सम्पादकीय

गंभीर मुद्दा : रोजगार का नया फलक खोलते आईटीआई

Neha Dani
26 Oct 2021 1:48 AM GMT
गंभीर मुद्दा : रोजगार का नया फलक खोलते आईटीआई
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कुशल 'मानव संसाधन' तैयार हो सके। कौशल विकास में आई.टी.आई. अहम योगदान कर सकते हैं और कर रहे हैं।

देश में रोजगार आज युवाओं के लिए सबसे गंभीर मुद्दा और चिंता का विषय है। हाल के वर्षों में औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र यानी आई.टी.आई. ने रोजगार की दिशा में नया फलक खोला है। इन दिनों हिमाचल प्रदेश में औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र (आई.टी.आई.) में प्रवेश की प्रक्रिया अंतिम चरणों में है और राज्य के 140 सरकारी आई.टी.आई. में दाखिले के लिए विद्यार्थियों की भीड़ नजर आ रही है। सरकारी संस्थानों में दाखिले से वंचित विद्यार्थी निजी आई.टी.आई. का रुख कर रहे हैं। यह स्थिति कमोबेश सारे राज्यों में है।

आई.टी.आई. में दाखिले के लिए ऐसा उत्साह और प्रतिस्पर्धा युवाओं में तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के प्रति बढ़ते रुझान को दिखा रहा है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि रोजगार और स्वरोजगार प्राप्ति की सबसे सहज और सुलभ राह, हुनर से रोजगार तक का आसान मार्ग आई.टी.आई. से होकर गुजरता है। देश भर में समान पाठ्यक्रम, समान समय-सारणी और समान कंप्यूटर आधारित परीक्षा पैटर्न के साथ आई.टी.आई. व्यावहारिक और रोजगारपरक तकनीकी शिक्षा का आधार बने हुए हैं।
आज देश में हर तीसरा व्यक्ति युवा है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश की 65 फीसदी आबादी 35 वर्ष से कम आयु वर्ग की है। जापान, चीन और पश्चिमी देश जहां अपनी बूढ़ी होती जनसंख्या से चिंतित हैं, वहीं भारत 29 वर्ष की औसत आयु के साथ दुनिया में सर्वाधिक युवा देश बनने की ओर अग्रसर है। जनसंख्या विस्फोट की स्थिति का सामना कर रहे हमारे देश में सबसे अधिक युवा 'कार्यशील' जनसंख्या होने का लाभांश भी हमें मिलने लगा है।
विश्व व्यापार संगठन के एक अनुमान के अनुसार, अगर भारत में युवा प्रशिक्षण और कौशल विकास पर ध्यान दिया जाता है, तो यहां की विशाल 'कुशल' युवा-शक्ति देश के 'सकल घरेलू उत्पाद' में दो फीसदी की अतिरिक्त वृद्धि कर सकती है। मगर वास्तव में आज स्थिति इसके उलट है। इतनी विशाल युवा जनसंख्या को रोजगार उपलब्ध करवाना सरकार और समाज के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। स्नातक, परास्नातक, यहां तक कि पीएच.डी. जैसी डिग्रियां हासिल करने के बाद भी छात्र रोजगार के लिए भटक रहे हैं।
ऐसे में अगर रोजगार के मोर्चे पर तस्वीर बदलनी है, तो कौशल विकास और रोजगारपरक तकनीकी और वोकेशनल कोर्सों को महत्व देना होगा। छात्रों को कुशल बनाना और आवश्यक दक्षता के साथ युवा कार्यबल तैयार करना ही स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसे महत्वाकांक्षी अभियानों को सफल बनाने की कुंजी है, और रोजगार सृजन इनके प्रतिपूरक स्वत: ही बढ़ता जाएगा। हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य में रोजगार के लिए कृषि पर निर्भरता नगण्य है, और सरकारी नौकरियों के भी सीमित अवसर हैं, जबकि शिक्षित बेरोजगारों की कतार निरंतर बढ़ रही है।
बेरोजगारी का आलम यह है कि मास्टर्स डिग्री प्राप्त युवा भी सफाई कर्मचारी, चपरासी और माली जैसे पदों के लिए आवेदन कर रहे हैं। बेरोजगारी के इस अंतहीन चक्र से पार पाना है, तो युवाओं को काबिल और कार्यकुशल बनाना होगा, जैसा कि हिंदी फिल्म थ्री इडियट का एक प्रसिद्ध संवाद है कि 'बच्चा काबिल बनो, काबिल, कामयाबी तो झख मार के पीछे आएगी।' यह संवाद युवा भारतीयों के आचरण का हिस्सा बनना चाहिए। कौशल विकास को एक मिशन की तरह चलाने की आवश्यकता है। सरकार भी इसके महत्व को समझ रही है।
केंद्र सरकार ने कौशल विकास एवं उद्यमिता नामक एक अलग नए मंत्रालय का गठन किया है, जिसके अंतर्गत स्किल इंडिया मिशन, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना और राष्ट्रीय प्रशिक्षुता प्रशिक्षण योजना जैसे कई कार्यक्रम देश में चालीस क्षेत्रों में अलग-अलग तकनीकी और वोकेशनल कोर्स करवा रहे हैं, ताकि प्रशिक्षण का बुनियादी ढांचा विकसित हो सके और कुशल 'मानव संसाधन' तैयार हो सके। कौशल विकास में आई.टी.आई. अहम योगदान कर सकते हैं और कर रहे हैं।
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