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By: divyahimachal
हिमाचल में सरकारी तौर पर नजरिया बदलती सत्ता अपने फैसलों के नए गुंबद खड़े करना चाहती है। इसी के परिप्रेक्ष्य में ढांचागत बदलाव अपेक्षित हैं, लेकिन राहें अगर बदलनी हैं तो वर्तमान के बीच भविष्य ढूंढने का आवश्यक दखल भी जरूरी हो जाता है। बेशक इलेक्ट्रिक व्हीकल पॉलिसी के तहत हिमाचल की सरकारी बसें अब नए नूर में नजर आ रही हैं, लेकिन निजी क्षेत्र को इस मोर्चे पर खड़ा करने के लिए अभी प्रयास बाकी हैं। सुक्खू सरकार के कामकाज का गुणात्मक पक्ष यही माना जाएगा कि यह आत्मनिर्भरता के साथ अपने डग भरने की दूरी तय कर चुकी है। यह आसान कार्य नहीं और न ही कोई अतिरिक्त इंजन उपलब्ध है, लेकिन ढांचे में आत्मनिर्भर ढांचे का प्रारूप बदला जा सकता है। मसलन राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के सहयोग से 250 करोड़ की लागत से अगर दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित होता है, तो इस ढांचे के बीच आत्मनिर्भरता के बीज कैसे बोए जाते हैं, यह ज्यादा महत्त्वपूर्ण होगा। मिल्क फेडरेशन के उत्पाद अपनी गुणवत्ता के आधार पर मांग तो पैदा करते हैं, लेकिन उपभोक्ताओं तक आपूर्ति नहीं कर पाते।
साल में केवल दिवाली में सीमित मिठाई और लोहड़ी में गजक का बाजार खड़ा करके भी मिल्क फेडरेशन से ग्राहक का रिश्ता स्थायी नहीं है। पर्यटक सीजन में अगर मिल्क फेडरेशन प्रयास करे तो हिमाचल के हाईवे व पर्यटक स्थलों पर इसके उत्पाद एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं, मगर किसी ने सोचा ही नहीं। इतना ही नहीं, मिल्क फेडरेशन अगर मंदिरों के प्रसाद पर आधारित उत्पादों का विपणन कर पाए तो ज्वालामुखी के पेड़े, दियोटसिद्ध के रोट व इसी तरह की अन्य खाद्य वस्तुओं का एक बड़ा राज्यीय व राष्ट्रीय बाजार खड़ा कर सकती है। मिल्क फेडरेशन, विपणन बोर्ड तथा एचपीएमसी अगर एक साथ मिलकर, पर्यटन की दृष्टि से व्यापारिक मॉडल बनाएं, तो हिमाचली उत्पाद एक छत के नीचे उपलब्ध होंगे। हिमाचली शहद, धूप, पेड़ों, दुग्ध उत्पादों के अलावा राजमाह व अन्य कृषि उत्पादों तथा फलों की मांग पर्यटक सीजन में बढ़ जाती है। जरूरत है विभिन्न एजेंसियों, निगमों व फेडरेशन को एक सूत्र में बांधने की। ये सारे बोर्ड-निगम व विभाग किस तरह पर्यटन के घटक हो सकते हैं, इसके ऊपर विमर्श करना होगा। हिमाचल पथ परिवहन निगम अगर अपने वर्तमान ढांचे में परिवर्तन करते हुए खुद को पर्यटन विकास का पहिया बना ले, तो यात्रियों के रूप में पर्यटक बढ़ जाएंगे।
हिमाचल के बस अड्डों का प्रारूप कुछ इस तरह होना चाहिए कि यह हर आगंतुक के गंतव्य तक ही नहीं, बल्कि उसकी सहूलियतों के साथी भी बनें। बस स्टैंड के साथ एचआरटीसी आम जनता के लिए पेट्रोल पंप व महा पार्किंग स्थल तो जोड़े, साथ ही इस अधोसंरचना को मॉल की शक्ल में प्रमुख व्यापारिक, बैंकिंग तथा मनोरंजन गतिविधियों का केंद्र भी बना सकता है। एक समय था जब एचआरटीसी की माल ढुलाई सेवा भी होती थी। कूरियर सर्विस के तौर पर भी सेवा शुरू हुई, लेकिन ढर्रे में फंसे निगम ने नवाचार को नकार दिया। इसमें दो राय नहीं कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए आर्थिक व प्रशासनिक सुधार ही नहीं, अब तक स्थापित राज्य के समस्त ढांचे को भी चुस्त-दुरुस्त करना होगा। प्रदेश की विभागीय क्षमता के पूर्ण दोहन तथा विभिन्न बोर्ड-निगमों को घाटे से उबारने के लिए नवाचार की ओर बढऩा ही होगा। अगर हर विभाग अपने डाक बंगलों को भी काम पर लगा दे तो हिमाचल आने वाले पर्यटक इन इकाइयों की लाभकारी औकात बना देंगे। हिमाचल के राष्ट्रीयकृत मंदिरों का अगर एक केंद्रीय ट्रस्ट बना दिया जाए, तो मंदिर प्रबंधन की कुशलता के साथ-साथ मंदिरों पर केंद्रित आर्थिकी भी बढ़ेगी। हिमाचल में जनता के दायित्व में जब तक राज्य की आत्मनिर्भरता के सरोकार पैदा नहीं किए जाते, तब तक राज्य व समाज की अपेक्षाओं का द्वंद्व आगे नहीं बढऩे देगा। नागरिक सुविधाओं के बदले कर अदायगी की संस्कृति पैदा किए बिना प्रदेश की आत्मनिर्भरता का संकल्प पूरा नहीं होगा।
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