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- पचहत्तर वर्षों की...
परमजीत सिंह वोहरा: आजादी के पचहत्तर वर्ष पूरे हो रहे हैं। इन वर्षों में भारत ने एक लंबी यात्रा तय की है। इन साढ़े सात दशकों में आर्थिक स्तर पर भारत की बेहतरीन सफलता का राज समय-समय पर उसका सुदृढ़ आर्थिक नियोजन रहा है। शुरुआत पंचवर्षीय योजनाओं से हुई थी, जो कि धीरे-धीरे आर्थिक विकास की मुख्य आधारशिला बनी।
प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में पिछली योजनाओं के मूल्यांकन तथा भविष्य की रूपरेखा को इस तरह से आर्थिक नीतियों में समय रहते उतारा गया कि भारत हर चुनौती से बड़ी सफलता से लड़ा तथा आज वैश्विक स्तर पर बड़ी तेजी से उभरती हुई शक्ति के रूप में पहचाना जाने लगा है। एक समय वह भी था, जब खाद्य पदार्थों की भयंकर कमी हो गई थी तथा भारत विदेशी सहायता मुख्यत: अमेरिका पर निर्भर था।
पर साठ के दशक के अंतिम वर्षों में भारत ने हरित क्रांति लाकर खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त की। आज भारत खाद्यान्न उत्पादन में विश्व में सर्वश्रेष्ठ तथा बड़ा निर्यातक देश माना जाता है। एक रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक पिछले छह वर्षों में कृषि उत्पादों के निर्यात में भारत ने 16.3 अरब अमेरिकी डालर की वृद्धि दर्ज की है।
हरित क्रांति के बाद भारत में अपनी चाल बढ़ाई श्वेत क्रांति की तरफ और दुग्ध उत्पादन में भी आत्मनिर्भरता हासिल की। इस क्रांति के कारण पिछले चालीस वर्षों में भारत में दुग्ध उत्पादन पांच गुना बढ़ा है। वित्तवर्ष 2020-21 में दुग्ध उत्पादन 2.10 अरब टन के बराबर था।
1947 में भारतीय अर्थव्यवस्था का जीडीपी 2.7 लाख करोड़ के बराबर था, जो आज 2022 में 236.65 लाख करोड़ हो गया है। इससे यह स्पष्ट है कि इन पचहत्तर वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार तकरीबन नब्बे गुना बढ़ा है। विदेशी मुद्रा भंडारण आज 571 अरब अमेरिकी डालर के बराबर है, जो कि विश्व का पांचवा सबसे बड़ा संग्रह है।
इससे स्पष्ट है कि एक आम भारतीय का आर्थिक जीवन लगातार सुधरता जा रहा है। इसमें यह समझना भी जरूरी है कि पिछले पचहत्तर वर्षों में कई दफा आर्थिक नीतियों में ऐसे आमूलचूल परिवर्तन हुए हैं, जिसने सकारात्मक परिणाम भी दिए तथा कई ऐसी समस्याएं भी पैदा की हैं, जिनका निवारण अभी तक नहीं हुआ है।
आजादी के समय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का पचपन फीसद के आसपास अंशदान हुआ करता था, जो कि आज पंद्रह फीसद ही रह गया है। इसका अंशदान लगातार गिरा है। यह गहन सोच का विषय है। आज भी इस मुल्क की करीब अस्सी फीसद ग्रामीण आबादी कृषि पर निर्भर है, लेकिन अब कृषि आर्थिक रूप से बिल्कुल भी सक्षम नहीं है। इसी कारण अर्थव्यवस्था के लगातार बढ़ रहे आकार के बावजूद किसान लगातार गरीब होता चला गया।
यह भी सच्चाई है कि भारत आज अगर एक गरीब मुल्क है तो इसके पीछे यहां के किसान का गरीब होना एक कारण है। पिछले काफी वर्षों से कृषि क्षेत्र ने वार्षिक वृद्धि तीन से चार फीसद के बीच ही हासिल की है, जो कि चिंताजनक है। किसान का जीवन वित्तीय कर्जों के बोझ से दबा हुआ है।
आज भी खेती मानसून पर निर्भर है, क्योंकि कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिकीकरण न के बराबर हुआ है। किसान को उसकी उपज का सही मूल्य भी नहीं मिलता है। इन सब निराशाओं के कारण ही किसानों की आत्महत्याएं प्रति वर्ष बढ़ रही हैं। आज अगर भारत विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है तो निश्चित रूप से इस रूपांतरण का वास्तविक श्रेय सेवा क्षेत्र को जाता है। पिछले तीन दशकों से सेवा क्षेत्र ने भारतीय अर्थव्यवस्था की बागडोर बड़ी कुशलता से संभाल रखी है।
