सम्पादकीय

खयाली से आगे शाही पुलाव

Subhi
22 March 2022 5:14 AM GMT
खयाली से आगे शाही पुलाव
x
स्वप्न और दिवा स्वप्न के अंतर को तो हम जानते ही हैं। अब हमें केवल इतना करना है कि खयाली पुलाव बनाना छोड़ कर उस शाही पुलाव को बनाने का जिम्मा उठाना है

स्वरांगी साने: स्वप्न और दिवा स्वप्न के अंतर को तो हम जानते ही हैं। अब हमें केवल इतना करना है कि खयाली पुलाव बनाना छोड़ कर उस शाही पुलाव को बनाने का जिम्मा उठाना है, जिसका हमने स्वप्न देखा है। जैसे ही हम शाही पुलाव बनाने के बारे में तय कर लेंगे, हम उस दिशा में सोचने लग जाएंगे कि उसे बनाने के लिए क्या-क्या सामग्री लगेगी, वह कहां से मिलेगी और उसकी तैयारी क्या होगी। कुछ समय बाद वह पुलाव हमारी थाली में होगा।

कई बार हमारा अवचेतन मन हमें बार-बार कुछ करने के लिए प्रेरित करता है, लेकिन हमें लगता है कि वह हमें उकसा रहा है और हम अनदेखी करते चले जाते हैं। जैसे शाही पुलाव का ही उदाहरण लेते हैं। मन हुआ शाही पुलाव खाने का तो हमारे ही मन ने यह कह कर हमें बरगला दिया कि उसमें बहुत झंझट है। उससे तो आसानी से चावल बन जाएंगे। इसके सरल मार्ग ने हमें शाही पुलाव में लगने वाले समय, मेहनत, उसमें डलने वाले सूखे मेवे-मसाले, यहां तक कि लगने वाले र्इंधन की खपत तक को गिना दिया और हमें फिर जता दिया कि केवल चावल बनाना कितना आसान है।

लेकिन अगर हम शाही पुलाव की लज्जत को जानते हैं और पूरी तरह से ठान लेते हैं कि और कुछ नहीं, बल्कि शाही पुलाव ही खाना है तो अगले कुछ समय में हम उसे बनाने में लग जाते हैं और उसे बना भी लेते हैं। श्रम की कीमत शाही पुलाव से उठने वाली महक की बनिस्बत बहुत कम लगने लगती है।

शाही पुलाव बनाने के लिए हमने क्या किया? हमारे दिमाग में उसके बनने से पहले ही उसकी तैयार छवि आ गई। मन ने पहले ही उसका आनंद ले लिया। यह सही है कि कर्म करना चाहिए और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए लेकिन हम अपेक्षित फल की कामना से ही कार्य कर पाते हैं, यह भी उतना ही सही है। दसवीं-बारहवीं बोर्ड की या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले उतनी मेहनत इसलिए करते हैं कि वे उस स्वप्न को जी रहे होते हैं जो सफल हो जाने पर साकार हो सकता है। हमें अपने सपनों को हकीकत में बदलना है और उसके लिए लगने वाले कष्ट को करने से नहीं चूकना है। अगर हम सपने नहीं देखेंगे तो उन्हें पूरा कैसे कर सकेंगे?

चीजों की तह तक जाएं तो जीवन के उतार-चढ़ाव हमको भारी नहीं लगेंगे। हम उसे खेल का हिस्सा समझ लेंगे। हमें हिल स्टेशन पर छुट्टियां बिताने जाना है और रास्ते में कई घुमावदार मोड़ लेने पड़ते हैं तो हम क्या करते हैं? हम उन टेढ़े-मेढ़े या ऊबड़-खाबड़ या पथरीले रास्तों से भी गाड़ी को आगे बढ़ाते चले जाते हैं, क्योंकि हमें पता है कि कुछ समय बाद हम उन हसीन वादियों तक पहुंच जाएंगे, जिनके लिए निकले हैं। हमने उन हसीन वादियों का चित्र पहले ही अपनी आंखों में संजो लिया था, तभी हम वहां तक पहुंच सके थे। जब हमने अपने गंतव्य को आंखों के सामने रखा था, तब यह भी पता था कि वहां तक पहुंचना आसान काम नहीं होगा। लेकिन तब भी हमने यात्रा पर निकलना तय कर लिया था।

जब हम अभिभूत हो जाते हैं और कई दिशाओं में अपनी सोच को लगा देते हैं तो उस स्थिति में भटकाव से बचने के लिए बड़ी तस्वीर को सामने रखना चाहिए। सादा चावल कितना आनंद देगी और शाही पुलाव या बिरयानी कितना, या रास्ते के घुमावदार मोड़ों पर ही अच्छे दृश्य देखने में लग गए तो अपने गंतव्य तक पहुंच पाएंगे क्या? जीवन के हर पहलू को इस कोण से देखने की कोशिश करना चाहिए। थकान लग रही हो तो थोड़ा विश्राम किया जा सकता है, लेकिन उस स्वप्न को सामने रखना चाहिए, जिसे लेकर हम चले थे।

'करूं न करूं' की उधेड़बुन में हम बहुत सारा समय सोचने में बिता देते हैं और कुछ कर नहीं पाते हैं। जो होना चाहिए था, वह अभी भी हो सकता है, उस दिशा में प्रयत्न करना तो शुरू कर देना चाहिए। सही चयन मायने रखता है। लक्ष्य को पाने के लिए कौन-सी राह पकड़ना बड़ी चुनौती हो सकता है, तो उसके लिए प्रयत्न करना चाहिए। एक समय पर कई निर्णय, चुनाव या रास्ते लेने में उलझना ठीक नहीं है। सारे तथ्यों और संभावनाओं को खंगालने की जरूरत है। मसलन, एक समय पर हम केवल शाही पुलाव बनाएंगे, तभी वह सध पाएगा।

अपने सपने के बारे में लिखना चाहिए कि उसे देखते हुए हमें कैसा महसूस हुआ था। वह सुखद अनुभूति हमें सपने को हकीकत बनाने में मददगार होगी। केवल सपनों से कुछ हासिल नहीं होता, उन सपनों को देखते हुए हमने कैसा महसूस किया था, वह अनुभूति हमको सपनों की दिशा में ले जाती है। उस अनुभूति को कार्य ऊर्जा में बदल दिया जाए। फिर हमको अपेक्षित परिणाम अवश्य मिलेंगे।


Next Story