सम्पादकीय

गंभीर जलवायु संकट

Gulabi Jagat
22 July 2022 4:41 AM GMT
गंभीर जलवायु संकट
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यह वर्ष धरती का सबसे गर्म साल हो सकता है. फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, स्पेन, इटली समेत यूरोप के कई देशों में प्रचंड गर्मी पड़ रही है और अब तक एक हजार से अधिक लोगों की लू से मौत हो चुकी है. तापमान में बढ़ोतरी तो कई सालों से जारी है, पर इस साल सभी पुराने रिकॉर्ड टूट गये हैं. सूखे की वजह से उत्तरी इटली में पो डेल्टा नदी क्षेत्र में 70 फीसदी फसल नष्ट हो चुकी है.

पश्चिमी यूरोप के अनेक जंगलों में आग लगी है और इससे कई शहरों व बस्तियों के तबाह होने का खतरा पैदा हो गया है. इसी बीच विश्व मौसम संगठन ने चेतावनी जारी की है कि अगले कुछ दिनों में उच्च तापमान से राहत मिलने की संभावना नहीं तथा गर्मी की यह लहर आगामी दशकों में भी लगातार आती रहेगी. संगठन ने स्पष्ट कहा है कि यह गर्मी धरती के बढ़ते तापमान का नतीजा है और ऐसा मानवीय गतिविधियों के कारण हो रहा है.

कुछ दिन पहले संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंतोनियो गुत्तेरेस ने भी विश्व समुदाय को आगाह किया था कि अगर हम जलवायु संकट को लेकर गंभीर नहीं होंगे और इससे निपटने के तात्कालिक प्रयास नहीं करेंगे, तो निश्चित रूप से हमारे ग्रह का भविष्य खतरे में पड़ जायेगा. विश्व मौसम संगठन ने भी इसी तरह की चेतावनी दी है. बढ़ते तापमान का सबसे अधिक असर खेती पर पड़ रहा है.

यूरोप में पहले की ऐसी घटनाओं में पैदावार में बड़ी कमी आयी थी. इस बार यह इसलिए और अधिक गंभीर मामला है कि यूरोप में मुद्रास्फीति चरम पर है तथा दुनिया के कई देशों में खाद्य संकट की आशंका है. खाद्य पदार्थों के साथ ऊर्जा स्रोतों की कीमतें भी आसमान छू रही हैं. इस वर्ष हमारे देश में भी बढ़ती गर्मी से फसलें प्रभावित हुई हैं. कई देशों की तरह पानी की कमी हमारे यहां भी है और इसकी पूर्ति के लिए भूजल का बेतहाशा दोहन हो रहा है.

यद्यपि मानसून के सामान्य रहने की उम्मीद है, पर कई इलाकों में समय से बारिश नहीं होने से खेत सूखने लगे हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण असमय और अत्यधिक बारिश की समस्या भी हमारे सामने है. प्राकृतिक आपदाओं के आने की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. ध्रुवीय बर्फ के पिघलने से समुद्री जल स्तर बढ़ रहा है और यह बहुत जल्दी तटों पर बसे शहरों के अस्तित्व के लिए खतरा बन सकता है.

अनेक अध्ययन इंगित कर रहे हैं कि ध्रुवीय बर्फ और ग्लेशियर अनुमानों से कहीं अधिक तेजी से पिघल रहे हैं. एक ताजा अध्ययन के अनुसार आर्कटिक बर्फ के पिघलने की गति पूर्ववर्ती आकलनों से चार गुना अधिक है. ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में यह आशा जगी थी कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय मिल-जुलकर तापमान वृद्धि को रोकने तथा कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए प्रयासरत होगा, पर महामारी के असर से निकलने की कोशिश में उत्सर्जन बढ़ता ही जा रहा है, जो निश्चित ही आत्मघाती है.

इस संकट का समाधान कुछ देशों के प्रयासों से नहीं हो सकता है. यह वैश्विक चुनौती है और मानवता का अस्तित्व ही खतरे में है. इसलिए व्यापक अंतरराष्ट्रीय प्रयासों की दरकार है.


प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय

Gulabi Jagat

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