सम्पादकीय

पचहत्तर साल, पचास किताबें : सियासी उतार-चढ़ाव से लेकर सामाजिक ताने-बाने के इतिहास तक सब मिलेगा

Neha Dani
11 Sep 2022 1:46 AM GMT
पचहत्तर साल, पचास किताबें : सियासी उतार-चढ़ाव से लेकर सामाजिक ताने-बाने के इतिहास तक सब मिलेगा
x
प्रत्येक पुस्तक के प्रथम प्रकाशन की तिथि कोष्ठक में दी गई है।

मैंने अगस्त में अपने इस स्तंभ में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं के इतिहास का संक्षिप्त विश्लेषण किया था। इस आलेख में मैं ऐसी कथेतर किताबों की सूची दे रहा हूं, जिसे मैंने हमारे गणतंत्र के उतार-चढ़ाव भरे सफर को समझने में मददगार पाया है। यों तो मैं समरूपता और पाठकों की वृहत रुचियों को ध्यान में रखकर पचहत्तर किताबों की सूची देना चाहता था, लेकिन इस स्तंभ की शब्द सीमा में यह व्यावहारिक नहीं होता। लिहाजा मैंने पचास किताबें चुनी हैं। मैंने खुद को 1947 के बाद के कालखंड तक सीमित रखा है; यह 'भारतीय इतिहास' के बजाय 'स्वतंत्र भारत' की अध्ययन सूची है। प्रत्येक पुस्तक के प्रथम प्रकाशन की तिथि कोष्ठक में दी गई है।




मैं इसकी शुरुआत ग्रैनविले ऑस्टिन की द इंडियन कांस्टिट्यूशनः कॉर्नरस्टोन ऑफ अ रिपब्लिक (1966) से कर रहा हूं, जो कि संविधान निर्माण के समय हुई बहसों पर ऐतिहासिक काम है। इसके साथ नीरजा गोपाल जयाल की सिटीजनशिप ऐंड इट्स डिस्कंटेंट्सः एन इंडियन हिस्ट्री (2013) पढ़नी चाहिए, जिसमें लंबा कालखंड और कहीं अधिक समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण है।

पूर्व रियासतों का एकीकरण और भाषायी राज्यों का निर्माण स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में हमारे पहले दशक के सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम थे। इसमें पहले वाले के लिए वीपी मेनन की इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट्स (1956) सर्वश्रेष्ठ किताब बनी हुई है (लेखक ने सरदार पटेल के साथ काम किया था और उस प्रक्रिया के एकम अहम किरदार थे।) जहां तक भाषा का प्रश्न है, रॉबर्ट डी. किंग की नेहरू ऐंड द लैंग्वेज पॉलिटिक्स ऑफ इंडिया (1997) देखनी चाहिए।

अब मैं बड़ी ऐतिहासिक हस्तियों की जीवनियों पर आता हूं। इस विधा में महत्वपूर्ण कामों में, वाल्टर क्रोकर की नेहरूः ए कंटेम्परेरीज इस्टीमेट (1966), राजमोहन गांधी, पटेल: ए लाइफ (1990), कैथरीन फ्रैंक, इंदिराः द लाइफ ऑफ इंदिरा नेहरू गांधी (2001), सीपी श्रीवास्तव, लाल बहादुर शास्त्री (1995), धनंजय कीर, आंबेडकर (1954; संशोधित संस्करण 1990), एलन ऐंड वेंटी स्क्राफ, जेपीः हिज बॉयोग्राफी (1975; संशोधित 1998) और ऐलन कैरोल डुबोस ऐंड विनय लाल, ए पैसोनेट लाइफः राइटिंग्स बाई ऐंड ऑन कमलादेवी चट्टोपाध्याय (1997) शामिल हैं।

महात्मा गांधी के स्थायी प्रभाव में दिलचस्पी रखने वालों को रजनी बख्शी की बापू कुटी: जर्नीज, रीडिस्कवरी ऑफ गांधी (1998) पढ़नी चाहिए। आंबेडकर और नेहरू स्वतंत्र भारत के अग्रणी नेता होने के साथ ही महत्वपूर्ण विचारक भी थे। इसलिए मैं वेलेरियन रोड्रिग्स द्वारा संपादित द असेन्शियल राइटिंग्स ऑफ बी. आर. आंबेडकर (2002) के साथ ही पुरुषोत्तम अग्रवाल द्वारा संपादित हू इज भारत माता? हिस्ट्री, कल्चर ऐंड आइडिया ऑफ इंडियाः राइटिंग्स बाई ऐंड ऑन जवाहरलाल नेहरू (2019) को पढ़ने की सलाह दे रहा हूं। हाल के दिनों में, आरएसएस के विचारक एमएस गोलवलकर का प्रभाव शायद आंबेडकर और नेहरू के प्रभाव के बराबर या उससे अधिक हो गया है, इसलिए मैंने उनके संकलन, ए बंच ऑफ थॉट्स (1966) को शामिल किया है।

