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By: divyahimachal
हिमाचल कांगे्रस के भीतर वरिष्ठता और धृष्टता के बीच कोई नया संघर्ष शुरू हो रहा है। लगातार कम से कम तीन ऐसे मौके आ चुके हैं जहां आगे बढऩे के बजाय पार्टी खुद ही घायल होने की परिस्थितियां पैदा कर चुकी है। ताजातरीन उदाहरण वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पांच बार के विधायक रामलाल ठाकुर के आंसुओं में बहता उफान है, जो कहीं गहरे तक पार्टी की आत्मा टटोल रहा है। अपनी प्रेस कान्फं्रेस के दौरान भावुक हुए रामलाल ठाकुर बहुत कुछ सार्वजनिक कर चुके हैं और इसी संदर्भ में उनके द्वारा प्रदेश कांग्रेस समिति के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा देना, एक शूल की तरह नहीं तो कम से कम नई चुनौती पैदा करता ही है। आश्चर्य यह कि पद और पदक के निजी समीकरणों को तराशते-तराशते कई नेता लगभग बेकाबू स्थिति में हैं। रामलाल ठाकुर जैसे नेताओं ने अपने राजनीतिक करियर में कभी ऐसी उछलकूद नहीं दिखाई, जिससे अनुशासनहीनता या पार्टी की मर्यादा खंडित होती। वह इस समय नयनादेवी विधानसभा सीट पर आगामी चुनाव के सबसे सशक्त प्रत्याशी माने जा रहे हैं और हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के एक दिग्गज नेता के रूप में उनकी वरिष्ठता का खाता, सत्ता तलाश रही कांग्रेस में सम्माननीय और स्वीकृत है। ऐसे में कुछ तो वजह रही कि रामलाल को हताश होना पड़ रहा है।
बेशक इस त्यागपत्र का विषय बता रहा है कि कांग्रेस के संगठन में कुछ ढांचागत, कुछ नेतृत्व तथा कुछ केंद्रीय निर्देशन की खामियां सामने आ रही हैं। जिस तरह से पार्टी के पद और पदक बंटे या आरंभ से ही वरिष्ठता को धिक्कारते हुए कुछ कमजोर, कम अनुभवी व अविश्वसनीय नेताओं को ऊंचे ओहदे दिए गए, उसका हश्र लगातार सामने आ रहा है। कांगड़ा के विधायक पवन काजल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने वाले मठाधीश बता सकते हैं कि वह आज भाजपा में कैसे पहुंच गए। जिस विश्वास से पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा को चुनाव अभियान की बागडोर में स्टीयरिंग कमेटी का अध्यक्ष पद दिया था, उसमें पहला सुराख करके उन्होंने किसको तारपीडो किया। युवा रोजगार रैली के अपने पद से हटकर आश्रय शर्मा ने कौन सा अनुशासन सृजित किया।
हद तो यह कि कांग्रेस ने जिन चेहरों के प्रस्ताव को एक आदर्श रूप में स्क्रीनिंग समिति तक पेश किया, उसकी मुखालफत करती पूर्व सांसद विप्लव ठाकुर दो बार पार्टी लाइन से हटकर धर्मशाला में प्रेस संबोधन करती रहीं, लेकिन कांग्रेस के ऊंचे ओहदे ऊंघते रहे। रामलाल ठाकुर के आंसू बता रहे हैं कि कांग्रेस के भीतर हर धड़ा एक-दूसरे को नीचा दिखा रहा है। आश्चर्य यह कि जिस पार्टी को चुनाव जीतने के लिए लाले पड़े हों, वहां नेताओं के नखरे परवान चढ़ रहे हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री पद के ख्वाब में अपनी-अपनी खुशफहमी ढो रहे नेताओं का रेखांकित उद्देश्य पार्टी की हस्ती को कमजोर ही करेगा। रामलाल ने संगठन के राज्य नेतृत्व के प्रति एक तरह से असहमति और अविश्वास का ठीकरा फोड़ा है, जिसे गंभीरता से लेना होगा, लेकिन कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व व राज्य के प्रभारी इस स्थिति के लिए सीधे जिम्मेदार हैं। बहरहाल कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी की दो दिवसीय दिल्ली बैठक अगर अपनी निर्णायक भूमिका में कुछ चेहरों की उम्मीदवारी सुनिश्चित कर पाती है, तो काफी हद तक पार्टी की दिशा तय हो जाएगी, वरना अपनी-अपनी तरह से मुख्यमंत्री पद का मंच सजा रहे नेताओं की महत्त्वाकांक्षा कांगे्रस की संभावनाओं का पिंडदान कर देगी। देखना यह है कि रामलाल जो सार्वजनिक कर चुके हैं, उसके पीछे उनका अपना राजनीतिक गणित कहां बैठता है, क्योंकि पार्टी जीत की स्थिति में ऊंचे पद के लिए उनके ऊंचे कद को कौन नजरअंदाज कर सकता है।

Rani Sahu
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