सम्पादकीय

अंतर की गति बूझो प्राणी

Subhi
9 May 2022 5:19 AM GMT
अंतर की गति बूझो प्राणी
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ज्यादा नजदीकी कभी-कभी दूरियां बढ़ा देती है। बहुत-सी चीजें दूर से बहुत सुंदर और आकर्षक लगती हैं। मगर जैसे ही हम उसके पास जाते हैं, वह व्यक्ति, पशु-पक्षी, कोई चीज, दृश्य आदि हमें उतना आकर्षक नहीं लगता, जितना वह हमें दूर से लग रहा था।

भूपेंद्र भारतीय; ज्यादा नजदीकी कभी-कभी दूरियां बढ़ा देती है। बहुत-सी चीजें दूर से बहुत सुंदर और आकर्षक लगती हैं। मगर जैसे ही हम उसके पास जाते हैं, वह व्यक्ति, पशु-पक्षी, कोई चीज, दृश्य आदि हमें उतना आकर्षक नहीं लगता, जितना वह हमें दूर से लग रहा था। जैसे कोई इंसान कभी-कभी मिलता है तो अच्छा लगता है, लेकिन रोज-रोज मिलने से उसके साथ अच्छा नहीं लगता। वैसे ही जैसे किसी के घर कभी-कभी जाओ तो ठीक रहता है, लेकिन घड़ी-घड़ी जाने से वह व्यक्ति आपका उतना सम्मान नहीं करेगा।

कहावत भी है कि मेहमान थोड़े ही दिन के अच्छे लगते हैं। क्यों? क्योंकि यह मानव का प्राकृतिक स्वभाव है कि वह एक-सी चीजों और मानव व्यवहार से बहुत जल्दी ऊब महसूस करने लगता है। इसीलिए पश्चिमी मनोवैज्ञानिक तो पति-पत्नी को भी रोज एक कमरे में, एक बिस्तर पर न सोने की सलाह देते हैं। उनका कहना है कि पति-पत्नी को हर समय नजदीक नहीं रहना चाहिए। भारतीय पारंपरिक घरों में तो यह चलन सदा से चला आ रहा है।

दरअसल, मनुष्य जिसे चाहता है, जो उसे सबसे प्रिय होता है, वह उसके पास अधिक से अधिक रहने लगता है। वह उसी में खो जाता है। इस तरह कुछ ही दिनों में उससे ऊब भी जाता है। पश्चिम में रिश्ते इसीलिए ज्यादा टूटते हैं। इसके अलावा आधुनिक भौतिकवादी जीवन के कारण मानव दिनोंदिन चिड़चिड़ा और एकाकी होता जा रहा है। उसे अपने बारे में जानने, अपने भीतर झांकने की फुर्सत ही नहीं है। वह बाहर ही बाहर अधिक विचरता रहता है। इसलिए व्यक्ति को बाहरी दुनिया की यात्रा के बजाय कभी-कभी अपने जीवन में आंतरिक यात्रा भी करना चाहिए। इस तरह वह अच्छे से अपना मूल्यांकन कर सकेगा।

बाहर की या कहें कि भौतिक दुनिया को जानने के साथ-साथ मनुष्य को अपने आप को भी जानना-समझना चाहिए। बाहरी दुनिया से एक निश्चित और सामान्य दूरी बनाए रखते हुए मानव को अपनी आत्मा और मन के अधिक नजदीक रहना चाहिए। योग, स्वाध्याय, ध्यान आदि के माध्यम से व्यक्ति अपने आप के पास आसानी से पहुंच सकता है। अधिकांश शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य के अंदर ही सारा ब्रह्मांड है, अगर वह बाहरी दुनिया के झूठे आकर्षण में न फंसे तो वह सही अर्थों में जीवन और जगत को समझ सकता है। शायद इसे ही विद्वानों ने 'स्व' की खोज कहा है। आदमी से इंसान बनने की यात्रा में स्वयं को अच्छे से जानना बहुत जरूरी है।

इस आंतरिक यात्रा की विधियों पर तमाम ग्रंथों ने विस्तार से प्रकाश डाला है। सनातन परंपरा और भारतीय संस्कृति में तो कितने ही ऋषि-मुनियों और विचारकों ने अपना संपूर्ण जीवन इस आंतरिक यात्रा के चरम बिंदु पर पहुंचने के लिए तपस्या और योग करते हुए व्यतीत कर दिया। जितने भी धर्म, पंथ, विचारधाराओं के सच्चे अनुयायी रहे हैं, उन्होंने सबसे पहले योग, ध्यान और स्वाध्याय के माध्यम से ज्ञान और सत्य की प्राप्ति इसी आंतरिक यात्रा के माध्यम से की है।

वर्तमान में भौतिकता के मोहपाश के कारण हर कोई अपने आप को ही नहीं समझ पा रहा है। अधिकांश लोगों को उनके जीवन का न तो उद्देश्य पता है और न ही अपना लक्ष्य। वर्तमान युवा पीढ़ी सोशल मीडिया, मोबाइल और भौतिक सुख-सुविधा युक्त साधनों की संपन्नता को ही जीवन का अंतिम सत्य और लक्ष्य मान रही है। उसने प्रकृति और स्वयं से अपने आप का संबंध विच्छेद कर लिया है। आज के युवा का मन बाहरी दुनिया के झूठे आकर्षण में ऐसा फंस गया है कि छोटी-छोटी बातों और संघर्षों के आगे हार कर, हताश होकर वह आत्महत्या जैसे कदम उठाने लगा है।

ऐसे में यह बहुत जरूरी हो गया है कि व्यक्ति सबसे पहले वर्तमान दुनिया के बाहरी आकर्षण से बाहर निकले और सबसे पहले स्वयं को पहचाने। अपने 'स्व' की खोज करे। व्यावहारिक ज्ञान और जीवन के अनुभव को जानने तथा सीखने की कोशिश करे। वह सिर्फ ध्यान, योग, स्वाध्याय और अपने हिस्से में आए कर्म को करके ही प्राप्त किया जा सकता है।

अपने को जानना, अपने तक पहुंचना है, तो व्यक्ति को बाहरी दुनिया की चकाचौंध से खींच कर अपनी तरफ खुद को मोड़ना पड़ेगा। अपने दैनिक जीवन में कुछ समय अपने लिए जरूर निकालें। स्वयं को जानने के लिए योग, स्वाध्याय, ध्यान, सुबह की लंबी सैर, सामाजिक संबंधों में मधुरता लाने का प्रयास, प्रकृति को नजदीक से निहारने आदि का प्रयास करना चाहिए। इस तरह व्यक्ति अपने मन को शांत कर सकता है। इस शांत मन के समय में ही उसे सहजता से आत्मचिंतन द्वारा अपने जीवन का उद्देश्य और लक्ष्य आसानी से पता चल सकता है। वर्तमान की भागदौड़ भरी जिंदगी में यह शांत मन ही मानव के लिए दुनिया के भौतिकवादी जाल से बाहर निकलने का सबसे कारगर तरीका है।


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