स्वतंत्र भारत में राजनीतिक प्रक्रिया का शानदार विहंगावलोकन ऑक्सफोर्ड कंपेनियन टू इंडियन पॉलिटिक्स में मिलता है, जिसका संपादन नीरजा गोपाल जयाल और प्रताप भानु मेहता (2010) ने किया है। भारत ने वयस्क मताधिकार क्यों और कब अपनाया, यह जानने के लिए ओनिट शैनी की हाउ इंडिया बिकेम डेमोक्रेटिक (2017) देखें। चुनावी राजनीति के अरुचिकर पक्ष को जानने के लिए मिलन वैष्णव की, व्हेन क्राइम पेज: मनी ऐंड मसल इन इंडियन पॉलिटिक्स (2017) देखें। आरएसएस पर सबसे अच्छी किताब देशराज गोयल की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (1979) कायम है। स्वतंत्रता के बाद से आर्थिक नीति के इतिहास को फ्रैंसिन फ्रैंकेल ने अपनी किताब इंडियाज पॉलिटिकल इकोनॉमी 1947-2004 ( 2005) में चित्रित किया है।

वर्तमान की आर्थिक चुनौतियों के लिए देखें नौशाद फोर्ब्स की द स्ट्रगल ऐंड द प्रॉमिसः रेस्टॉरिंग इंडियाज (2022)। भारतीय प्रतिरक्षा नीति और विदेश नीति का शानदार विहंगावलोकन क्रमशः श्रीनाथ राघवन की वार ऐंड पीस इन मॉडर्न इंडिया (2009) और शिवशंकर मेनन की, चॉइसः इनसाइड द मेकिंग ऑफ इंडियाज फॉरेन पॉलिसी (2016) में मिलता है। हमारे महान एशियाई पड़ोसी से हमारे जटिल संबंधों के लिए कांति बाजपेयी की इंडिया वर्सेज चाइनाः व्हाई, दे आर नॉट फ्रैंड्स (2021) देखें।

एक आधुनिक राज्य का आधार संसद, सर्वोच्च न्यायालय और सिविल सेवा जैसे संस्थान हैं। इस विषय पर उपयोगी किताब रीथिंकिंग पब्लिक इंस्टीट्यूशंस इन इंडिया (2019) है, जिसके संपादक देवेश कपूर, प्रताप भानु मेहता और मिलन वैष्णव हैं। स्टीवन विल्कसंस की भारतीय सेना पर केंद्रित किताब, आर्मी ऐंड नेशनः द मिलिट्री ऐंड इंडियन डेमोक्रेसी (2015) देखी जा सकती है। एक अन्य महत्वपूर्ण संस्थान है मीडिया, पूर्व मोदी (या गोदी मीडिया) युग में इसके क्रमिक विकास का विश्लेषण रॉबिन जेफ्री ने अपनी किताब इंडियाज न्यूजपेपर रिवोल्यूशनः कैपिटलिज्म, पॉलिटिक्स ऐंड इंडियन लैंग्वेज (2000) में किया था।

मैं अब आधुनिक भारत में सामाजिक ढांचे और सामाजिक बदलाव से संबंधित कार्यों की चर्चा करूंगा। ग्रामीण इलाकों में जाति के असर पर मैं नृवंशविज्ञान के दो क्लासिक की सिफारिश करता हूं, पहली एक भारतीय एमएन श्रीनिवास की द रिमेम्बर्ड विलेज (1977) और दूसरी है डच विद्वान जैन ब्रीमन की पैट्रोनेज ऐंड एक्सप्लाइटेशन (1974)। स्वतंत्र भारत में मुसलमानों की स्थिति और दुर्दशा पर मुशीरुल हसन की लिगेसी ऑफ ए डिवाइडेड नेशनः इंडियाज मुस्लिम्स सिंस इंडिपेंडेंटेंस (1997) देखें। वहीं आदिवासियों की दुर्दशा के लिए नंदनी सुंदर के संपादन में द शेड्यूल्ड ट्राइब्स ऐंड देअर इंडिया (2016) देखें।

