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- आत्मनिर्भरता जरूरी
नवभारत टाइम्स: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को सुरक्षा पर बनी कैबिनेट कमिटी की अध्यक्षता की। इसमें यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों और पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ सीमा को लेकर विवाद के मद्देनजर सुरक्षा तैयारियों का जायजा लिया गया। प्रधानमंत्री ने इस बैठक में रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के साथ आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल पर जोर दिया। भारत का पाकिस्तान और चीन दोनों के साथ सीमा विवाद है और उस पर दोनों के साथ लगी हुई सीमाओं पर पुख्ता रक्षा तैयारियों का दबाव है ताकि वह किसी भी चुनौती से निपट सके। दूसरी तरफ, भारत के 70 फीसदी रक्षा उपकरण रूस निर्मित हैं। यूक्रेन पर हमले को लेकर पश्चिमी देशों ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए हैं, जिनसे भारत के साथ उसके रक्षा सौदों और हथियारों की सप्लाई के प्रभावित होने का डर है। इस मुश्किल से बहुत कम समय में तो नहीं निकला जा सकता, लेकिन सरकार लंबी अवधि में यह लक्ष्य हासिल कर सकती है। इसके दो रास्ते हो सकते हैं। पहला, दूसरे देशों से हथियार खरीदे जाएं। इससे सप्लाई में विविधता आएगी और रूस पर निर्भरता कम होगी। इस दिशा में पहल हो भी रही है।
सरकार ने राफेल लड़ाकू विमानों का सौदा फ्रांस से तो प्रीडेटर ड्रोन को अमेरिका से किया है। पिछले कुछ वर्षों में इस्राइल से भी भारत ने हथियारों की खरीदारी बढ़ाई है। दूसरा, भारत अपनी जरूरत के अधिक से अधिक हथियार देश में बनाए। इस दिशा में भी सरकार पहल कर रही है। निजी कंपनियों को भागीदार बनाया जा रहा है, लेकिन इस मामले में देश को लंबा सफर तय करना है। स्वदेशी हथियारों के मामले में भारत के पास बहुत कम उपलब्धियां हैं। सुरक्षा पर बनी कैबिनेट कमिटी में प्रधानमंत्री ने आधुनिकतम तकनीक के रक्षा क्षेत्र में इस्तेमाल का जो जिक्र किया, उस दिशा में भी रक्षा मंत्रालय की ओर से कोशिश हुई है। मंत्रालय चाहता है कि हाई पावर्ड लेजर वेपंस, हाइपरसोनिक ग्लाइड वीइकल्स और मीडियम लिफ्ट हेलिकॉप्टर जैसे हथियारों में प्राइवेट सेक्टर की कंपनियां अहम भूमिका निभाएं। इन प्रॉजेक्ट्स के लिए वे सरकारी क्षेत्र की कंपनियों के साथ मिलकर काम कर सकती हैं। रक्षा मंत्रालय ने ऐसे 18 प्रॉजेक्ट्स की पहचान की है, जिनमें से 14 को 'मेक 1' वर्ग में रखा गया है। इस वर्ग के प्रॉजेक्ट्स के बारे में खास बात यह है कि इनकी 70 फीसदी तक डिवेलपमेंट कॉस्ट सरकार उठाती है। साथ ही, अगर ये हथियार सभी मानकों पर खरे उतरते हैं तो पहले से तय मात्रा में सेना उन्हें खरीदेगी। यह बहुत बड़ी बात है। इस वजह से निजी क्षेत्र की कंपनियों की इनमें दिलचस्पी बढ़ सकती है क्योंकि उनके लिए जोखिम काफी कम हो जाएगा। अगर सरकार निजी क्षेत्र को वाजिब प्रोत्साहन दे और पब्लिक सेक्टर की कंपनियों की जवाबदेही पक्की करे तो रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में अच्छी प्रगति हासिल की जा सकती है।