पिछले वित्तवर्ष में भी इस क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर 10.8 फीसद थी। तीन दशक पूर्व हुए आर्थिक सुधारों में जब निजीकरण को बढ़ावा दिया गया, तबसे सेवा क्षेत्र ने बड़ी तेजी से मुल्क को आर्थिक रूप से समृद्ध किया है। आज सेवा क्षेत्र के अंतर्गत सूचना तकनीक, टेलीकाम, परिवहन, बैंकिंग, बीमा आदि बड़ी तेजी से समृद्ध हो रहे हैं।
पिछले दो दशक से स्वास्थ्य सुविधाओं ने भी इस क्षेत्र में अपने आप को काफी तेजी से स्थापित किया है। पिछले कई वर्षों से भारत में कुल विदेशी निवेश का अधिकतम भाग सेवा क्षेत्र ही आकर्षित करता है। कोरोना से प्रभावित होने के बावजूद वर्ष 2021-22 में भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक विदेशी मुद्रा का निवेश सेवा क्षेत्र में ही हुआ था।
वर्तमान में मुल्क की तेईस फीसद आबादी को सेवा क्षेत्र में ही रोजगार प्राप्त होता है। इसके अलावा भारत के कुल निर्यात में भी अधिकतम हिस्सा सेवा क्षेत्र का ही है। 2025 तक भारतीय सूचना तकनीक की विभिन्न कंपनियों का वैश्विक बाजार मूल्य तकरीबन बीस अरब अमेरिकी डालर के बराबर हो जाएगा। निश्चित रूप से इससे भारत आने वाले समय में और अधिक आर्थिक रूप से संपन्न होगा।
भारतीय अर्थव्यवस्था की पचहत्तर वर्षों की इस लंबी यात्रा ने काफी सुखद परिणाम दिए हैं, तो कुछ समस्याएं भी जस की तस हैं। निर्माण क्षेत्र के अंशदान का तेजी से न बढ़ना भी एक मुख्य समस्या है। भारत में बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए निर्माण क्षेत्र को ही आगे आना होगा, अन्यथा यह समस्या और विकट होती चली जाएगी।
इसके अलावा कृषि क्षेत्र के वे किसान जो लगातार गरीब होते जा रहे हैं, जिसके पीछे मुख्य कारण उनके स्वामित्व के छोटे जमीन के टुकड़े हैं, उनको भी आर्थिक रूप से सहारा यही क्षेत्र ही दे सकता है। निर्माण क्षेत्र अगर आज वैश्विक पहचान नहीं बना पाया है, तो इसकी वजह लागत का अधिक होना तथा गुणवत्ता का कम पाया जाना है। इसी कारण विदेशी निवेश भी यह क्षेत्र ज्यादा आकर्षित नहीं कर पाता है।
हालांकि पिछले कई वर्षों से आटो तथा फार्मा क्षेत्र ने अपनी एक वैश्विक पहचान बनाई है तथा दोनों बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। इसके अलावा मुल्क की अन्य आर्थिक समस्याओं में कच्चे तेल का आयात एक प्रमुख संकट है। अमूमन हर आमजन इस बात को समझता है कि घरेलू बाजार में महंगाई बढ़ने के पीछे का एक मुख्य कारण वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के मूल्यों में बढ़ोतरी होता है।
आज भारत लगभग अस्सी फीसद कच्चे तेल का आयात करता है। भारतीय रुपया वैश्विक बाजार में जब भी विभिन्न कारणों से कमजोर होता है तो देश का आयात बिल बहुत तेजी से बढ़ता है तथा उस दशा में भी कच्चे तेल की खरीदारी एक मुख्य भूमिका निभाती है। इस समस्या का निदान तभी संभव है जब निर्माण क्षेत्र में देश निर्यात के अंतर्गत अपने अंशदान को बढ़ाए।
इन सबके बावजूद विभिन्न वैश्विक रपटें मानती हैं कि भारत का आर्थिक भविष्य बहुत समृद्ध है। आज भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी ताकत इसकी विशाल उपभोग क्षमता है। इसी कारण भारत को विश्व का सबसे बड़ा बाजार भी कहा जाता है। सकारात्मक पक्ष यह भी है कि इन दिनों भारत में तकनीक के माध्यम से व्यापार संचालन में बड़ी तेजी से वृद्धि हो रही है। 2017 में कर प्रणाली में किए गए आमूलचूल परिवर्तन के बाद तकनीक के माध्यम से जीएसटी संग्रहण में काफी वृद्धि हुई है।
यह भी देखने को मिला है कि अब भारत का शिक्षित युवा उद्यमी बनने की ओर अग्रसर है तथा अधिकतम स्टार्टअप आधुनिक तकनीक से संचालित हो रहे हैं। इसलिए हर भारतीय को महसूस करना चाहिए कि आने वाले वर्षों में भारत और अधिक आर्थिक समृद्ध होगा तथा प्रत्येक व्यक्ति का जीवन आर्थिक रूप से और संपन्न रहेगा।