सम्पादकीय

सेवा और मेवा

Subhi
28 March 2022 3:52 AM GMT
सेवा और मेवा
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हर राजनेता जब चुनाव मैदान में उतरता है, तो लोगों से सेवा का मौका मांगता है, मगर चुनाव जीत जाने के बाद वह सेवा करे न करे, जीवन भर मेवा जरूर खाता रहता है।

Written by जनसत्ता: हर राजनेता जब चुनाव मैदान में उतरता है, तो लोगों से सेवा का मौका मांगता है, मगर चुनाव जीत जाने के बाद वह सेवा करे न करे, जीवन भर मेवा जरूर खाता रहता है। बेशक कोई चुनाव जीत कर दो दिन के लिए सदन में चला जाए, फिर कभी चुनाव न लड़े या जीते, आजीवन उसे पेंशन और कई सुविधाएं मिलती रहती हैं। अगर कोई नेता कई बार चुनाव जीत चुका है, तो उसी के मुताबिक उसकी पेंशन की राशि प्रति कार्यकाल के हिसाब से बढ़ती जाती है। इस तरह कई नेता पांच लाख रुपए प्रति माह से अधिक की पेंशन पाते हैं।

पंजाब की नई सरकार ने इस पर रोक लगा दी है। अब विधायकों को केवल एक कार्यकाल के बराबर पेंशन मिला करेगी। फिलहाल पंजाब में विधायकों को एक कार्यकाल की पेंशन पचहत्तर हजार एक सौ पचास रुपए मिलती है। स्वाभाविक ही पंजाब सरकार के इस फैसले का आम जन में चौतरफा स्वागत हो रहा है। अपेक्षा की जा रही है कि दूसरी राज्य सरकारें और केंद्र सरकार भी इस फैसले को नजीर मानते हुए कोई व्यावहारिक कदम उठाएंगी। पंजाब सरकार ने यह फैसला राज्य का वित्तीय संकट दूर करने के मकसद से किया है। देश के तमाम राज्य वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं, इसलिए उनसे भी ऐसे फैसले की उम्मीद की जा रही है।

पिछले कुछ समय से पेंशन का मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में है। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय सरकारी कर्मचारियों की पेंशन बंद कर दी गई थी। तब से इसे दुबारा लागू करने की मांग उठती रही है। उत्तर प्रदेश चुनाव के वक्त जब तमाम राजनीतिक दल मुफ्त की योजनाओं के लोकलुभावन वादे कर रहे थे, तब सपा ने पुरानी पेंशन योजना लागू करने का वादा कर दिया। उस वादे को लपकते हुए आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सरकारों ने अपने यहां पुरानी पेंशन योजना लागू भी कर दी।

तब यह सवाल फिर जोर-शोर से उठने लगा कि जब सांसदों और विधायकों की पेंशन बंद नहीं की जाती, तो केवल सरकारी कर्मचारियों को यह सजा क्यों दी जा रही है। आखिर अवकाश प्राप्ति के बाद उन कर्मचारियों को भी अपना परिवार चलाना होता है। यह कहां का सामाजिक न्याय है। इस दृष्टि से भी पंजाब सरकार के ताजा फैसले से लोग खुश हैं। हालांकि पंजाब से पहले हरियाणा सरकार ने विधायकों की पेंशन राशि की सीमा एक लाख रुपए तक सीमित कर रखी है। पर वह फैसला केवल दो हजार चौदह के बाद के विधायकों पर लागू है। इस तरह वहां करीब ढाई सौ विधायक पुराने नियम के तहत लाखों रुपए की पेंशन ले रहे हैं।

विधायकों और सांसदों की पेंशन इसलिए भी लोगों को खटकती रही है कि चुनाव जीतने के बाद ज्यादातर नेताओं की संपत्ति एकदम से कई गुना बढ़ी दर्ज होती है। चुनाव जीतते ही वे रातोंरात अमीर हो जाते हैं। उसके बावजूद उन्हें लाखों रुपए पेंशन मिलती है। कई तो सांसद और विधायक दोनों की पेंशन लेते हैं। फिर उन्हें चिकित्सा, यात्रा आदि के मद में भत्ते और सुविधाएं मिलती रहती हैं। इससे राज्य सरकारों पर भारी वित्तीय बोझ पड़ता है। पंजाब के मुख्यमंत्री का यह तर्क उचित है कि जब राजनेता सेवा के मकसद से राजनीति में आते हैं, तो उन्हें पेंशन की फिक्र क्यों होनी चाहिए। पंजाब ने एक नजीर पेश कर दी है, अब दूसरे राज्यों की तरफ नजर है।


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