारीरिक दण्ड या मानसिक प्रताडऩा तथा किसी भी तरह का भेदभाव कानूनी दृष्टि से प्रतिबंधित एवं दण्डनीय अपराध है, परन्तु व्यावसायिक गरिमा के प्रतिकूल यदि कोई विद्यार्थी तथा उसके अभिभावक ही कार्यस्थल पर कत्र्तव्य निर्वहन करते हुए किसी शिक्षक पर हमला करते उसकी गरिमा को तार-तार कर दें तो क्या सजा होनी चाहिए? वर्तमान समाज के लिए यह एक गम्भीर विचारणीय प्रश्न है। अध्यापक विद्यार्थी का भविष्य निर्माता है लेकिन वर्तमान सामाजिक, राजनैतिक तथा प्रशासनिक व्यवस्था ने उसे पंगु बना दिया है। विद्यार्थियों को मारना, पीटना किसी भी दृष्टि से समस्या का समाधान नहीं है लेकिन अपना कत्र्तव्य निर्वहन करते हुए विद्यार्थी तथा उसके अभिभावकों द्वारा अध्यापक पर जानलेवा हमला हो जाए यह कहां तक जायज है?
अभी हाल ही में जिला ऊना की एक सरकारी पाठशाला में बाल कटवाने के सामान्य आदेश पर विद्यार्थी द्वारा प्रधानाचार्य को थप्पड़ मारने, गला घोंटने तथा धक्का देकर गिराने का शर्मनाक मामला सामने आया है। यह और भी खेदजनक है कि उक्त विद्यार्थी के आक्रमण के बाद इसी बात पर उसके पिता ने पाठशाला में घुसकर तीन अध्यापकों को गालियां, थप्पड़, घूंसे मार कर उन्हें घायल कर दिया। पाठशाला प्रशासन ने मामला जिला शिक्षा अधिकारी तथा पुलिस के संज्ञान में लाया। पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 107/51के तहत एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया। शिक्षा विभाग द्वारा मामले की विभागीय जांच भी करवाई जाएगी। बहरहाल मामले की जांच चल रही है। विचारणीय है कि जब तक समाज में शिक्षक की गरिमा को स्थापित नहीं किया जाता तब तक विद्यार्थियों के भविष्य निर्माण की बात करना बेमानी है। कुछ दशक पूर्व जब अभिभावकों का अपने बच्चों पर नियंत्रण समाप्त हो जाता था तब बच्चों के माता-पिता अध्यापक की सत्ता तथा शक्ति पर विश्वास करते थे। अध्यापक का विद्यार्थी पर पूरा नियंत्रण रहता था। आज कानून, समाज तथा प्रशासनिक व्यवस्था के कारण शिक्षक के प्रति सोच बदल चुकी है।
अब वह मात्र एक वेतनभोगी कर्मचारी बन कर रह चुका है। वह जवाबदेह है समाज, शिक्षा प्रशासन, अभिभावक तथा विद्यार्थी के लिए। पूर्व में जहां अध्यापक अपने ज्ञान की शक्ति से बड़े-बड़े बिगड़ैलों को अपने नियंत्रण में कर लेता था वहीं पर वर्तमान में समाज तथा प्रशासनिक व्यवस्था उसके खिलाफ खड़ी है। चाहे व्यवस्था हो, कानून हो, समाज हो, आज शिक्षक के सम्मान, प्रतिष्ठा तथा गरिमा में बहुत ही कमी आ चुकी है। यह सर्वविदित है कि किसी भी सफल व्यक्ति की पृष्ठभूमि में उसके गुरु या शिक्षक की ही भूमिका रहती है। वास्तव में गुरु कृपा ही ईश्वर कृपा होती है। प्राचीन से पूजनीय इस शिक्षक का अब वर्ष में एक ही दिन सम्मानित तथा महिमा मंडित होना एक औपचारिकता ही रह गई है। आज शिक्षकों को भी कानून के दायरे में अपने कत्र्तव्यों का निर्वहन करते हुए अपने खोए हुए सम्मान तथा प्रतिष्ठा को पुन: स्थापित करने की आवश्यकता है। जहां राइट टू एजुकेशन एक्ट-2009 ने शिक्षा को नई दिशा दी है वहीं पर शिक्षक के अधिकारों के पंख भी कतरे हैं। आज शिक्षण संस्थानों में अनुशासन नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। बच्चों में शिष्टाचार, व्यवहार तथा संस्कार समाप्त होते जा रहे हैं। अनेकों प्रकार के नशे चुपचाप शिक्षण संस्थानों में अपनी जगह बना चुके हैं। मोबाइल का नशा तथा चिट्टा, भांग, शराब तथा पनपता असंतोष बच्चों में आक्रोश तथा तनाव का कारण बन चुके हैं। घर से बच्चों को कोई शिक्षा, संस्कार तथा मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा है। अध्यापक कानूनी बंधनों के कारण आगे बढ़ कर बच्चों के सुधार के लिए कोई प्रयास नहीं कर पा रहे हैं। यह खुला सत्य है कि दबी जुबान से तो सत्ता, समाज, अभिभावकों तथा प्रशासनिक गलियारों में भी इस विषय पर चर्चा होती रहती है लेकिन समाधान नहीं होता। बहुत से अभिभावक भी बच्चों के आचरण तथा व्यवहार से परेशान हैं। यहां अभिभावकों को भी गम्भीरता से इस बात पर विचार करना होगा कि जब तक अध्यापकों का मान-सम्मान तथा प्रतिष्ठा स्थापित नहीं होती, विद्यार्थियों के सही निर्माण की कल्पना नहीं हो सकती तथा समाज का कल्याण नहीं हो सकता।
यह सभी सामाजिक संगठनों, अभिभावकों, राजनैतिक दलों तथा प्रशासनिक अधिकारियों को समझना होगा कि अध्यापक मात्र वेतनभोगी तथा एक सामान्य कर्मचारी नहीं बल्कि समाज तथा राष्ट्र के निर्माण का एक मुख्य एवं महत्वपूर्ण स्तम्भ है। हमें यह भी गम्भीरता से विचार करना होगा कि हम कैसे समाज का निर्माण करने जा रहे हैं? भविष्य में ऐसे संस्कारहीन, संवेदनहीन, अनुशासनहीन, असहनशील तथा भावविहीन व्यक्तियों की समाज निर्माण में क्या भूमिका होगी? उपरोक्त प्रकरण सभ्य और शिक्षित समाज के लिए बहुत ही शर्मनाक है। ऐसा पनपता आक्रोश सभ्य समाज की स्थापना के लिए बहुत ही घातक है। शिक्षकों को भी चाहिए कि वे कानून व्यवस्था एवं नियमों का पालन करते हुए शिक्षा के उद्देश्यों के लिए सचेत रहें। कानून एवं शैक्षिक व्यवसाय के नियमों तथा मानकों के अनुरूप कार्य करते हुए अपने कत्र्तव्य, आचरण तथा व्यवहार पर विशेष ध्यान दें।
प्रो. सुरेश शर्मा
शिक्षाविद
By: divyahimachal
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