सम्पादकीय

आत्मनिर्भर भारत : बुनकरों को बाजार की जरूरत

Neha Dani
13 Jan 2022 1:46 AM GMT
आत्मनिर्भर भारत : बुनकरों को बाजार की जरूरत
x
मगर कोरोना की रफ्तार को देखते हुए भी कुछ विशेष योजनाएं बनाने की जरूरत है।

आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से हैंडलूम (हस्तकरघा) की अपनी समृद्ध परंपरा और हुनरमंद बुनकरों के हुनर को दुनिया के सामने लाने की अपील की थी। बावजूद इसके आज बिहार के विभिन्न जिलों के बुनकरों की आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है। पहले से उनके पास काम की कमी तो थी ही, पिछले दो वर्षों में कोरोना के कारण उनके उत्पाद से जुड़े बाजार पर भी गहरा असर पड़ा है। साल में लगने वाले मेले, प्रदर्शनी और विभिन्न जगहों से मिलने वाले ऑर्डर अब न के बराबर रह जाने से बुनकर अपना जीवन-यापन बेहद कठिनाई से कर पा रहे हैं।

बुनकरों का कहना है कि उनके उत्पादों के लिए एक भी बेहतर प्लेटफॉर्म या बाजार नहीं है, जहां उनके उत्पाद की बिक्री हो सके। उनका मानना है कि सरकार की योजनाएं तो हैं, पर इसका लाभ बहुत कम लोगों को मिल पाता है। सरकार को बुनकरों के लिए बाजार उपलब्ध कराने की जरूरत है, जिससे वे अपनी कला से जुड़कर आजीविका कमा सकें। सरकार की ओर से उन्हें सतरंगी चादर, स्कूल की पोशाक, हॉस्पिटल के लिए चादर आदि का ऑर्डर अगर मिले, तो काफी हद तक बुनकरों के हालात में बदलाव आ सकता है। कुछ निजी और सरकारी संस्थाओं का गठन किया जाए, जिससे बाजार की उम्मीदें, बुनकरों को काम और एक बेहतर प्लेटफॉर्म मिल सके।
पटना जिले के पालीगंज अनुमंडल स्थित सिंगोड़ी में 15,000 बुनकरों का परिवार रहता है। यहां अब भी करीब पांच हजार बुनकर कार्य कर रहे हैं। जहां पहले पांच सौ लूम चला करते थे, वहीं आज सिर्फ सौ लूम चल रहे हैं। इसका कारण बाजार का न होना है। स्थानीय ग्रामीण व प्राथमिक बुनकर सहयोग समिति के अध्यक्ष फैयाज अहमद बताते हैं कि अभी उनके साथ सौ बुनकर कार्य कर रहे हैं।
आज से पांच साल पहले सबकी स्थिति काफी बेहतर थी, लेकिन पिछले दो सालों में उनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब हुई है। बाजार नहीं मिलने से 30 लाख रुपये का सामान बचा हुआ है। सतरंगी चादर और गमछा का कार्य करने वाले बुनकर अब दिन-रात की जगह कुछ ही घंटों के लिए काम करते हैं। सरकार की ओर से मौखिक तौर पर पर्दों का ऑर्डर मिला था, जिसे बुनकरों ने तैयार किया था, पर आज तक इसकी डिलीवरी नहीं हुई।
नवादा में हैंडलूम सिल्क का काम कर रहे शैलेंद्र कुमार बताते हैं कि यह काम उनके घर में कई पुश्तों से चल रहा है। उनके साथ कोऑपरेटिव सोसाइटी के जरिये नवादा, कादिरगंज और गोपालगंज के रहने वाले गांव के बुनकर शामिल हैं। महिलाएं चरखा पर धागा तैयार करती हैं, जबकि पुरुष बुनाई का काम करते हैं। महिला-पुरुष मिलाकर 800 लोग इसमें काम करते हैं। इससे पहले प्रदर्शनी, सरस मेला, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता में लगने वाले राष्ट्रीय प्रदर्शनियों से बड़े पैमाने पर ऑर्डर मिलते थे, लेकिन पिछले दो वर्षों से इस कारोबार में 40-50 प्रतिशत कमी आई है।
बांका सिल्क प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक उदयन सिंह बताते हैं, भागलपुर और बांका में हैंडलूम सिल्क के कारीगरों को बेहतर मार्केट मिले, इसके लिए वे लगातार उन्हें नई तकनीक और बाजार में किस तरह की स्पर्धा है, इससे जुड़ी जानकारियों से अवगत करा रहे हैं। बिहार सरकार के साथ वे लगातार निर्यात नीति को लेकर कार्य कर रहे हैं। साथ ही नाबार्ड से भी सहयोग मिले, इसके लिए भी बातचीत जारी है। हाल ही में भागलपुर और बांका के बुनकरों का उत्पाद वेंकूवर, टोरंटो में निर्यात किया गया। आने वाले कुछ महीने में नीदरलैंड, दुबई और अन्य राज्यों में उत्पादों को निर्यात किया जाएगा।
कोरोना काल में बुनकरों को सबसे ज्यादा परेशानी और नुकसान हुआ है और अब फिर से कोरोना का जोखिम मंडराने लगा है। काम नहीं मिलने से कई बुनकरों ने अपना पुश्तैनी काम छोड़ दिया, तो कइयों ने आधे पेट खाकर गुजारा किया, क्योंकि उन्हें लागत से ज्यादा नुकसान होने लगा है। बुनकरों को रोजगार के साधन मिलते रहें और उनका काम न रुके, इसके लिए सरकार योजनाएं तो चला रही है, मगर कोरोना की रफ्तार को देखते हुए भी कुछ विशेष योजनाएं बनाने की जरूरत है।


Next Story