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- आतंक का साया: फिर...

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और घाटी जन्नत बनी रहेगी, जहन्नुम नहीं बनेगी।
बीते तीन दिनों में पांच हत्याओं से कश्मीर लहूलुहान हो गया है। मंगलवार को आतंकियों ने तीन घंटे के भीतर तीन नागरिकों को मार डाला और गुरुवार को श्रीनगर में दो शिक्षकों को मौत के घाट उतार डाला। अनुच्छेद-370 हटने और राज्य के दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजन के बाद जम्मू-कश्मीर में सकारात्मक बदलाव दिखने लगे। ऐसा लगने लगा कि जल्दी ही घाटी में कश्मीरी पंडितों की वापसी हो सकेगी। लेकिन अमन-चैन का यह माहौल उन ताकतों को रास नहीं आ रहा, जो घाटी में आतंक के खैरख्वाह रहे हैं।
मंगलवार शाम आतंकियों ने श्रीनगर के मशहूर दवा विक्रेता मक्खन लाल बिंदरू की गोली मारकर हत्या कर दी। 68 वर्षीय बिंदरू उन चुनींदा कश्मीरी पंडितों में से थे, जिन्होंने 1990 के दशक के कत्लेआम के बावजूद घाटी से पलायन नहीं किया। बिंदरू ने हमेशा श्रीनगर की सेवा की। उनकी हत्या के चंद मिनटों बाद ही आतंकियों ने श्रीनगर की लाल बाजार में चाट का ठेला लगाने वाले वीरेंद्र पासवान और बांदीपोरा में टैक्सी यूनियन अध्यक्ष मोहम्मद शफी लोन की गोली मारकर हत्या कर दी।
बाद में द रेजिस्टेंट फ्रंट नामक लश्कर की एक संस्था ने कहा कि बिंदरू राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता थे और हम सिर्फ उन्हें मारते हैं, जो कश्मीर-विरोधी गतिविधियां करते हैं। एक ही दिन हुई इन तीन हत्याओं ने कश्मीर ही नहीं, पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। सोशल मीडिया पर लोगों ने कश्मीर में 1990 के दशक की वापसी को लेकर डर जताना शुरू कर दिया। हालांकि आतंकी उस दौर को दोहराने की स्थिति में तो नहीं हैं, लेकिन वे हिंसा के जरिये कश्मीर में अल्पसंख्यकों के मन में डर बैठाना चाहते हैं, ताकि घाटी में उनकी वापसी के प्रयासों की रफ्तार सुस्त पड़ जाए।
लेकिन मक्खन लाल बिंदरू की बेटी डॉ. श्रद्धा बिंदरू ने एक वीडियो में दहशतगर्दों को ललकारते हुए कहा है कि जिसने भी मेरे पिता को मारा है, हिम्मत है तो मेरे सामने आए और बहस करे। उनके परिवार ने कहा कि बिंदरू की हत्या जिस षड्यंत्र के लिए हुई है, उसे वे विफल करेंगे। बिंदरू परिवार का साहस सराहनीय है। उनकी इस सोच को नजीर बनाकर दूसरे कश्मीरियों को भी यह साबित करना चाहिए कि आतंकी कितने भी जुल्म क्यों न कर लें, उनके नापाक इरादे कभी कामयाब नहीं होंगे।
बिहार के भागलपुर के वीरेंद्र पासवान रोजगार की तलाश में कश्मीर आए थे। बिहार के निवासी अपनी जिजीविषा के लिए पूरे भारत में जाने जाते हैं। वे किसी भी चुनौती के सामने डिगते नहीं। आतंकियों ने धमकी दी कि बाहरी लोग कश्मीर आकर स्थानीय लोगों के रोजगार न छीनें। दिन भर में लगभग 250 रुपये कमाने वाले वीरेंद्र पासवान ने भला किस कश्मीरी का रोजगार छीना होगा?
कश्मीर में बदलते हुए माहौल की मुनादी इस वर्ष स्वाधीनता दिवस के दिन आई तस्वीरों ने भी की थी। समूचे कश्मीर के सरकारी स्कूलों में राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया। पुलवामा जिले के एक स्कूल में तो हिज्बुल के आतंकवादी बुरहान वानी के पिता व शिक्षक मुजफ्फर वानी ने ध्वज फहराया। इन तस्वीरों ने पाकिस्तान में बैठे आतंक के आकाओं को जरूर परेशान किया होगा। इसीलिए श्रीनगर के ईदगाह इलाके में दो शिक्षकों की हत्या कर दी गई। इसकी जिम्मेदारी लेते हुए द रेजिस्टेंट फ्रंट ने कहा कि इन शिक्षकों ने अभिवावकों पर अपने बच्चों को स्वाधीनता दिवस के दिन स्कूल भेजने का दबाव डाला था। तीन दिन में पांच मासूमों की हत्या करके आतंकी तत्काल भले ही खुश हो सकते हैं, लेकिन वे सुरक्षा एजेंसियों की निगाह से ज्यादा दिन तक बच नहीं पाएंगे।
कश्मीर ने बहुत कुछ देखा है और बहुत कुछ देख रहा है। आखिर कब तक कश्मीर लहुलुहान होता रहेगा? कब तक कश्मीरी सहता रहेगा? चार दिन के शोर के बाद सब भूल जाएंगे। लेकिन सुरक्षा एजेंसियां सबका हिसाब चुकता करेंगी। आतंकियों को याद रखना चाहिए कि बदलता अल्पसंख्यक अब उनके जुल्मों से डरेगा नहीं, बल्कि डटकर मुकाबला करेगा। और घाटी जन्नत बनी रहेगी, जहन्नुम नहीं बनेगी।

Rounak Dey
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