सम्पादकीय

सोशल मीडिया पोस्ट के लिए मराठी एक्ट्रेस केतकी चितले को जेल भेजना महाराष्ट्र की राजनीति के पाखंड को उजागर करता है

Gulabi Jagat
16 May 2022 8:49 AM GMT
सोशल मीडिया पोस्ट के लिए मराठी एक्ट्रेस केतकी चितले को जेल भेजना महाराष्ट्र की राजनीति के पाखंड को उजागर करता है
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कुछ दिन पहले ही निर्दलीय सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा पर राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था जब
रक्षित सोनवाणे |
सत्ता में बैठे लोगों की आलोचना करने पर होने वाली कार्रवाई के चलन के तहत मराठी टीवी सीरियल की अभिनेत्री केतकी चितले (actor Ketaki Chitale) को भी गिरफ्तार कर लिया गया है. केतकी पर भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 500 और 501 (अपमानजनक सामग्री फैलाना), 305 (शत्रुता को बढ़ावा देना) और 153 (a) (असहमति फैलाना) के तहत मामला दर्ज किया गया है. ऐसे आलोचकों पर अमूमन राजद्रोह कानून (Sedition Cases) के तहत आरोप लगाया जाता है और चलन यही है इसके जरिये विभिन्न राजनीतिक दल अपने आलोचकों का मुंह बंद कर देते हैं.
कुछ दिन पहले ही निर्दलीय सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा पर राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था जब उन्होंने मातोश्री जो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का निवास स्थान है उसमें हनुमान चालीसा के पाठ की योजना बनाई थी.
SC के आदेश के बाद सत्तारुढ़ पार्टी को झटका!
केतकी पर भी देशद्रोह का आरोप लगाने की भरसक कोशिश रही होगी लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस कानून पर रोक ने महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ पार्टी को निराश जरूर किया होगा.
विडंबना यह है कि महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ एमवीए (शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस) नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग की आलोचना करती रही है. केंद्रीय एजेंसियों द्वारा लगभग एक दर्जन एमवीए नेताओं पर छापा मारा गया है और उनमें से दो – पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री नवाब मलिक – सलाखों के पीछे हैं. जब भी सत्तारूढ़ गठबंधन के किसी नेता पर छापा मारा जाता है या गिरफ्तार किया जाता है तो एमवीए भाजपा पर राजनीतिक प्रतिशोध के चलते केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाती है. लेकिन वही एमवीए अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ इसी तरह की रणनीति का इस्तेमाल करने से परहेज नहीं करती है.
विरोधियों के खिलाफ पुलिस बल का जमकर इस्तेमाल
एमवीए ने अक्सर विरोधियों के खिलाफ पुलिस बल का इस्तेमाल किया है जिन्होंने उनकी आलोचना की है या शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए मुश्किल स्थिति पैदा की है.
उदाहरण के लिए शिवसेना जो बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) में सत्ता में है उसने भी पालिका प्रशासन का इस्तेमाल किया है जब भी किसी ने खुले तौर पर उसकी आलोचना की है. जब बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत ने उद्धव ठाकरे सरकार की आलोचना की तो बीएमसी अधिकारियों ने तुरंत उनके आवास का दौरा किया और कथित अतिक्रमण और अवैध निर्माण के लिए उन्हें नोटिस थमा दिया. इसी तरह बीएमसी के अधिकारियों ने राणा दंपत्ति के घर का दौरा किया और कथित तौर पर अवैध निमार्ण के लिए नोटिस जारी किया.
राज्य में जहरीली राजनीति का शिकार बन रहे लोग
विडंबना यह है कि केतकी जैसे लोग राज्य की इस जहरीली राजनीति का शिकार बन रहे हैं. राजनेताओं और धार्मिक नेताओं द्वारा लगातार नफरत फैलाने की राजनीति के कारण ही यह माहौल बन रहा है. वोट बटोरने के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण राजनीतिक दलों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहा है वही धार्मिक अनुष्ठानों के जरिए अन्य धर्मों के प्रति नफरत फैलाना प्रचलन में है.
उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना नेताओं के बीच 1992 में बाबरी मस्जिद को गिराने का श्रेय लेने के लिए होड़ मची है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने दावा किया है कि जो लोग मस्जिद के गुंबदों पर चढ़ गए थे और उसे नीचे गिरा दिया था वे शिवसेना के कार्यकर्ता थे. उन्होंने बताया है कि गुंबद गिराए जाने के बाद भाजपा नेताओं ने इसकी जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया था लेकिन बालासाहेब ठाकरे ने कहा था कि वे शिव सैनिक थे और उन्हें इस पर गर्व है.
शिवसेना और बीजेपी नेता आमने-सामने
शिवसेना के दावों को खारिज करते हुए महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि वह बाबरी मस्जिद को गिराए जाते वक्त वहीं मौजूद थे और वहां आसपास शिवसेना के कार्यकर्ता नहीं थे. उन्होंने यह भी दावा किया कि बाबरी मस्जिद को गिराने वाले आरोपियों की लिस्ट में शिवसेना के एक भी कार्यकर्ता का नाम नहीं है.
इसके पलटवार में उद्धव ने फडणवीस से पूछा कि जब यह घटना हुई थी तब वह कितने साल के थे और वो इतने सालों तक चुप क्यों रहे.
धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए राजनीतिक दलों की पहली प्राथमिकता बन गई है. जिसकी वजह से एक समतावादी संविधान द्वारा शासित देश में असहिष्णुता और असामंजस्य का माहौल पैदा हो रहा है.
हालांकि सभी राजनीतिक दलों के राजनेताओं ने केतकी की पोस्ट की औपचारिक रूप से निंदा की है. लेकिन उन्हें यह जानने के लिए आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है कि क्या उनके जैसे राजनेता इस तरह की सोशल मीडिया पोस्ट के लिए अनुकूल असहिष्णु माहौल बनाने के लिए जिम्मेदार हैं.
(लेखक मुंबई में स्थित एक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)
Gulabi Jagat

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