भारत के राज्यों में काफी विविधता है। दुर्भाग्य से अभी तक बहुत थोड़े से लोगों ने विद्वतापू्र्ण और शोध के आधार पर उनके इतिहास के बारे में लिखा है। दुर्लभ अपवादों में रॉबिन जेफ्री की पॉलिटिक्स, वीमन ऐंड वेलबीइंगः हाउ केरला बिकेम ए मॉडल (1992) और नरेंद्र सुब्रमण्यम की एथनिसिटी ऐंड पापुलिस्ट मोबिलाइजेशन (1999) शामिल है, जो कि तमिलनाडु के बारे में है। दलित आंदोलन के लिए डीआर नागराज की द फ्लेमिंग फीटः द दलित मूवमेंट इन इंडिया (2010), महिला आंदोलन के लिए राधा कुमार की ए हिस्ट्री ऑफ डुइंगः एन इलस्ट्रेटेड अकाउंट ऑफ मूवमेंट्स फॉर वीमन राइट्स ऐंड फेमिनिज्म (1993), पिछड़ी जातियों के संघर्ष के बारे में क्रिस्टॉफ जैफेरलोट की इंडियाज साइलेंट रिवोल्यूशन (2003), पर्यावरण आंदोलन पर शेखर पाठक की द चिपको मूवमेंटः ए पीपुल्स हिस्ट्री (2020) देखें।

कश्मीर विवाद पर अनेक किताबें हैं, उनमें शुरुआती और श्रेष्ठ किताब शिशिर गुप्ता की कश्मीरः ए स्टडी इंडिया-पाकिस्तान रिलेशंस (1965) है। पूर्वोत्तर पर संजीब बरूआ की किताब इन द नेम ऑफ द नेशनः इंडिया ऐंड इट्स नॉर्थ ईस्ट (2020) देखें। मध्य भारत में माओवादी विद्रोह और उसके व्यापक प्रभाव पर नंदिनी सुंदर की द बर्निंग फॉरेस्ट (2016) देखें। आइए, अब कुछ लोकप्रिय झुकाव को ध्यान में रखकर लिखी गई किताबों पर बात करें। इनमें से दो एकेडेमिक्स द्वारा लिखी गई हैंः ज्यां द्रेज की सेंस ऐंड सॉलिडरिटीः झोलावाला इकोनॉमिक्स फॉर एवरीवन (2017) और आंद्रे बेतली की क्रॉनिकल्स ऑफ अवर टाइम (2000) ये दोनों व्यापक पाठक वर्ग के लिए गहरे शोध के आधार पर लिखी गई है।

मैं अब पत्रकारों द्वारा लिखी गई चार किताबों का जिक्र करूंगा। ये हैं, मुंबई की झुग्गियों पर लिखी कैथरीन बू की बिहाइंड द ब्यूटीफूल फर्वर्स (2012); पी साईनाथ की एवरीबडी लव्स ए गुड लाइफ, जो कि ग्रामीण भारत में अस्तित्व के संघर्ष पर केंद्रित है; राजदीप सरदेसाई की 2019: हाउ मोदी वोन इंडिया (2020) और मार्क टली की नो फुल स्टॉप्स इन इंडिया (1991)। एक जीवनी, अपने समय में एक जीवन की कहानी, सामाजिक और राजनीतिक इतिहास की खिड़की होती है, ऐसा ही आत्मकथा के बारे में भी कहा जा सकता है।

अंत में मैं इस सूची में कुछ संस्मरणों को जोड़ रहा हूं। इनमें से दो दलितों ने लिखे हैं। पहली अंग्रेजी में लिखी सुजाता गिडला की ऐंट्स अमंग ऐलिफेंट्स (2017) और दूसरी हिंदी में लिखी ओम प्रकाश वाल्मिकी की जूठन, जिसका अरुण मुखर्जी ने अंग्रेजी में अनुवाद (2004) किया। अन्य दो हैं, पद्मा देसाई की अंग्रेजी में लिखी और मध्य वर्ग पर केंद्रित ब्रेकिंग आउट (2012) और मलिका अमर शेख की मूलतः मराठी में लिखी और जेरी पिंटो द्वारा अंग्रेजी में अनुदित आई वांट टू डिस्ट्रॉय माइसेल्फ (2019)। मुझे विश्वास है कि पाठक इन पचास पुस्तकों में से कुछ का अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित होंगे। इनमें से कई किताबों के हिंदी तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद भी उपलब्ध हैं।

सोर्स: अमर उजाला

Next Story