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जनता से रिश्ता वेबडेस्क: मध्य प्रदेश और राजस्थान सीमा पर शनिवार सुबह हुए भारतीय वायुसेना के दो विमानों का क्रैश होना खासा चिंताजनक है। हादसे में दो पायलट तो किसी रह बच गए, लेकिन एक की मौत हो गई। चूंकि दोनों लड़ाकू विमानों सुखोई-30 और मिराज-2000 ग्वालियर एयरबेस से रूटीन ट्रेनिंग के लिए उड़ान भरी थी, दोनों के दुर्घटनाग्रस्त होने का समय भी करीब-करीब समान है और दोनों विमानों का मलबा भी आसपास के ही इलाकों में गिरा है, ज्यादा आशंका यही बताई जा रही है कि दोनों विमान हवा में ही एक दूसरे से टकरा गए होंगे। हालांकि इन विमानों की क्षमता और पायलटों के प्रशिक्षण को ध्यान में रखते हुए विशेषज्ञ यह भी बताते हैं कि इनका इस तरह टकराना कोई सामान्य बात नहीं है। मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं। ऐसे में विस्तृत जांच की रिपोर्ट से ही यह साफ होगा कि उड़ान के दौरान दोनों में से किसी एक या दोनों विमानों में किसी तरह की तकनीकी गड़बड़ी हुई थी या इस हादसे की कोई और वजह थी। लेकिन ऐसे लड़ाकू विमानों का दुर्घटनाग्रस्त होना वायु सेना के लिए बड़ी क्षति है।
सुखोई-30 और मिराज-2000 दोनों ही बेहतरीन और सक्षम लड़ाकू विमानों में गिने जाते हैं। मिराज-2000 ने करगिल युद्ध ही नहीं, सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान भी अहम भूमिका निभाई थी। एक मिराज-2000 की कीमत करीब 167 करोड़ रुपये पड़ती है जबकि एक सुखोई विमान की कीमत 500 करोड़ रुपये से ज्यादा बैठती है। सुखोई-30 विमान एक बार में 3000 किलोमीटर तक की उड़ान भर सकता है और हवा में ही रिफ्यूलिंग करने के बाद यह 8000 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकता है। मगर इस तरह के हादसों में जो बहादुर पायलट, सैनिक और सैन्य अफसर शहीद होते हैं, उनकी कमी तो कभी पूरी ही नहीं हो पाती है। तमिलनाडु के कन्नूर में दिसंबर 2021 में हुए ऐसे ही एक हेलिकॉप्टर क्रैश में देश ने तत्कालीन सीडीएस जनरल बिपिन रावत को खो दिया था। उस दुर्घटना में उनके साथ ही 12 अन्य सैन्यकर्मी शहीद हुए थे। लेकिन उससे पहले से ही चला आ रहा ऐसे हादसों का सिलसिला उसके बाद भी जारी रहा।
जनवरी 2021 से ही देखें तो अब तक 10 हादसे हो चुके हैं. जिनमें 23 सैन्यकर्मी अपनी जान गंवा चुके हैं। जान माल की यह क्षति इतनी गंभीर है कि इन हादसों को हलके में नहीं लिया जा सकता। पहली नजर में ऐसा लगता है कि हादसे अक्सर कई तरह के संयोग का परिणाम होते हैं और उन पर अपना वश नहीं होता, लेकिन सचाई यही है कि कई तरह की तकनीकी गड़बड़ियां और मानवीय भूलें भी नियमित मरम्मत, प्रशिक्षण औऱ ड्यूटी आवर्स के बेहतर प्रबंधन के जरिए टाली जा सकती हैं। इस हादसे के सभी पहलुओं की बारीक जांच से निकले तथ्यों की रोशनी में उपयुक्त कदम उठाना इस दिशा में पहला कारगर कदम हो सकता है।
Edited by उत्कर्ष गहरवार | न्यूज़ क्रेडिट: नवभारत टाइम्स
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